माना जा रहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) इस सप्ताह होने वाली अपनी द्वैमासिक बैठक में नीतिगत दरों तथा रुख को अपरिवर्तित रखेगी। हालांकि आर्थिक परिदृश्य हाल के दिनों में ज्यादा अनिश्चित हुआ है। कोविड-19 का एक नया रूप ओमीक्रोन जिसका पता दक्षिण अफ्रीका में चला था, उसके बारे में कहा जा रहा है कि वह डेल्टा रूप की तुलना में अधिक संक्रामक है। देश में कोविड की दूसरी लहर के लिए डेल्टा को बड़ी वजह माना गया। हालांकि वैज्ञानिकों को वास्तविक स्थिति का आकलन करने में कुछ और वक्त लग सकता है लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ओमीक्रोन को चिंता की वजह बताया है। इसके परिणामस्वरूप वित्तीय बाजारों में अनिश्चितता बढ़ी है। यह सब ऐसे समय हुआ है जब वैश्विक आर्थिक सुधार के गति खोने का अनुमान लगाया जा रहा है। कोविड-19 के मामले दुनिया भर में पुन: बढऩे लगे तो वृहद आर्थिक जोखिम बढ़ेगा और वृद्धि, मुद्रास्फीति और सरकारी वित्त पर दबाव बनेगा।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति में पिछले कुछ महीनों में कमी आई है और दरें तय करने वाली समिति के लिए यह राहत की बात होगी। हालांकि इस गिरावट के लिए कुछ हद तक आधार प्रभाव भी उत्तरदायी है। केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा पेट्रोलियम उत्पादों पर करों में कटौती तथा हाल के महीनों में कच्चे तेल की कीमतों में कमी से मुद्रास्फीति पर कुछ हद तक अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। हालांकि मूल मुद्रास्फीति स्थिर बनी रही है। इस बात की काफी संभावना है कि दुनिया के अन्य हिस्सों में संक्रमण में संभावित वृद्धि न केवल मांग को प्रभावित करेगी बल्कि इससे पिछले कुछ महीनों में तैयार आपूर्ति शृंखला पर भी असर होगा। ऐसे में कीमतों पर दबाव बढ़ सकता है जो मुद्रास्फीति के रूप में सामने आएगा। अमेरिकी फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने हाल ही में अमेरिकी सांसदों से कहा कि उच्च मुद्रास्फीति का जोखिम बढ़ा है। पहले फेड ने इसे अस्थायी बताया था।
अब वित्तीय बाजारों को आशा है कि फेडरल रिजर्व को अपने परिसंपत्ति खरीद कार्यक्रम की गति बढ़ानी होगी और ब्याज दरें बढ़ाने की दिशा में आगे बढऩा होगा। अमेरिका में मुद्रास्फीति की दर 2 फीसदी के लक्ष्य से ऊपर है और अक्टूबर में यह 6.2 फीसदी के साथ तीन दशक के उच्चतम स्तर पर थी। हालांकि दुनिया वायरस के साथ जीना सीख रही है और लोगों की आवाजाही तथा आर्थिक गतिविधियों पर इसका प्रभाव शुरुआती दौर की तुलना में काफी कम हो गया है। लेकिन यह अभी भी वृद्धि और आपूर्ति शृंखला को प्रभावित करेगा। इससे नीति प्रबंधकों की जटिलताएं बढ़ेंगी। आरबीआई ने महामारी के बाद की बढ़ी हुई दर को अस्थायी बताया था। हालांकि दर में कमी आई लेकिन इसके दोबारा बढऩे की आशंका है।
आरबीआई ने नीति के सामान्यीकरण की प्रक्रिया उचित ही शुरू की थी और अपनी बॉन्ड खरीद योजना को बंद कर दिया था। उसने रिवर्स रीपो रास्ते के जरिए नकदी को समेटना भी शुरू कर दिया है। केंद्रीय बैंक के लिए अगला कदम होगा नीतिगत स्थिति को सामान्य बनाना। इसके लिए उसे रिवर्स रीपो दर में इजाफा करना होगा। वह ऐसा एक बारगी नहीं करने का निर्णय भी कर सकता है और बाजार को समायोजन के लिए कुछ वक्त दे सकता है। सरकार का इरादा बजट की तुलना में अधिक राशि व्यय करने का है और ऐसा करने से उधारी की जरूरत बढ़ सकती है। इससे बॉन्ड कीमतें प्रभावित होंगी। आरबीआई को कीमतों को समायोजित होने देना चाहिए। इस चरण में नीतिगत सामान्यीकरण की प्रक्रिया एमपीसी के दायरे के बाहर है और आरबीआई को इस पथ पर आगे बढऩा चाहिए। इस प्रक्रिया को रोकने या इसमें देरी करने से अनावश्यक भ्रम उत्पन्न होगा तथा नीतिगत विश्वसनीयता पर असर पड़ेगा।