ब्रिटेन के साथ भारत के संबंध इस समय बहुत ही रोचक मोड़ पर हैं और दोनों की दोस्ती नए शिखर की ओर बढ़ती प्रतीत हो रही है। बता रहे हैं हर्ष वी पंत और शेरी मल्होत्रा
ब्रिटेन में 14 साल बाद सत्ता परिवर्तन के साथ नई सरकार के समक्ष भारत से संबंधों समेत विदेश नीति को लेकर कई चुनौतियां होंगी। दोनों देशों के लंबे साझा इतिहास के बावजूद वर्षों से भारत और ब्रिटेन के संबंध बहुत मजबूत नहीं रहे हैं। इसके अतिरिक्त लंबी ब्रेक्जिट प्रक्रिया तथा आंतरिक राजनीतिक उथल-पुथल के कारण भी ब्रिटेन को इस तरफ ध्यान देने की फुर्सत नहीं मिली।
ब्रेक्जिट के रास्ते से हटने के बाद भारत और ब्रिटेन की साझेदारी फिर पटरी पर लौटती दिख रही है। ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन की विदेश और व्यापार नीति तथा वैश्विक ब्रिटेन के रूप में विश्व पटल पर छाने की उसकी आकांक्षाओं में भारत की प्रमुख भूमिका इसकी खासियत है।
दोनों देशों के संबंध 2022 में तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के कार्यकाल में व्यापक रणनीतिक साझेदारी और द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत करने के लिए 2030 रोडमैप के साथ नई ऊंचाई पर पहुंचे।
लेबर पार्टी को जेरेमी कॉर्बिन के नेतृत्व काल के दौरान व्यापक रूप से भारत विरोधी माना जाता था। उस समय वह ब्रिटेन के मुस्लिम समुदाय को रिझाने के लिए अपने संदर्भों में बार-बार कश्मीर का जिक्र करती थी, क्योंकि मुस्लिम समुदाय लेबर पार्टी का बहुत बड़ा वोट बैंक था, लेकिन कियर स्टार्मर के नेतृत्व में पार्टी का रुख बदल गया है।
स्टार्मर ने यह स्पष्ट ऐलान किया कि लेबर पार्टी भारत के साथ-साथ ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय समुदाय के साथ बेहतर संबंध स्थापित करेगी। ब्रिटेन में भारतीय समुदाय की संख्या लगभग 18 लाख है, जो वहां की अर्थव्यवस्था में 6 फीसदी से अधिक योगदान देते हैं।
एजेंडे में व्यापार, सुरक्षा और प्रौद्योगिकी
अच्छी बात यह है कि भारत और ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को लेबर पार्टी और कंजर्वेटिव पार्टी दोनों दलों का समर्थन प्राप्त है। इससे नई लेबर पार्टी सरकार में भी इसके अंजाम तक पहुंचने की पूरी संभावना है। एफटीए का उद्देश्य दोनों देशों के बीच वर्ष 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करना है, जो इस समय लगभग 40 अरब पाउंड (करीब 4.27 लाख करोड़ रुपये) का है।
इससे भारत के कपड़ा, परिधान और रत्न क्षेत्र को खासा लाभ होगा। फिर भी इसमें भारत के उच्च शुल्क समेत कई पेच हैं, जो ऑटोमोबाइल और स्कॉच व्हिस्की के मामले में 100 से 150 फीसदी तक पहुंच सकता है। दूसरा मामला ब्रिटेन की भारतीय बाजार के सेवा क्षेत्र में पैठ बनाने की इच्छा का है। सेवा क्षेत्र ब्रिटिश अर्थव्यवस्था में 80 फीसदी योगदान देता है।
दूसरी ओर, भारत अपने कुशल पेशेवरों के लिए बेहतर गतिशीलता चाहता है। टोरीज (कंजर्वेटिव पार्टी) के शासन में यह राजनीतिक रूप से काफी विवाद का विषय बन गया था, क्योंकि टोरीज ने ब्रेक्जिट के लिए एंटी इमिग्रेशन व्यवस्था बनाने की वकालत की थी। इस मामले में लेबर सरकार नरम रुख अपनाते हुए कुछ रियायत दे सकती है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र के बदले रणनीतिक परिदृश्य के परिणामस्वरूप ब्रिटेन का झुकाव हिंद महासागर की ओर हुआ है। यह ब्रिटेन के इंटीग्रेटेड रिव्यू रिफ्रेश (आईआर रिफ्रेश 2023) रणनीति में दर्ज है, जो ब्रिटेन के हिंद-प्रशांत की ओर झुकाव को मजबूत करता है और नियम आधारित व्यापार के लिए भारत जैसे समान विचारधारा वाले देशों के साथ सहयोग पर जोर देता है।
इससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत और ब्रिटेन के बीच रणनीतिक साझेदारी बढ़ी है। दोनों देश संयुक्त सैन्य अभ्यास, नौसेना अंतर-संबंध एवं समुद्री क्षेत्र जागरूकता, आतंकवाद रोधी अभियान, मानवीय सहायता एवं आपदा राहत जैसे क्षेत्रों में सहयोग के जरिये समुद्री क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहे हैं। क्षेत्र में यूके कैरियर ग्रुप को तैनात करने के अलावा ब्रिटेन गुरुग्राम स्थित भारतीय नौसेना के सूचना संलयन केंद्र में भी शामिल हो गया है।
प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के पहले विदेश नीति भाषण, जिसमें ब्रिटेन और चीन संबंधों के ‘स्वर्ण युग’ के समाप्त होने का ऐलान था, से आगे बढ़ते हुए आईआर रिफ्रेश द्वारा चीन को एक बड़ी चुनौती के रूप में संदर्भित करने के परिणामस्वरूप भारत और ब्रिटेन के मतभेद कुछ कम हुए थे। भले ही चीन को एक खतरे के तौर पर पेश करने में यह रणनीतिक रूप से नाकाम रही हो।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सबसे सक्रिय यूरोपीय शक्ति के रूप में उभरने की चाहत और रक्षा खर्च 2030 तक अपनी जीडीपी का 2.5 फीसदी तक बढ़ाने की योजना के बावजूद ब्रिटेन की क्षमता और संसाधनों को लेकर कई बड़े सवाल बने हुए हैं।
अभी इस बारे में भी कुछ नहीं कहा जा सकता कि क्या लेबर सरकार टोरीज द्वारा शुरू की गईं हिंद-प्रशांत केंद्रित योजनाओं को जारी रखेगी या नहीं। इसके अलावा, यूरोप में अमेरिका का दबदबा घटने के बाद ब्रिटेन को यूरोपीय-अटलांटिक सुरक्षा प्रदाता, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता के लिए भारत जैसे सहयोगी के साथ मिलकर प्रयास करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
इसी साल जनवरी में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की ब्रिटेन यात्रा से दोनों देशों के बीच सुरक्षा और प्रतिरक्षा जैसे क्षेत्रों में साझेदारी को आगे बढ़ाने में मदद मिली। किसी भारतीय रक्षा मंत्री की 22 वर्षों में यह पहली ब्रिटेन यात्रा थी। वर्ष 2023 में दोनों देशों के बीच 2+2 की व्यवस्था के साथ संबंधों को नई उड़ान मिली।
इसके उलट एक तस्वीर यह भी सामने आती है कि पिछले दशक में भारत की कुल रक्षा खरीद का 3 फीसदी ही ब्रिटेन से आया, जबकि इस क्षेत्र में, विशेषकर उन्नत प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान से रक्षा विनिर्माण क्षेत्र को मजबूत करने की अधिक संभावनाएं विद्यमान हैं और निर्यात लाइसेंसिंग नियमों को आसान बनाने में भी गुंजाइश मौजूद है, ताकि रूसी हार्डवेयर पर भारत की निर्भरता कम हो सके।
भारत और ब्रिटेन प्रतिरक्षा के अलावा, आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI), सेमीकंडक्टर और हाई परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। ब्रिटिश फर्म एसआरएएम ऐंड एमआरएएम टेक्नोलॉजीज ने भारत के सेमीकंडक्टर क्षेत्र में 30,000 करोड़ रुपये निवेश की योजना बनाई है।
जलवायु के मोर्चे पर भी दोनों देश अनुसंधान और डिजाइन सहभागिता को मजबूत करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त फिनटेक, टेलीकॉम, स्टार्टअप और उच्च शिक्षा जैसे क्षेत्र भी काफी महत्त्वपूर्ण हैं। साइबर सुरक्षा क्षेत्र में दोनों देश उन्नत साइबर सहभागिता के माध्यम से नई इबारत लिख रहे हैं। यही नहीं, अमेरिका के अलावा ब्रिटेन ही ऐसा देश है, जिसके साथ भारत सालाना साइबर डायलॉग आयोजित करता है।
नए युग की शुरुआत
युद्धग्रस्त यूक्रेन को ब्रिटेन का ठोस समर्थन प्राप्त है। इधर, रूस के साथ भारत के घनिष्ठ संबंध भी जगजाहिर हैं। इसके बावजूद भारत और ब्रिटेन के आपसी संबंधों में कोई खास फर्क नहीं पड़ा है। कभी भारत एवं ब्रिटेन के संबंधों में खटास का कारण रहे पाकिस्तान और खालिस्तान जैसे पहले से चले आ रहे मुद्दे भी धीरे-धीरे किनारे हो गए हैं।
अब दोनों देश आपसी सहयोग को तवज्जो दे रहे हैं। नई ताकत के साथ खड़ी हो रही लेबर पार्टी के साथ भारत और ब्रिटेन के संबंधों में प्रगाढ़ता की बहुत ज्यादा संभावनाएं हैं, क्योंकि स्टार्मर ने भारतीय चिंताओं को दूर करने के लिए बहुत ही गंभीरता से प्रयास किया है।
लगातार तीसरी बार सत्ता में आई मोदी सरकार ने ऑस्ट्रेलिया, यूएई और यूरोपियन फ्री ट्रेड एसोसिएशन ब्लॉक के साथ व्यापार समझौतों के लिए नया दृष्टिकोण अपनाया है। भारत का यही नजरिया खासकर संरक्षणवादी अमेरिका और चीन की नीतियों के वैश्विक संदर्भ में, ब्रिटेन में चुनाव बाद राजनीतिक स्थिरता आने से एफटीए के लिए निर्धारित लक्ष्य की ओर आगे बढ़ने का ठोस आधार प्रदान करता है।
ब्रिटेन के साथ भारत के संबंध इस समय बहुत ही रोचक मोड़ पर हैं और दिशा चाहे जो भी हो, लेकिन दोनों देशों की दोस्ती नए शिखर की ओर बढ़ती प्रतीत हो रही है। पी5, जी7 और फाइव आइज के सदस्य के रूप में इस वक्त वैश्विक पटल पर ब्रिटेन का दबदबा है, जबकि भारत सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था और दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है। दोनों देश मिलकर आगे बढ़ने के लिए वैश्विक पटल पर अपने-अपने लिए भूमिका गढ़ने का प्रयास कर रहे हैं।
(हर्ष वी पंत स्टडीज ऐंड फॉरेन पॉलिसी के उपाध्यक्ष हैं तथा शेरी मल्होत्रा ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन नई दिल्ली में एसोसिएट फेलो (यूरोप) हैं।)