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कोविड काल के कदम तय करेंगे हमारे भविष्य की सूरत

Last Updated- December 15, 2022 | 7:49 AM IST

यह दौर हमारी जिंदगी का शायद सबसे अटपटा एवं उथलपुथल भरा समय है और सबसे ज्यादा उलझन वाला भी है। कोरोनावायरस हमारी दुनिया में सबसे अच्छे और सबसे बुरे दोनों को उजागर करता दिख रहा है। एक तरफ दिल्ली समेत दुनिया के तमाम हिस्सों में हवा पहले से काफी साफ होने की खबरें हैं। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी आने के भी प्रमाण हैं। मानव की सहनशक्ति, संवेदना और सबसे ऊपर स्वास्थ्य देखभाल एवं आवश्यक सेवाओं में लगे लाखों लोगों की स्वार्थरहित मेहनत भी नजर आती है।
दूसरी तरफ, हमने संक्रमण से बचने की कोशिश में प्लास्टिक का इस्तेमाल बढ़ा दिया। शहरों में घरेलू कचरे को छांटने का काम रोका जा रहा है क्योंकि बढ़ते मेडिकल कचरे और प्लास्टिक से बने पीपीई किट का बोझ ही नहीं संभाला जा रहा है। इस तरह हम पीछे लौट रहे हैं। फिर लोग अब सार्वजनिक परिवहन साधनों से नहीं जाना चाहते हैं। उन्हें भीड़भाड़ में जाने से संक्रमित होने की आशंका है। इस तरह शहरों में लॉकडाउन की बंदिशें छंटने के साथ ही सड़कों पर निजी वाहनों की आमद बढऩी तय है। जलवायु परिवर्तन में अहम भूमिका निभाने वाले जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन के मामले में भी यही स्थिति है।
इस समय हम इंसानी फितरत का सबसे बुरा रूप भी देख रहे हैं। समाज के कमजोर तबकों और लॉकडाउन से बेरोजगार हुए श्रमिकों को उनके गांव पहुंचाने और पैसे एवं भोजन मुहैया करा पाने में नाकामी से लेकर लोगों को धर्म एवं जाति के खांचों में बांटने की निष्ठुरता भी देखी गई। और समय पर मदद न मिल पाने से अपने करीब लोगों को गंवा देने वाले तमाम लोगों की मुसीबत के बारे में तो कुछ कहा ही नहीं जा सकता है।
लेकिन हमें आगे की तरफ देखना चाहिए क्योंकि कोरोना रूपी इस सुरंग के दूसरे छोर पर रोशनी होगी और अब हम जो दुनिया बनाएंगे, वही हमारा भविष्य होगा। यह भी साफ हो जाना चाहिए कि यह जवाब ढूंढने की एक खुली कोशिश या बयानबाजी भर नहीं है। यह स्वास्थ्य संकट चरम पर होने के समय असंभव काम कर दिखाने के बारे में है-चीजों को अलग ढंग से करने के तरीके तलाशना है। हम सामान्य स्थिति की बहाली का इंतजार नहीं कर सकते हैं क्योंकि फिर यह न तो नया होगा और न ही अलग। और ऐसा करना मुमकिन भी है। रणनीति ऐसे कल्पनाशील जवाब तलाशने की है जो विभिन्न चुनौतियों से पार पा सके। अपने शहरों में वायु प्रदूषण का ही मामला लीजिए। हम जानते हैं कि हवा में जहर घोलने में बड़ा योगदान गाडिय़ों का है। भारी वजन ढोने वाले ट्रक सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं जो हमारे शहरों के भीतर आते-जाते रहते हैं। जनवरी में करीब 90,000 ट्रक हर महीने दिल्ली में आते थे और अप्रैल में लॉकडाउन के दौरान इन ट्रकों की संख्या घटकर 8,000 रह गई थी। फिर लॉकडाउन खत्म होने के बाद आवाजाही बढऩे पर हम प्रदूषण से कैसे बच सकते हैं?
वैसे भारत ने लॉकडाउन के दौरान ही अधिक स्वच्छ ईंधन एवं वाहन तकनीक की तरफ कदम बढ़ाए हैं। भारी वाहनों के मामले में इस बदलाव का मतलब यह होगा कि अप्रैल से पहले के बीएस-4 और अप्रैल से लागू हुए बीएस-6 ईंधन का उत्सर्जन 90 फीसदी तक कम हो जाएगा। ऑटोमोबाइल उद्योग इस समय भारी वित्तीय दबाव में है। यहां हमारे दोनों हाथों में लड्डू हैं। अगर सरकार पुराने ट्रकों की जगह नए मानक वाले ट्रक खरीदने के लिए ट्रक मालिकों को सब्सिडी की योजना लेकर आती है तो यह पूरे खेल का नक्शा बदल सकता है। लेकिन ध्यान रखना होगा कि पुराने वाहन कबाड़ घोषित हो जाएं और किसी दूसरी जगह पर प्रदूषण न फैला सकें।
सार्वजनिक परिवहन के मामले में भी यही स्थिति है। यह क्षेत्र भी इस समय सुरक्षा को लेकर दबाव में है। लेकिन सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था के बगैर हमारे शहरों में आवाजाही नहीं हो सकती है। लिहाजा अब हमें इसकी अहमियत समझनी है। वाहनों को नहीं बल्कि लोगों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन देकर शहरों का नए सिरे से निर्माण शुरू किया जा सकता है। हमें पूरे एहतियात के साथ सार्वजनिक परिवहन दोबारा शुरू करने की जरूरत है। हमें तेजी से इसे लागू करने और साइकिल एवं पैदल चलने वालों को सहूलियत देने के तरीके तलाशने की जरूरत है। आंकड़े बताते हैं कि हमारे शहरों में लोगों के सफर का बड़ा हिस्सा पांच किलोमीटर से कम दूरी ही होता है। लिहाजा ऐसा कर पाना संभव है।
लेकिन आज के समय हमें जिस स्तर का गतिरोध देखने को मिला है, उसी तरह की प्रतिक्रिया भी दिखानी होगी। ऐसा कर पाना संभव है लेकिन इसके लिए कल्पनाशीलता एवं जुनून के साथ मिलजुलकर काम करने की जरूरत है। जब उद्योग एवं उसके प्रदूषण की बात आती है तो ईंधन को कमतर करके दिखाया जाता है। अगर हम ईंधन को ही बदलकर कोयले से प्राकृतिक गैस की तरफ ले जाते हैं तो प्रदूषण में भारी गिरावट आएगी। फिर अगर हम दहन आधारित इंजन के बजाय बिजली से चलने वाली गाडिय़ों की तरफ रुख करते हैं और वह बिजली भी अगर प्राकृतिक गैस, पनबिजली, बायोमास और नवीकरणीय स्रोतों से आती है तो पहले स्थानीय प्रदूषण को कम करेगा और फिर जलवायु परिवर्तन से लडऩे में भी मददगार होगा। एक बार फिर यह कर पाना भी मुमकिन है।
लेकिन यह सब इस विश्वास से उपजा है कि हम इंसान एक बेहतर कल चाहते हैं। कोविड-19 महज एक भूल या एक असुविधाजनक हादसा न होकर एक असमान एवं विभाजक समाज बनाने और प्रकृति एवं अपने स्वास्थ्य को कमतर आंकने वाले हमारे कदमों का ही नतीजा है। ऐसे में हम इतने भोले नहीं हो सकते हैं कि आने वाला कल बेहतर ही होगा। ऐसा तभी हो सकता है जब हम उसे ऐसा बनाते हैं।

First Published - June 30, 2020 | 12:24 AM IST

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