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तेजी के बाद की दुविधा

Last Updated- December 11, 2022 | 11:53 PM IST

शेयर बाजार में बीते वर्ष के ठहराव के बाद तेजी देखने को मिली। आप इस तेजी को कुछ हद तक बेलगाम भी कह सकते हैं क्योंकि अगले सप्ताह दीवाली के साथ समाप्त होने वाले पारंपरिक लेखा वर्ष में 30 शेयरों वाले बेंचमार्क सूचकांक सेंसेक्स ने 40 प्रतिशत की असाधारण तेजी दर्ज की। बीते एक दशक में यह पहला वर्ष है जब निवेशकों को इतना फायदा मिला। राकेश झुनझुनवाला जैसे हमेशा आशावादी रहने वाले कुछ लोगों को छोड़ दिया जाए तो कोई भी इस तेजी का पूर्वानुमान नहीं लगा पाया था। मार्च 2020 में कोविड के आगमन के बाद से अब तक झुनझुनवाला का पोर्टफोलियो 150 फीसदी बढ़ चुका है।
इसके बावजूद इस बात की अनदेखी नहीं की जा सकती है कि यह ‘वास्तविक’ दुनिया से किस हद तक अलग-थलग है। इस वर्ष कोविड महामारी की दूसरी लहर ने भीषण त्रासदियों को जन्म दिया और महामारी ने आर्थिक स्थिति पर क्या प्रभाव डाला है वह भी अब तक स्पष्ट हो चुका है। इस वर्ष आर्थिक गतिविधियों में जो सुधार हुआ है वह बमुश्किल पिछले वर्ष गतिविधियों में आई गिरावट की भरपाई के बराबर ही है। यदि आधिकारिक आंकड़ों पर भरोसा करें तो अर्थव्यवस्था कोविड के पहले के स्तर पर पहुंचती मानी जा सकती है। यह शेयर बाजार में 40 फीसदी की उछाल और शेयर कीमतों में पिछले वर्ष की तुलना में दो अंकों की तेजी की वजह नहीं होनी चाहिए। तुलना करें तो 2016 की दीवाली तक के छह वर्षों में सेंसेक्स में केवल एक तिहाई की तेजी आई थी और उसके बाद अगले तीन संवत वर्षों में इसमें 40 फीसदी की और बढ़ोतरी हुई। यानी नौ वर्षों में कुल मिलाकर 80 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली। सन 2019 की दीवाली में किसी ने नहीं सोचा होगा कि बाजार कम कीमत पर संचालित है।
यह स्पष्ट है कि कोविड के आर्थिक प्रभाव से निपटने के लिए प्रचुर नकदी और कम ब्याज दरों का इस्तेमाल किया गया और इन दोनों बातों ने शेयर बाजार में तेजी को गति दी है। इन कारकों के अलावा यह भी कहा जा सकता है कि कॉर्पोरेट और बैंकिंग क्षेत्र बेहतर स्थिति में हैं और इसलिए भी बाजार में तेजी देखी जा रही है। इसके अलावा बाजार भविष्य की ओर नजर डाल रहा है, न कि अतीत की ओर। वरना नायिका की प्रारंभिक पेशकश के मूल्य और पेटीएम की अनुमानित पेशकश मूल्य को कैसे स्पष्ट किया जाएगा?
बाजार में ऐसी तेजी के अवसर पर असल मुद्दा होता है मध्यम अवधि में वृद्धि का परिदृश्य। सरकार सोचती है कि वह 8 फीसदी की वृद्धि की ओर नजर कर सकती है लेकिन उसका सोचना तो हमेशा ऐसा ही रहता है फिर चाहे जमीन पर जैसा भी प्रदर्शन रहे। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का सोचना है कि मध्यम अवधि में हमारी वृद्धि दर 6 फीसदी रहेगी। निश्चित तौर पर भविष्य के प्रदर्शन को प्रभावित करने वाले अनेक कारक हैं: खपत में धीमापन, रोजगार को क्षति और इनके चलते क्षमता का कम इस्तेमाल (73 फीसदी के दीर्घकालिक औसत की तुलना में फिलहाल 63 फीसदी क्षमता से काम हो रहा है)। इसका असर नए निजी निवेश की समयावधि पर पड़ेगा। इसमें जो अंतराल पैदा होगा उसे सरकारी निवेश से भरा जा सकता है लेकिन केवल एक सीमा तक ही ऐसा किया जा सकता है क्योंकि घाटे और सार्वजनिक ऋण का स्तर बढ़ा हुआ है। इन बातों को देखते हुए इसमें बहुत कम संदेह है कि बाजार ने हाल के सप्ताहों में कुछ ज्यादा ही तेजी दिखाई है। वह प्राय: ऐसा करता रहता है। यह धारणा व्यापक हो गई है कि भारतीय बाजार अन्य बाजारों की तुलना में महंगे हैं। इस बात ने खरीदारी की गति को प्रभावित किया है। संभावना यही है कि नए संवत में बाजार में गिरावट आएगी या कम से कम वह बीते वर्ष की तेजी का समायोजन करेगा।
निवेशकों के सामने क्या विकल्प हैं? प्रमुख बाजारों के केंद्रीय बैंक संकेत दे रहे हैं कि वे अतिरिक्त नकदी की खपत करेंगे। ऐसे में ब्याज दरों में केवल तेजी आ सकती है। इसका बॉन्ड कीमतों पर नकारात्मक असर होगा और वे अनाकर्षक विकल्प हो जाएंगी। दो वर्ष की तेजी के बाद सोना अपनी चमक एक वर्ष पहले ही खो चुका है। परंतु अच्छी मांग और मुद्रास्फीति के जोखिम के बीच वह लगातार महंगा ही बना हुआ है। अचल संपत्ति की बात करें तो कीमतों में कमी आई है लेकिन अनबिके मकानों की तादाद आसान पूंजीगत लाभ के खिलाफ जाती है। इकलौता विकल्प शेयर बाजार की तेजी के रूप में सामने आया। यहां लाभ कमाने के लिए आप में शेयर चयन की समझ और जोखिम लेने की भूख दोनों का होना जरूरी है।

First Published - October 29, 2021 | 11:06 PM IST

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