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कृषि आंकड़ों के डिजिटलीकरण से पहले जन-जागरूकता जरूरी

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 12:00 AM IST

भारतीय कृषि के डिजिटलीकरण की कवायद में कॉर्पोरेट जगत को भी जोडऩे की सरकार की हालिया पहल से इस मुहिम को तेजी मिलने की उम्मीद जगी है। इस कदम का मुख्य उद्देश्य कृषि क्षेत्र के उत्पादन से लेकर खपत तक की मूल्य शृंखला में शामिल विभिन्न पक्षों को इस लायक बनाना है कि वे अपने पेशेवर एवं कारोबारी मसलों से जुड़े सूचना-आधारित निर्णय कर सकें। इस कवायद के केंद्र में विराजमान किसानों की डिजिटल पहुंच हो सकेगी जिससे वे समय पर परिस्थिति के मुताबिक समस्या के समाधान के तरीके जान सकें। उन्हें इस बारे में भी सुझाव मिल सकेंगे कि कौन-सी फसलें और उनकी कौन-सी किस्में उगाई जाएं और उपज की बढिय़ा कीमत पाने के लिए उन्हें कब और कहां पर बेचा जाए? इससे संबंधित प्रायोगिक परियोजना चलाने के लिए हाल ही में कृषि मंत्रालय ने पांच कारोबारी समूहों के साथ औपचारिक समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। प्रायोगिक परियोजना एक साल के लिए कुछ खास इलाकों में चलाई जाएंगी। अगर उपयोगी पाए गए तो फिर दूसरे इलाकों में भी इनका विस्तार किया जाएगा। वर्ष 2021-25 की अवधि के लिए डिजिटल कृषि मिशन भी शुरू किया गया है जिसमें कृत्रिम मेधा, ब्लॉकचेन डेटा सुरक्षा, सुदूर संवेदी, भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस), ड्रोन एवं रोबोट जैसी नई तकनीकों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने पर जोर दिया जाएगा।
इन कंपनियों में रिलायंस समूह की आईटी इकाई जियो, अमेरिकी बहुराष्ट्रीय टेक कंपनी सिस्को, आईटीसी, अग्रणी कमोडिटी एक्सचेंज कंपनी एनसीडीईएक्स की आईटी शाखा एनईएमएल और ताजा उपज की आपूर्ति करने वाली कंपनी निन्जाकार्ट शामिल है।
करीब 5.5 करोड़ किसानों के कृषि-संबंधी आंकड़ों का पहले ही डिजिटलीकरण हो चुका है। इस साल के अंत तक यह आंकड़ा 10 करोड़ किसानों तक पहुंच जाने की उम्मीद है। कृषि मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, इस डेटाबेस को किसानों के जमीन संबंधी रिकॉर्ड से जोड़ा जाएगा जिससे एक राष्ट्रीय डेटा संसाधन बनाया जा सके। हरेक किसान को एक विशिष्ट पहचान संख्या जारी करने में ये डेटा बहुत काम आएगा। किसान आईडी की मदद से किसानों को केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा दिए जाने वाले नकद लाभ एवं दूसरे तरह के समर्थन एवं सेवाओं के लिए चिह्नित करने में आसानी होगी।
जियो एवं उसकी सहयोगी इकाइयों ने पहले ही ‘जियोकृषि’ प्लेटफॉर्म बनाया हुआ है जो मृदा परीक्षण एवं जल उपलब्धता के आधार पर फसल उत्पादकों को परामर्श देने के साथ सीधे कृषि वैज्ञानिकों से किसानों का संवाद स्थापित करने में भी मदद करता है। नई परियोजना के तहत महाराष्ट्र के जालना एवं नाशिक जिलों में इस तरह की सेवाओं का विस्तार किया जाएगा। इसी तरह अपनी ई-चौपाल नेटवर्क के लिए मशहूर कंपनी आईटीसी ने स्थान-केंद्रित  डिजिटल फसल परामर्श सेवा शुरू करने का प्रस्ताव रखा है और इसके साथ किसानों को खेतों में इन सुझावों पर अमल के लिए जरूरी मदद भी मुहैया कराएगी। आईटीसी ने मध्य प्रदेश के सीहोर एवं विदिशा जिलों के चुनिंदा गांवों में गेहूं की खेती के समय अपनी सेवाएं मुहैया कराने का प्रस्ताव रखा है। सिस्को ने अपनी साझेदार क्वांटेला के साथ मिलकर डिजिटल कृषि ढांचा खड़ा किया है और उन्नत कृषि तरीकों से जुड़ी जानकारी साझा करने के लिए इसे दूसरे सूचना प्रौद्योगिकी एवं कृत्रिम मेधा टूल से जोड़ा भी है। कंपनी हरियाणा के कैथल और मध्य प्रदेश के मुरैना में इसी तरह का डिजिटल नेटवर्क खड़ा करने में मदद करेगी।
एनईएमएल किसानों की समस्याओं के समाधान तलाशने के लिए सक्षम करने वाली तकनीकों का इस्तेमाल करेगी। बाजारों को इलेक्ट्रॉनिक तरीके से एक-दूसरे से जोडऩे, मांग बढ़ाने, वित्तीय संबद्धता और डेटा प्रबंधन में संलग्न एनईएमएल उपज की आवक, कीमतों के रुझान और गोदामों की मौजूदगी के बारे में सूचनाएं इक_ा करेगी। वह आंध्र प्रदेश के गुंटूर, कर्नाटक के दावणगेरे और महाराष्ट्र के नाशिक जिलों के किसानों को यह तकनीकी मदद मुहैया कराएगी। निन्जाकार्ट मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा एवं इंदौर और गुजरात के आणंद में एक कृषि-बाजार प्लेटफॉर्म के विकास के लिए काम करेगी। इसके लिए फसल कटाई के बाद उपज को बाजार तक पहुंचाने से जुड़े सभी पक्षों को एक साथ लाने की कोशिश की जाएगी।
हालांकि ऐसा लगता है कि कृषि संगठनों के एक तबके को ये प्रस्ताव कुछ खास अच्छे नहीं लगे हैं। खासकर वामपंथी रुझान वाले कृषि संगठनों को नए प्रस्ताव ज्यादा पसंद नहीं आए हैं। पहली नजर में किसानों के लिए फायदेमंद नजर आ रहे इन प्रस्तावों पर उनकी आपत्ति किसानों से जुड़े आंकड़ों तक निजी कंपनियों की पहुंच होने को लेकर है। उनकी आपत्तियां किसानों का निजी ब्योरा सार्वजनिक करने, बदहाली में रखे भूमि दस्तावेजों को गलत तरीके से पेश करने और कृषि के कॉर्पोरेट चंगुल में फंसने की आशंकाओं से जुड़ी हुई हैं। उनका कहना है कि ऐसा होने से असली खेतिहर किसानों के हितों के साथ खिलवाड़ होने लगेगा।
हालांकि सरकार ने इन आशंकाओं को दूर करने की कोशिश करते हुए कहा है कि किसानों से संबंधित डिजिटल डेटा को सुरक्षित रखने का पूरा ध्यान रखा जाएगा। सरकार का कहना है कि किसानों के बारे में निजी जानकारियों को किसी भी संगठन के साथ साझा नहीं किया जाएगा। कृषि संबंधित आंकड़ों के संकलन, संरक्षण एवं सुरक्षा के लिए एक अलग नीति भी बनाई जा रही है। कृषि मंत्रालय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साथ मिलकर इस नीति का खाका बनाने में लगा हुआ है।
बहरहाल, कृषि क्षेत्र में किए गए सुधारों को लेकर किसानों के बीच व्याप्त तमाम आशंकाओं को देखते हुए कृषि मंत्रालय के लिए यही मुफीद होगा कि कृषि आंकड़ों को डिजिटल करने से संबंधित किसानों की चिंताओं को पहले दूर किया जाए। मौजूदा वक्त की दरकार यही है कि इसके बारे में सुव्यवस्थित जागरूकता अभियान चलाया जाए। तीन नए कृषि कानूनों को लेकर किसानों के व्यापक विरोध को देखते हुए यह अनिवार्य है कि उनकी कड़ी प्रतिक्रिया को शांत किया जाए।

First Published : October 25, 2021 | 11:35 PM IST