Editorial: न्यायिक सुधार पर ठोस सलाह

हाल ही में सदन के पटल पर रखी गई इस रिपोर्ट में न्यायिक सुधार को लेकर कुछ सुचिंतित अनुशंसाएं की गई हैं।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- October 27, 2023 | 8:31 PM IST

देश के हालिया संवैधानिक इतिहास में सरकार की तीनों शाखाओं के बीच एक असहज करने वाला रिश्ता नजर आया है। खासतौर पर कार्यपालिका और विधायिका ने अक्सर न्यायपालिका को सीमित करने का प्रयास किया है। ऐसे में उच्च न्यायपालिका के कुछ लोगों समेत पर्यवेक्षकों के लिए यह स्वाभाविक ही था कि वे विधायिका द्वारा देश की अदालतों में सुधार की सलाह को पूर्वग्रह की नजर से देखें।

बहरहाल, इस नजरिये को संसद की कार्मिक, लोक शिकायत, विधि एवं न्याय संबंधी संसद की स्थायी समिति की हालिया रिपोर्ट पर लागू करना गलत होगा। हाल ही में सदन के पटल पर रखी गई इस रिपोर्ट में न्यायिक सुधार को लेकर कुछ सुचिंतित अनुशंसाएं की गई हैं। इनमें से कुछ ऐसी हैं जो नीतिगत जगत में पिछले कुछ समय से चर्चा में थीं जबकि अन्य अनुशंसाएं अपेक्षाकृत नई हैं। परंतु इन सभी की सावधानीपूर्वक तथा खुले दिलोदिमाग से छानबीन करने की आवश्यकता है।

न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु  

एक महत्त्वपूर्ण सुझाव यह है कि न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाई जाए तथा सेवानिवृत्त होने के बाद उनकी सार्वजनिक पदों पर नियुक्ति का ‘पुनराकलन’ किया जाए। यह सुझाव एक खास चिंता से संबंधित है जो बढ़ती जा रही है। वह यह कि यदि न्यायाधीश इस उम्मीद में रहेंगे कि सेवानिवृत्ति के बाद दशक भर तक उन्हें कार्यपालिका द्वारा सार्वजनिक फंडिंग वाली संस्थाओं में नियुक्ति मिल जाएगी तो यह बात उनकी निष्पक्षता को प्रभावित करेगी।

न्यायाधीशों को दिए जाने वाले प्रोत्साहन को संतुलित करने की जरूरत है। इसके लिए यह कहने की कोई आवश्यकता नहीं है कि कोई खास निर्णय सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्ति की संभावना से प्रभावित था। इतना कहना पर्याप्त है कि फिलहाल न्यायाधीशों के भविष्य पर कार्यपालिका का नियंत्रण कुछ ज्यादा ही है। ऐसे में व्यवस्था सुचारु रूप से काम करे भी तो कैसे?

एक और सुझाव जो पिछले कुछ समय से दिया जा रहा है वह यह कि उच्च न्यायपालिका में पीठों द्वारा जो लंबे अवकाश लिए जाते हैं उनमें कमी की जाए। इसके उत्तर में एक तर्क तो यही है कि न्यायाधीशों के अपने निर्णय लिखने और उनकी समीक्षा करने के लिए लंबे समय तक न्यायालयों का बंद रहना जरूरी है।

परंतु इस बीच कुछ ऐसी राह जरूर निकालनी होगी ताकि वादियों की उच्च न्यायपालिका तक पहुंच इस कदर प्रभावित न हो। उच्च न्यायपालिका तक पहुंच का बढ़ना महत्त्वपूर्ण है। खासतौर पर निचली न्यायपालिका में होने वाले न्याय की गुणवत्ता को देखते हुए यह जरूरी है।

सर्वोच्च न्यायालय के पीठों को नई दिल्ली के बाहर शुरू करने के सुझाव को भी पहुंच बढ़ाने के नजरिये से देखा जाना चाहिए। सांसदों का कहना है कि दिल्ली आने-जाने का व्यय, स्थानीय भाषा में जिरह का न होना आदि बातें कुछ लोगों को न्याय मिलने के मार्ग में बड़ी बाधा हैं। सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्रीय पीठ स्थापित किया जाना व्यावहारिक संघवाद की दिशा में एक अहम पहल होगी।

इस क्षेत्र में हस्तक्षेप जरूरी

रिपोर्ट में एक नई किंतु अहम चिंता विविधता को लेकर उठाई गई है। पैनल ने कहा है कि वंचित समुदायों के प्रतिनिधित्व के मामले में उच्च न्यायपालिका में ‘गिरावट का रुझान’ देखने को मिल रहा है। यह बात यकीनन चिंतित करने वाली है क्योंकि समय के साथ विविधता घटनी नहीं बल्कि बढ़नी चाहिए।

स्पष्ट है कि इस क्षेत्र में हस्तक्षेप जरूरी है। यह हस्तक्षेप सर्वोच्च न्यायालय और कॉलेजियम ही कर सकते हैं। न्यायाधीशों को ऐसे प्रत्याशियों का चयन करने में कड़ी मेहनत करनी चाहिए जो न्यायालय के नजरिये का विस्तार कर सकें और इसकी विविधता बढ़ा सकें। यदि ऐसा नहीं किया गया तो आम जनमानस में उनकी विश्वसनीयता कमजोर पड़ेगी।

यकीनन न्यायाधीश नहीं चाहेंगे कि अदालतों में विविधता की कमी कार्यपालिका के लिए एक और हथियार बन जाए और वह उसका इस्तेमाल नियुक्ति प्रक्रिया को नियंत्रित करने की कोशिश बढ़ाने में करे। कुल मिलाकर समिति की रिपोर्ट पर कार्यपालिका और खासकर वरिष्ठ न्यायपालिका को अवश्य ध्यान देना चाहिए।

First Published : August 9, 2023 | 11:13 PM IST