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बैंकिंग साख: जोखिम से बचने के लिए RBI का अग्रिम सतर्कता अभियान

कंपनी का जोखिम-प्रबंधन और अनुपालन के मानक से नियामक का आत्मविश्वास बढ़ा नहीं है, भले ही कंपनी का प्रबंधन किसी प्रशासनिक गड़बड़ी की बात स्वीकार नहीं करता है।

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तमाल बंद्योपाध्याय   
Last Updated- March 31, 2024 | 10:44 PM IST

हाल में मैं दोपहर के भोजन के लिए एक बैंकर मित्र के पास गया। वह मुंबई में एक आधुनिक हाउसिंग सोसाइटी में रहते हैं। इसमें रहने वाले अधिकांश निवासी वित्तीय क्षेत्र से जुड़े पेशेवर हैं, जिनमें से कई वाणिज्यिक और निवेश बैंकर, बीमा कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारी और म्युचुअल फंडों के वरिष्ठ अधिकारी हैं। अभी हमने खाना शुरू भी नहीं किया था कि एक कान फोड़ू अलार्म बज उठा। मुझे बताया गया कि यहां पूरे साल नियमित अंतराल पर सोसाइटी एक नियमित फायर ड्रिल कराती है।

हाउसिंग सोसाइटी इस ड्रिल के लिए कई चरणों में सावधानीपूर्वक योजना बनाती है। निवासियों को सतर्क कर दिया जाता है और उनके निकलने की प्रक्रिया पहले से ही निर्धारित कर दी जाती है और इसके अलावा इकट्ठा होने के लिए निर्धारित जगह भी तय होती है। ऐसे अलार्म का उपयोग कभी-कभी सप्ताह के अंत में निकासी का परीक्षण करने के लिए किया जाता है ताकि यह अंदाजा रहे कि आपातकालीन निकास ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं।

जब हम लंच करने लगे, तब मेरे दोस्त ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘हम हाउसिंग सोसाइटी का प्रबंधन उसी तरह करते हैं जिस तरह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) वित्तीय क्षेत्र का प्रबंधन करता है। दरअसल हम आग बुझाने के लिए दमकल विभाग को नहीं बुलाना चाहते हैं बल्कि हम चाहते ही नहीं हैं कि आग लगे। बचाव इलाज से बेहतर है।’

उस समय, मैंने इस बात को एक मजाक के रूप में लिया। लेकिन बाद में मुझे अहसास हुआ कि उसने जो कहा उसमें दम है। यह बिल्कुल आरबीआई का अभियान लगता है। कुछ विनियमित संस्थाओं के खिलाफ आरबीआई की हालिया कार्रवाई भी इसी ओर इशारा करती हैं। पेटीएम पेमेंट्स बैंक लिमिटेड की कार्रवाई का अंतिम दिन 15 मार्च था। उससे पहले, मार्च के पहले सप्ताह में आरबीआई ने नियामकीय चिंताओं का हवाला देते हुए आईआईएफएल फाइनैंस लिमिटेड के गोल्ड लोन कारोबार पर प्रतिबंध लगा दिया था।

आरबीआई की एक विज्ञप्ति में कहा गया, ‘पिछले कुछ महीने से आरबीआई कंपनी के वरिष्ठ प्रबंधन और वैधानिक ऑडिटर के साथ इन कमियों पर चर्चा कर रहा है। हालांकि, अब तक इसमें किसी सार्थक सुधारात्मक कार्रवाई का सबूत नहीं मिला है। ग्राहकों के समग्र हित में तत्काल प्रभाव से कारोबारी प्रतिबंध लगाना जरूरी हो गया है।’

मूल रूप से, कंपनी का जोखिम-प्रबंधन और अनुपालन के मानक से नियामक का आत्मविश्वास बढ़ा नहीं है, भले ही कंपनी का प्रबंधन किसी प्रशासनिक गड़बड़ी की बात स्वीकार नहीं करता है। दिसंबर 2023 में कंपनी के सोने का ऋण पोर्टफोलियो 24,700 करोड़ रुपये था, जो प्रबंधन के अंतर्गत कुल संपत्ति का लगभग एक-तिहाई था। आरबीआई ने जेएम फाइनैंशियल प्रोडक्ट्स लिमिटेड को भी तत्काल प्रभाव से शेयरों और डिबेंचर (ऋण पत्र) के बदले किसी भी प्रकार की फंडिंग करने, शेयरों के आरंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) के लिए ऋण मंजूरी और वितरण सहित सभी कार्यों को बंद करने का निर्देश दिया है।

कंपनी के आईपीओ और ऋण पत्र खरीदकर कंपनी में निवेश करने वाले कारोबार में कई गंभीर खामियों के बाद यह कठोर कार्रवाई की गई है। आरबीआई ने कहा, ‘नियामकीय दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के अलावा कंपनी में प्रशासन के मुद्दों पर गंभीर चिंताएं हैं, जो हमारे आकलन में ग्राहकों के हित के लिए हानिकारक हैं।’

जेएम फाइनैंशियल नियामक के फैसले से खुश नहीं है। उसका मानना है कि उनकी ऋण मंजूरी की प्रक्रिया में कोई कमी नहीं रही है और प्रशासन संबंधी समस्या तो बिल्कुल नहीं रही है। इन कार्रवाइयों से कुछ महीने पहले ही पिछले साल नवंबर में, आरबीआई ने बजाज फाइनैंस लिमिटेड को अपनी दो ऋण योजनाओं, ई-कॉम और इंस्टा ईएमआई कार्ड के तहत तत्काल प्रभाव से ऋण मंजूरी और इनके वितरण को रोकने का निर्देश दिया था। आरबीआई ने कहा कि यह कार्रवाई, कंपनी द्वारा डिजिटल ऋण देने के दिशानिर्देशों के मौजूदा प्रावधानों का पालन न करने के कारण आवश्यक हो गई थी।

इन सभी फैसले से अंदाजा मिलता है कि नियामक ने पहले के पर्यवेक्षण करने के अपने तरीके बदल दिए हैं और यह किसी बड़े जोखिम को रोकने के लिए नियमित निगरानी पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।

वर्ष 2018 के अंत में, दिग्गज कंपनी इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग ऐंड फाइनैंशियल सर्विसेज (आईएलऐंडएफएस) दो भुगतान में विफल रहने के बाद दिवालिया हो गई। इसके बाद ही गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में चौथी सबसे बड़ी गिरवी के जरिये फंडिंग करने वाली कंपनी, दीवान हाउसिंग फाइनैंस कॉर्पोरेशन (डीएचएफएल) को लेकर नाटकीय घटनाक्रम देखने को मिले। एक बड़े म्युचुअल फंड ने डीएचएफएल वाणिज्यिक पत्र को भारी छूट पर बेच दिया, जिससे बाजार में दहशत पैदा हो गई और एक दिन में डीएचएफएल के शेयर की कीमत में 60 प्रतिशत की गिरावट आई।

कंपनी कुछ महीने तक चलने में कामयाब रही, लेकिन जून 2019 में ऋण निर्गम पर ब्याज भुगतान में चूक के चलते यह डिफॉल्ट श्रेणी में डाउनग्रेड कर दी गई। उस समय तक, आम चुनाव हो चुके थे और एक नई सरकार (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का दूसरा कार्यकाल) सत्ता में आ चुकी थी। आरबीआई के इन कदमों को उठाने से जुड़े जोश को सही संदर्भ में देखने की जरूरत है। ऐसा करने का यही समय है क्योंकि वित्तीय क्षेत्र में प्रतिकूल परिस्थितियों से उबरने की क्षमता चरम पर है।

बैंकों में कुल ऋण संपत्ति के प्रतिशत के रूप में गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) का स्तर ऐतिहासिक रूप से निम्नतम है। इसके अलावा, इनका प्रावधान कवरेज अनुपात (फंसी परिसंपत्तियों को संभालने के लिए अलग रखी गई राशि) बढ़ रहा है। साथ ही बैंक का पूंजीकरण भी काफी अच्छा है।

नियामक के लिए अक्सर यह दोधारी तलवार वाली स्थिति होती है। एक तरफ, अगर यह सही कारणों के लिए भी विनियमित संस्थाओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करती है तो इसके आक्रामक होने का खतरा रहता है। दूसरी ओर, यदि यह कार्रवाई करने में तेजी नहीं दिखाता है तब उसके लापरवाह होने की बात कही जाती है। नई सरकार बनने के बाद कार्रवाई फिर से शुरू हो सकती है।

First Published : March 31, 2024 | 10:44 PM IST