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  लेख  बिजली सुधारों की दिशा में एसबीडी महत्त्वपूर्ण कदम
लेख

बिजली सुधारों की दिशा में एसबीडी महत्त्वपूर्ण कदम

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —November 6, 2020 1:15 AM IST
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विद्युत वितरण कंपनियों के ढांचे, परिचालन और वित्त में सुधार आदि बिजली क्षेत्र के कुछ ऐसे अधूरे काम हैं जिन्हें पूरा किया जाना आवश्यक है। आखिरकार बिजली मंत्रालय इस दिशा में प्रयास कर रहा है। मंत्रालय मानक बोली दस्तावेज (स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्युमेंट अथवा एसबीडी) के रूप में विद्युत वितरण कंपनियों के निजीकरण का एक मसौदा ला रहा है जो इस क्षेत्र में जरूरी निवेश और किफायत लाने की भूमिका तैयार करेगा। कोशिश यह है कि अत्यधिक चुनौतियों का सामना कर रहे इन राज्य विद्युत वितरण बोर्डों को निजी हाथों में सौंपा जाए। चूंकि यह मामला राज्य सरकारों और राज्य नियामकों के दायरे में है इसलिए एसबीडी बाध्यकारी नहीं होगा। राज्यों को स्वेच्छा से आगे आना होगा।
मसौदा एसबीडी की प्रमुख विशेषताएं क्या हैं? परिचालन खाके के मुताबिक शहरी और शहरी-ग्रामीण क्षेत्रों में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी क्रमश: 100 फीसदी और 74 फीसदी करके सरकार की भूमिका को न्यूनतम करने की योजना है। एसबीडी में यह परिकल्पना भी की गई है कि विभिन्न राज्यों की मौजूदा विद्युत वितरण कंपनियों को यथारूप विनिवेश के लिए प्रस्तुत किया जाए। ऐसा करने से किसी राज्य के सर्वाधिक लुभावने इलाके को मशक्कत से अलग करने की समस्या का अंत हो जाएगा। ये प्राय: ऐसे बड़े शहरी इलाके होते हैं जहां के उपभोक्ता सबसे अधिक भुगतान करते हैं। हालांकि ऐसा करने से निवेशकों की रुचि भी कम हो सकती क्योंकि एक वितरण कंपनी होने पर उसके पास काफी इलाका होगा जिसमें जाहिर तौर पर ग्रामीण इलाके की हिस्सेदारी अधिक होगी। ये इलाके वाणिज्यिक दृष्टि से अधिक आकर्षक नहीं होते।
कुछ बड़े राज्यों में मौजूदा संस्थान काफी बड़े और बोझिल प्रकृति के हैं। ऐसे में राज्यों को यह निर्णय लेना पड़ सकता है कि कुछ मौजूदा संस्थानों को आगे किस प्रकार विविध लाइसेंस वाले क्षेत्रों में विभक्त किया जाए वह भी इस तरह कि निवेशकों की रुचि बनी रहे और आकर्षक तथा कम आकर्षक इलाके एक साथ मिश्रित हो जाएं। इस संदर्भ में चुनिंदा इलाकों में फ्रैंचाइजी मॉडल पर विचार करना उचित होगा जहां सीधी बिक्री शायद अच्छा विकल्प न हो। फ्रैंचाइजी को घाटे में उल्लेखनीय कमी करके दिखानी होगी। यह फ्रैंचाइजी विकल्प जल्दी लागू किया जा सकता है क्योंकि इसमें बिक्री जैसा कुछ नहीं होता।
एसबीडी यह स्पष्ट करता है कि कोई भी वितरण कंपनी तभी सौंपी जाएगी जब उसका बहीखाता दुरुस्त हो, उसके साथ संचयी घाटा न जुड़ा हो और उस पर ऐसी देनदारी नहीं हो जिसे निपटाया न जा सके। विद्युत वितरण के मामले में कई उपभोक्ता क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां इन कंपनियों को राज्य सरकार की ओर से भारी भरकम सब्सिडी मुहैया कराई जा रही है। ऐसे में यह महत्त्वपूर्ण है कि राज्य नई निजी संस्था को भी परिवर्तन काल में स्पष्ट उल्लिखित रूप से वित्तीय समर्थन मुहैया कराते रहें। एसबीडी को अर्हता हासिल करने वाले बोलीकर्ताओं के क्षेत्र के निर्धारण के मुद्दे को भी हल करना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि हमारे देश में विद्युत वितरण, पारेषण और उत्पादन (1,000 मेगावॉट से अधिक) के क्षेत्र में बहुत सीमित ऐसी कंपनियां काम कर रही हैं जो इस क्षेत्र में रुचि दिखाएं। यदि ऐसे प्रावधान हों जो इस क्षेत्र में अपेक्षाकृत रचनात्मक समूहों को काम करने की इजाजत दें तो इससे संभावित बोलीकर्ताओं को काफी मदद मिलेगी। खासकर वित्तीय और तकनीकी क्षेत्र के अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को सहायता मिलेगी।
ऐसे हस्तांतरण का एक जटिल पहलू उस तरीके से भी जुड़ा है जो बिजली खरीद समझौतों के मौजूदा स्वरूप से ताल्लुक रखता है। एसबीडी में कहा गया है कि तमाम बिजली खरीद समझौतों को नई निजीकृत संस्था को स्थानांतरित कर दिया जाएगा। ऐसे में सस्ती बिजली खरीदने और उपभोक्ताओं के लिए शुल्क दर कम रखने के लिए जरूरी लचीलापन रह जाएगा। निजीकरण के लिए यह एक जरूरी कारण है। यदि विद्युत वितरण कंपनियों के पास सुविधा रहती है कि वे किस वितरण कंपनी का चयन करें और किसे छोड़ें तो दो बातें अहम हो जाती हैं: पहली बात, बिजली खरीद लागत में आने वाली कोई भी कमी जो इन समझौतों के पोर्टफोलियो के पुनर्संतुलन से हासिल होती है उसका लाभ उपभोक्ताओं को मिलता है। दूसरी अहम बात है एक ऐसी प्रणाली जो इन समझौतों के साथ इस्तेमाल के बिना मुक्त पड़ी क्षमता को नई संस्था को सौंप दे। हालांकि इसके साथ एक नैतिक दुविधा भी शामिल है जो हस्ताक्षरित बिजली खरीद समझौतों पर अनुबंध के अनुसार नियंत्रण नहीं रखने से संबंधित है। कुछ राज्यों ने हाल में ऐसा किया और उन्हें निवेशक समुदाय की नाराजगी का सामना करना पड़ा।
सबसे अहम मसला है संबंधित राज्य सरकार की मदद और राज्य नियामक का सहयोग। यह सहयोग बदलाव से जुड़े मुद्दों, कर्मचारी संगठनों के प्रतिरोध, बिलिंग, राशि संग्रह और बिजली काटने जैसी घटनाओं के कारण उपजी कानून व्यवस्था की स्थिति को संभालने में अपेक्षित होगा। निवेशकों के लिए ये सभी बातें अहम हैं और इन्हें हल करना होगा। घाटे को कम करने की प्रतिबद्धता इस बात पर निर्भर करती है कि वितरण बुनियादी ढांचे को उन्नत बनाया जाए। वितरण कंपनी के नए मालिक को नया पूंजीगत व्यय करना होगा ताकि वांछित तकनीकी किफायत हासिल की जा सके। ऐसी आश्वस्ति होनी चाहिए कि यह राशि बढ़े हुए टैरिफ के माध्यम से वसूल की जा सकती है और लोकलुभावन ताकतें इसे बाधित नहीं करेंगी। राज्य नियामक को ऐसे तमाम व्यय को मंजूरी देनी चाहिए। पूंजीगत व्यय के इस अहम विषय पर एसबीडी खामोश है।
मसौदा एसबीडी एक जरूरी पहला कदम है लेकिन इस क्षेत्र में अर्हता, वित्तीय प्रस्तावों के आकलन, विश्वसनीय विवाद निस्तारण प्रणाली, बोली के मानक, मौजूदा कर्मचारियों का समायोजन, पुराने बकाया वसूली पर प्रोत्साहन आदि कई मसलों को हल करना होगा। वितरण कंपनियों का निजीकरण आर्थिक सुधारों में सर्वाधिक जटिल होगा क्योंकि इसके लिए उपभोक्ताओं, बिजली क्षेत्र के श्रम संगठनों, निहित स्वार्थ वाले तत्त्वों, निवेशकों और सरकार के साथ हर स्तर पर बहुत अधिक सहयोग और संवाद जरूरी होगा। यदि हम इसे आकार दे पाते हैं तो यह बीते दशकों का सबसे बड़ा सुधार साबित होगा।

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