विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी भारतीय कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों के केबिन में तेजी से बदलाव देखा जा रहा है। शीर्ष अधिकारी के कार्यालय में बैठने वाला सबसे उपयुक्त व्यक्ति कौन होना चाहिए, इस सवाल को लेकर सर्च कंपनी के अधिकारी और सलाहकार बेहद व्यस्त हैं।
प्राइमइन्फोबेस के आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट के अनुसार, तकनीकी क्षेत्र की चुनौतियों और विनिर्माण जैसे अन्य क्षेत्रों में बढ़ते अवसरों के बीच सूचीबद्ध और गैर-सूचीबद्ध दोनों तरह की कंपनियों से मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) द्वारा कंपनी छोड़ने की रफ्तार में काफी वृद्धि हुई है।
सीईओ के कंपनी छोड़ने की संख्या पिछले साल की तुलना में 18 प्रतिशत बढ़कर 2022 में 166 हो गई जबकि मौजूदा कैलेंडर वर्ष के पहले तीन महीने में ही 43 लोगों ने नौकरी छोड़ी।
शीर्ष पद को जल्द भरने की हड़बड़ी के कारण कई कंपनियां उपयुक्त उम्मीदवारों को अपनी कंपनी के भीतर ही तलाश कर रही हैं। इसके अलावा सीईओ का पद लेने के लिए कंपनी के मुख्य वित्तीय अधिकारी (सीएफओ) के लिए भी प्राथमिकता बढ़ रही है। हाल ही में इस्तीफा देने वाले प्रमुख सीईओ में से कुछ पहले सीएफओ ही थे। इसके अलावा कुछ अन्य सीएफओ को हाल ही में सीईओ नियुक्त किया गया है।
हाल ही में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) के सीईओ पद से इस्तीफा देने वाले राजेश गोपीनाथन इससे पहले कंपनी के सीएफओ थे। जब एन चंद्रशेखरन 2017 में टीसीएस के सीईओ से टाटा संस के चेयरमैन बने, तब गोपीनाथन को देश की सबसे बड़ी आईटी कंपनी के सीएफओ से सीईओ का पद दिया गया।
हाल के अन्य उदाहरणों पर भी गौर करें तो, हीरो मोटोकॉर्प के सीएफओ निरंजन गुप्ता का नाम सामने आता है जब कंपनी का सीईओ नामित किया गया था। भारतपे ने भी अपने सीएफओ नलिन नेगी को अंतरिम सीईओ नामित किया क्योंकि सुहैल समीर ने सीईओ के पद से इस्तीफा दे दिया था।
इन्फोसिस में बैंकिंग, वित्तीय सेवाओं के प्रमुख और अध्यक्ष रहे मोहित जोशी को टेक महिंद्रा का सीईओ नामित किया गया था। पिछले साल वोडाफोन आइडिया ने अपने सीएफओ अक्षय मूंदड़ा को सीईओ के रूप में पदोन्नत किया था, क्योंकि रविंदर टक्कर ने कर्ज के बोझ से दबी दूरसंचार कंपनी के एमडी और सीईओ के पद से इस्तीफा दे दिया था।
बेशक, सीएफओ से सीईओ पद मिलने जैसा बदलाव केवल भारत में ही नहीं हो रहा है। दुनिया भर में, कुछ सबसे बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अपने सीएफओ को सीईओ बनाकर इस रुझान को बढ़ावा दिया है।
न्यूबरी में मुख्यालय वाली वोडाफोन पीएलसी, सीएफओ से सीईओ की पदोन्नति वाली परंपरा में भरोसा करती रही है। निक रीड ने दिसंबर 2022 में वोडाफोन समूह के सीईओ के रूप में पद छोड़ दिया था और वह न केवल वोडाफोन ब्रिटेन में बल्कि कुछ अन्य कंपनियों में भी सीएफओ थे।
वोडाफोन में 21 साल काम करने के बाद कंपनी छोड़ते वक्त रीड ने कहा कि वह बोर्ड से इस बात से सहमत हैं कि अब एक नए नेतृत्व के हाथों में कंपनी की कमान सौंपने का सही समय है जो वोडाफोन की ताकत को आगे बढ़ा सकता है और आगे के महत्त्वपूर्ण मौके का लाभ उठा सकता है।
सीईओ के रूप में रीड के कार्यकाल के दौरान, यूरोप और अफ्रीका के कारोबार पर अधिक ध्यान देने के लिए वोडाफोन को परिसंपत्तियां बेचनी पड़ी। कंपनी ने अपने ब्रिटिश मुख्यालय को भी बेच दिया और इसका एक हिस्सा किराये पर भी ले लिया।
संयोग से, रीड ने ही एक बार भारत के दूरसंचार कारोबार का हवाला देते हुए कहा था कि वोडाफोन खराब लोगों पर पैसे नहीं खर्च करेगा। रीड की जगह सीएफओ मार्गरिटा डेला वैले को वोडाफोन का अंतरिम सीईओ बनाया गया।
जब एचएसबीसी ने पिछले साल अचानक घोषणा की कि जॉर्ज एलहेडरी नए सीएफओ होंगे तब यह चर्चा जोरों से चलने लगी कि वह वर्तमान सीईओ नोएल क्विन के उत्तराधिकारी बनने यानी अगले सीईओ बनने के लिए तैयार हैं।
अक्टूबर 2022 में रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, उन्हें सीएफओ नामित करके, बैंक ने उन्हें सीईओ पद की कतार में सबसे आगे खड़ा कर दिया। इससे सवाल यह खड़ा होता है कि क्या सीईओ बनने के लिए कतार में सबसे आगे होने का स्वाभाविक विकल्प सीएफओ होना चाहिए?
इस साल की शुरुआत में मीडिया रिपोर्टों में अधिकारियों की खोज करने वाली कंपनी क्रिस्ट कोल्डर एसोसिएट्स के अध्ययन का हवाला देते हुए कहा गया था कि फॉर्च्यून 500 और एसऐंडपी 500 दोनों कंपनियों के बीच 681 सीएफओ में से 8 प्रतिशत से अधिक को 2022 की पहली छमाही में सीईओ की भूमिका में पदोन्नत किया गया था।
एक दशक पहले यह संख्या 5.6 प्रतिशत थी। कई सलाहकारों का मानना है कि वित्तीय पहलू को अच्छी तरह से जानने और समझने की उम्मीद एक सीएफओ से की जाती है लेकिन यह जरूरी नहीं है कि इसी खासियत की वजह से कोई सीईओ के पद के योग्य बन जाए।
फॉर्च्यून की एक रिपोर्ट में एमोरी यूनिवर्सिटी के गोइजुएटा बिजनेस स्कूल में संगठन और प्रबंधन के एसोसिएट प्रोफेसर रिचर्ड बर्लिन के हवाले से कहा गया है कि सीएफओ शीर्ष पद पर वित्तीय विशेषज्ञता और संभवतः रणनीतिक सोच को भी लाते हैं लेकिन सीईओ के लिए विभिन्न तरह की व्यवहार कुशलता में पारंगत होना आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि जब लोग अपने करियर में आगे बढ़ते हैं तो ऐसा इसलिए नहीं होता है कि वे तकनीकी रूप से कुशल होते हैं, बल्कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वे भावनात्मक रूप से भी मजबूत होते हैं।
वह बताते हैं कि सीएफओ का जोर मूल रूप से आंकड़ों को देखने पर होता है और उनका यथार्थवादी होना भी अहम है लेकिन अधिकांश सीईओ को आशावादी के रूप में देखा जाता है।
एक तरह से यह दृष्टिकोण के अंतर को भी दर्शाता है जैसे कि आंकड़ों पर वास्तविकता वाली नजर रखने के साथ एक कंपनी चलाने की तुलना में भावनात्मक मजबूती और व्यवहार कुशलता के साथ कंपनी का नेतृत्व करना ही कारोबार में लंबे समय तक जारी रहता है।
व्यवहार कुशल सीईओ और आंकड़ों की वास्तविक दुनिया से वास्ता रखने वाले सीएफओ से सीईओ बने लोगों के बीच के चयन से ही तय होगा कि लंबे समय में कंपनी के भविष्य का निर्धारण कैसे होगा। भावनात्मक रूप से मजबूत पहलू वाला एक सीईओ वास्तव में, भावनात्मक पहलू में थोड़े कमतर लेकिन आंकड़ों की अच्छी समझ रखने वाले किसी अव्वल सीएफओ से अच्छे होंगे क्योंकि उनमें चुनौतीपूर्ण कारोबारी हालात को बेहतर ढंग से संभालने की संभावना ज्यादा होगी।