अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण पर अदालत की रोक से महाराष्ट्र बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनाव में देरी होगी। पिछले 10 सालों से राज्य में बिजली की बड़ी किल्लत नहीं देखी गई लेकिन पिछले हफ्ते तेज गर्मी के बीच लोगों के घरों में पंखे बंद हो गए और मुंबई के अधिकांश हिस्सों में कई घंटों तक अंधेरा छा गया। ऐसा लगा कि इस तरह की आपात स्थिति के लिए कोई आकस्मिक योजना ही नहीं बनी थी। महाराष्ट्र की बिजली की मांग बढ़कर 28,000 मेगावॉट से अधिक हो गई है और जल्द ही इसके 30,000 मेगावॉट को पार करने की उम्मीद है। मंत्रियों ने भी यह स्वीकार किया कि पनबिजली भी विकल्प नहीं बन सकता है क्योंकि नदियां सूख रही हैं। कोयले की कमी भी है। बारिश होने में अभी भी कुछ हफ्ते की देरी है।
राज्य सरकार के लिए बिजली संकट का प्रबंधन करना उसकी प्राथमिकता है। लेकिन राज्य सरकार को अभी जिन राजनीतिक चुनौतियों से निपटना है वे इससे कहीं अधिक बड़ी हैं: मसलन बीएमसी चुनाव और पूर्व गठबंधन सहयोगी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और वर्तमान गठबंधन सहयोगियों विशेष रूप से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) को संभालना मुश्किल है जो महाराष्ट्र विकास आघाडी (एमवीए) गठबंधन के सदस्य हैं। फिलहाल, बीएमसी चुनाव सभी स्थानीय निकायों चाहे जिला परिषद या पंचायत समितियां या नगरपालिका में अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण देने को लेकर कानूनी संघर्ष अटका पड़ा है। बीएमसी के निर्वाचित पार्षदों का पांच साल का कार्यकाल इस साल 7 मार्च को खत्म हो गया था। 4 मार्च, 2021 को अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र में स्थानीय निकायों में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण देने की बात इस आधार पर खारिज कर दी कि आरक्षण को सही ठहराने के लिए कोई अनुभवजन्य या प्रयोगसिद्ध डेटा नहीं था। यही बात बीएमसी के लिए भी हुई।
राज्य सरकार ने विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर इसे निरस्त करने की कोशिश की कि अगर ओबीसी आरक्षण नहीं है तब स्थानीय निकाय चुनाव नहीं होंगे। इसके बाद इसने एक अध्यादेश लाने की कोशिश की। अदालत ने अध्यादेश पर रोक लगा दी। इस साल 3 मार्च को सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की अंतरिम रिपोर्ट को स्वीकार करने से इनकार कर दिया जिसमें स्थानीय निकायों में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की गई थी और इसे अस्वीकार करने का आधार यह था कि अनुभवजन्य या प्रयोग के जरिये साबित किए जाने वाले अध्ययन के बिना यह रिपोर्ट तैयार की गई थी। इस समय, दुनिया के सबसे अमीर नगर निकाय को प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा संचालित किया जा रहा है और ऐसा 1984 के बाद पहली बार हो रहा है। भाजपा के नेता चंद्रकांत पाटिल ने कहा है कि उन्हें अक्टूबर में बीएमसी चुनाव होने की उम्मीद है। हालांकि ये चुनाव जब भी होंगे, शिवसेना और भाजपा पहली बार एक-दूसरे से अलग होकर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ेंगी। शिवसेना के लिए यह प्रतिष्ठा का चुनाव भी है। अगर चेतावनी वाले लहजे की बात करें तो हाल ही में आक्रामक भाषण सुनने को मिले। उद्धव ठाकरे ने अपनी एक सर्जरी के बाद कुछ सार्वजनिक भाषण दिए जिसमें उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि उनकी पार्टी भाजपा को चुनौती देगी। एक पुरस्कार समारोह में जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिरकत की, उसमें उद्धव ठाकरे अनुपस्थित रहे। दरअसल लता दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार, मोदी को मिला लेकिन निमंत्रण से मुख्यमंत्री का नाम गायब था, इसलिए वह उस समारोह में नहीं गए। हालांकि लता मंगेशकर के मन में शिवसेना और बाल ठाकरे के लिए हमेशा एक विशेष स्थान रहा।
आम धारणा यह है कि मुख्यमंत्री शिवसेना से हैं, लेकिन सरकार राकांपा चला रही है। गृह, वित्त और ग्रामीण विकास विभाग राकांपा के पास हैं। ये तीनों विभाग किसी भी राज्य सरकार, विशेष रूप से ग्रामीण विकास के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण हैं और यह जिला परिषदों पर नियंत्रण रखने का एक तरीका भी है। आवास और सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग भी राकांपा के पास हैं।
अजित पवार के पास अनुभव भी है और वह एक सक्रिय नेता हैं। महाराष्ट्र में सेवाएं देने वाले एक सेवानिवृत भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी कहते हैं, ‘उद्धव ठाकरे की तुलना में उनका हस्तक्षेप अधिक है।’ नतीजा यह है कि राकांपा विधायकों के लिए अजित पवार के माध्यम से काम को पूरा कराना आसान हो जाता है जबकि शिवसेना विधायकों को संघर्ष करना पड़ता है। शिवसेना विधायक और पूर्व मंत्री तानाजी सावंत ने भी मार्च में सोलापुर में एक जनसभा में कहा था कि सरकार की तरफ से शिवसेना के साथ दोयम दर्जे वाला व्यवहार हो रहा है। सावंत ने कहा कि 11 मार्च को अजित पवार ने 2022-23 का बजट पेश किया जिसमें राकांपा के नेतृत्व वाले विभागों को कुल आवंटन का 57 प्रतिशत से 60 प्रतिशत तक मिला जबकि कांग्रेस के मंत्रियों वाले विभागों के लिए आवंटन 30-35 प्रतिशत तक रहा। उन्होंने सवाल किया, ‘उच्च और तकनीकी शिक्षा विभाग शिवसेना के पास है। 16 प्रतिशत आवंटन (शिवसेना के नेतृत्व वाले विभागों के लिए) में से 6 प्रतिशत वेतन पर खर्च किया जाता है। विकास के लिए आवंटन कहां हैं?’
ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां राकांपा और शिवसेना में टकराव की स्थिति बनती जा रही है खासतौर पर नगरपालिका के स्तर पर। चाहे वह ठाणे, पालघर या औरंगाबाद हो, शिवसेना और राकांपा कार्यकर्ताओं के बीच टकराव बढ़ रहा है। क्या महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने में सक्षम होगी? कई सेवानिवृत्त अधिकारी शरद पवार के कदम पर नजर बनाए हुए हैं क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव नजदीक आ रहे हैं। महाराष्ट्र काडर के केंद्र सरकार के एक सेवानिवृत्त सचिव ने कहा, ‘पवार के कद और क्षमता वाले व्यक्ति के लिए राष्ट्रपति का पद, बौद्धिक चुनौती के लिए पर्याप्त नहीं है। लेकिन वह जानते हैं कि वह महाराष्ट्र में शासन में बदलाव लाने के लिए उस चुनाव में अपनी पार्टी के समर्थन का लाभ उठा सकते हैं।’ लेकिन सवाल यह है कि इसमें उनके और उनकी पार्टी के लिए क्या खास होगा?