भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड (सेबी) ने वह व्यवस्था खत्म कर दी है जिसके तहत प्रतिभूति फर्मों और उनके ग्राहकों को अपने कंप्यूटर स्टॉक एक्सचेंज से सीधे तौर पर जोड़े जाने की इजाजत नहीं थी।
सेबी ने यह फैसला प्रतिभूति फर्मों और उनके ग्राहकों के हित में लिया है, जो अब अपने कंप्यूटर सीधे तौर पर स्टॉक एक्सचेंजों से जोड़ पाएंगे। साथ ही, सेबी ने कारोबारी रणनीति के ऑटोमेशन की इजाजत भी दे दी है।
भारत का स्टॉक मार्केट इस बात के लिए पहले से ही मशहूर है कि यहां इस कारोबार से जुड़े लोग कंप्यूटर का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। यहां प्रतिभूतियों की खरीद का ऑर्डर दिए जाने से लेकर ऑर्डर मैचिंग, रिस्क मैनेजमेंट और पेमेंट व सेटलमेंट से संबंधित हर काम पूरी तरह कंप्यूटर के जरिये किया जाता है।
अब तक एक खास नियम की वजह से कंप्यूटरों को स्टॉक मार्केट से जोड़े जाने का काम संभव नहीं हो पा रहा था। पर अब ऐसा नहीं होगा। इस नियम को खत्म किया जाना सही मायने में समझदारी भरा फैसला है।
कारोबारी रणनीति के ऑटोमेशन (जिसे अल्गोरिथम ट्रेडिंग यानी ‘एटी’ नाम दिया गया है) के लागू होने से वित्त बाजार से जुड़ी कई प्रक्रियाओं की क्षमताओं पर बेहतर असर पड़ेगा। जब किसी प्रतिभूति की ट्रेडिंग कई जगहों (मसलन, एनएसई बनाम बीएसई या फिर स्पॉट बनाम फ्यूचर) पर होती है, तो ऐसे में कीमतों के बीच काफी ठोस लिंक होना जरूरी है।
फिलहाल, इसके लिए वर्चुअल व्यवस्था है, जो बेहद कठिन और लंबी है। कंप्यूटरीकरण होने से छोटे स्टॉक्स को मॉनिटर करना भी संभव हो पाएगा और इससे स्टॉक्स की बड़ी रेंज के लिए ज्यादा तरलता और प्राइस इफिसिएंसी हासिल हो पाएगी। जैसे ही यह नई व्यवस्था लागू होगी, मुंबई भी ज्यादा से ज्यादा विदेशी फर्मों की लिस्टिंग की गवाह बनने लगेगी।
इस बात में भी कोई दो राय नहीं है कि ब्याज दरों और मुद्राओं के कारोबार से संबंधित मामलों में भी ‘एटी’ अहम भूमिका निभा सकता है। हालांकि इसके लिए सबसे पहले बॉन्ड और करंसी मार्केट के लिए इलेक्ट्रॉनिक एक्सचेंज का इंतजाम किया जाना जरूरी होगा।भारत से बाहर, हजारों योग्य फाइनैंस पेशेवर इस तरह की व्यवस्था विकसित करने और उन्हें लागू कराने की मुहिम में जुटे हुए हैं।
भारत में अब तक इसकी शुरुआत नहीं हो पाई थी, क्योंकि यहां कंप्यूटरीकरण पर पाबंदी थी। चूंकि इस मामले में भारतीय वित्तीय कंपनियों के पास तजुर्बा नहीं है, लिहाजा उन्हें काफी तेजी से इन चीजों को पकड़ने की कोशिश करनी होगी।
हालांकि गोल्डमैन सैक्स और जेपी मॉर्गन के पास ‘एटी’ के इनहाउस इस्तेमाल का तजुर्बा है, जिसे देश के एक्सचेंजों पर भी लागू किया जा सकता है। आईसीआईसीआई, एचडीएफसी और यूटीआई जैसी भारतीय वित्तीय कंपनियों को ग्लोबल स्टैंडर्ड हासिल करने के लिए इस दिशा में अपनी रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट (आरऐंडडी) टीम गठित करनी चाहिए।