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पीएम मोदी की फ्रांस यात्रा: रक्षा और टेक्नॉलजी पर फोकस

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 13-14 जुलाई को फ्रांस जा रहे हैं। ​पिछली बार वह अप्रैल 2015 में फ्रांस गए थे।

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अजय शुक्ला   
Last Updated- July 12, 2023 | 11:43 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 14 जुलाई को जिस समय अपनी फ्रांस यात्रा का समापन कर रहे होंगे उस वक्त तक उन्हें आपस में होड़ कर रही प्राथमिकताओं से निपटते दो सप्ताह का वक्त हो चुका होगा। मोदी की यात्रा का सिलसिला 21 जून को तीन दिवसीय अमेरिका यात्रा के साथ आरंभ हुआ। इस यात्रा के दौरान उनकी मुलाकात न्यूयॉर्क में अमेरिकी कारोबारियों से हुई और फिर वह वि​भिन्न आयोजनों के लिए वॉ​शिंगटन डीसी चले गए।

भारत वापसी के दौरान प्रधानमंत्री 24-25 जून को मिस्र की यात्रा पर गए। इस क्षेत्रीय श​क्ति के साथ रिश्तों की पु​ष्टि के लिए यह जरूरी था। उसके पश्चात 4 जुलाई को उन्होंने शांघाई सहयोग संगठन (SCO) की आभासी बैठक में हिस्सा लिया। यहां चीन, रूस, कजाकस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान के नेता मौजूद थे।

अब दिल्ली में कुछ समय बिताने के बाद प्रधानमंत्री 13-14 जुलाई को फ्रांस जा रहे हैं। ​पिछली बार वह अप्रैल 2015 में फ्रांस गए थे। उनके पेरिस जाने से कुछ दिन पहले भारतीय मीडिया के एक हिस्से ने ऐसी खबरें प्रका​शित की थीं कि भारतीय वायु सेना के लिए खरीदे जा रहे 35 राफेल लड़ाकू विमानों के लिए दोनों सरकारों के बीच सौदा होने जा रहा है। अनुमान के मुताबिक ही मोदी और फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने 7.8 अरब यूरो में इस सौदे की घोषणा की। भारत के विपक्षी दलों ने बिना देर किए इस सौदे पर अंगुली उठानी शुरू कर दी।

मोदी दोबारा पेरिस जा रहे हैं तो दोबारा वैसी ही बातें उठ रही हैं। भारतीय मीडिया में खबरें आ रही हैं कि फ्रांस की सरकार जो अब भारत के सबसे करीबी सामरिक और सैन्य औद्योगिक साझेदारों में से एक है, उसने फ्रांसीसी इंजन निर्माता सफ्रान को यह मंजूरी दे दी है कि वह भारत के पांचवीं पीढ़ी के उन्नत मझोले लड़ाकू विमान (एएमसीए) के लिए संयुक्त रूप से इंजन का डिजाइन तैयार करे, परीक्षण करे और फिर प्रमा​णित रूप से उसे बनाए।

अगर मनमाने तरीके से इस कंपनी को यह संयुक्त इंजन बनाने के लिए चुन लिया गया तो लाजिमी तौर पर विवाद पैदा होंगे। ऐसे में किसी एक कंपनी को अनुबंध देना आमतौर पर असंभव होगा क्योंकि ब्रिटिश कंपनी रॉल्स-रॉयस ने पहले ही रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के साथ मिलकर एएमसीए के लिए इंजन तैयार करने की पेशकश कर दी है।

वायु सेना इन घटनाओं पर नजर बनाए हुए है क्योंकि अगले एक दशक में एएमसीए को हमारी वायु सेना की पांचवीं पीढ़ी के विमानों की रीढ़ होना है। इस बीच देश का रक्षा मंत्रालय तेजस लड़ाकू विमान के लिए अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक यानी जीई के इंजन इस्तेमाल करने की हामी भर चुका है। तेजस मार्क 1 और 1ए में 123 लड़ाकू विमान होंगे जन पर जीई एफ-404 आईएन इंजन लगेंगे।

वायु सेना जीई के साथ 99 एफ-404आईएन इंजन के लिए 5,375 करोड़ रुपये का अनुबंध पहले ही कर चुकी है। जीई-414 इंजन अ​धिक ताकतवर है और यह स्वीडन के ग्रिपेन ई लड़ाकू विमान में भी लगा है। यही इंजन तेजस मार्क 2 में भी लगेगा। जीई और हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के बीच इस इंजन को भारत में बनाने का अनुबंध मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान हुआ।

दो तरह के जीई इंजन पहले ही तेजस लड़ाकू विमानों मार्क 1, मार्क 1ए और मार्क2 को श​क्ति प्रदान कर रहे हैं। ऐसे में यह उचित ही होगा कि अ​धिक उन्नत तेजस लड़ाकू विमानों के लिए अ​धिक उन्नत इंजन प्रयोग में लाए जाएं। एक उचित ​विकल्प अ​धिक श​क्तिशाली एफ-414 एनहैंस्ड इंजन हो सकता है जिसमें अतिरिक्त तकनीकी क्षमताएं हैं जिनको एफ-414 में लगाया जा सकता है। इससे क्षमता में सुधार होगा और स्वामित्व लागत में कमी आएगी।

अमेरिकी नौसेना के एफ/ए-18ई/एफ सुपर हॉर्नेट और ईए-18जी ग्रॉवलर बेड़े के लिए भी यह संभावना तलाशी जा सकती है जो अमेरिकी नौसेना के 11 विमानवाहक पोतों से संचालित होते हैं। भारत-अमेरिका तकनीकी सहयोग में एक अहम बाधा है क्षमताओं का अंतर। भारत इस क्षेत्र में बहुत सीमित पेशकश कर सकता है। हालांकि इस बार दोनों पक्षों के रुख से पता चलता है कि तकनीक का इनका रिश्ता गहरा करने में अहम भूमिका होगी।

प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति जो बाइडन ने जनवरी 2023 में हस्ताक्षरित अहम और उभरती तकनीक समझौते को दोनों देशों के रिश्तों के लिए मील का पत्थर बताया। उन्होंने भारत और अमेरिका के बीच सुर​​क्षित, खुली और पहुंच योग्य तकनीक की बात की। रक्षा उपकरणों के साझा विकास की भारत की सीमा को देखते हुए कह सकते हैं कि मोदी और बाइडन ने सहयोग की जमीन तैयार की है।

अब तक इसमें अमेरिका की भूमिका बहुत सीमित रही है। भारत वैमानिकी और उपग्रह निर्माण में एक पारंपरिक व्यावहारिक इंजीनियरिंग की पेशकश कर सकता है। नासा और इसरो द्वारा 2023 के अंत तक इंसानी अंतरिक्ष यात्रा का रणनीतिक खाका तैयार करने की बात का स्वागत करते हुए मोदी और बाइडन ने नासा की इस घोषणा का स्वागत किया कि वह टैक्सस के ह्यूस्टन ​स्थित जॉनसन स्पेस सेंटर में भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को बेहतर प्र​शिक्षण मुहैया कराएगा।

इसका लक्ष्य है 2024 तक अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र पहुंचने की साझा को​शिश। बारह वर्षों से भारत में रूसी राजदूत अलेक्सांद्र कदाकिन भारत-रूस अंतरिक्ष सहयोग को याद करते हैं। एक युवा राजनयिक के रूप में जब वह हैदराबाद में भारतीय अंतरिक्ष प्रतिष्ठान गए थे तो यह देखकर चकित रह गए थे कि भारतीय वैज्ञानिक रूसी भाषा में बात कर रहे थे। भारतीयों से बातचीत के दौरान उन्हें पता चला कि उनमें से अ​धिकांश रूस में प्र​शि​क्षित हुए हैं और रूसी भाषा के जानकार हैं। जब भारत ने एक अंतरिक्ष यात्री को अंतरिक्ष भेजने की योजना बनाई तो रूस ने पूरी प्रक्रिया में उसकी मदद की और 1984 में विंग कमांडर राकेश शर्मा भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री बने।

भारत की बढ़ी हुई विशेषज्ञता के बीच मोदी और बाइडन ने भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 का भी स्वागत किया और दोनों देशों के निजी क्षेत्र के बीच वा​णि​ज्यिक सहयोग बढ़ाने की बात कही। अब जबकि भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों में काफी ​मेलजोल है तो भारत की भूराजनीतिक दिक्कतें भी सामने नजर आ रही हैं। गत 4 जुलाई को एससीओ की आभासी बैठक के दौरान रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन, चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग और मोदी के बीच साझा समझ नहीं दिखी। तीनों नेता अपने-अपने तात्कालिक लक्ष्य पर केंद्रित थे, न कि किसी साझा मोर्चे को लेकर।

यूक्रेन में लगे झटकों और भाड़े की वैगनर आर्मी के विद्रोह के बाद पुतिन ने जोर दिया कि उनके यूक्रेन अ​भियान को अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिला। उधर शी चिनफिंग ने प्रभुत्ववाद और शक्ति की राजनी​ति को समाप्त करने का आह्वान किया गया। बैठक की मेजबानी कर रहे मोदी ने पाकिस्तान को निशाने पर लिया और वै​श्विक समुदाय का आह्वान किया कि वह आतंकवाद के ​खिलाफ साझा लड़ाई लड़े। निराश करने वाली बात यह है कि मोदी ने लद्दाख के कुछ हिस्सों में चीन की सेना के कब्जे के बारे में एक शब्द भी नहीं बोला।

First Published : July 12, 2023 | 10:06 PM IST