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विकास के नाम पर पर्यावरण से ‘बदसलूकी’

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 5:26 PM IST

सुलेमान राय का घर लकड़ियों से बना हुआ है। पूरा घर लकड़ियों के चार स्तंभों पर खड़ा है। पर अचानक हुई तेज आवाज (जैसी आवाज बिजली गिरने पर होती है) से पूरा घर थर्रा उठता है।


सुलेमान का घर उत्तरी सिक्किम के सिंघिक के कजूर गांव में है। यह गांव जिस पहाड़ पर बसा है, उसमें 9 किलोमीटर लंबी एक सुरंग खोदी जा रही है। तीस्ता नदी पर चल रही ‘तीस्ता 3’ नाम की पनबिजली परियोजना के लिए यह सुरंग खोदी जा रही है। विस्फोटकों के इस्तेमाल से पहाड़ को तोड़ा जा रहा है और जब-जब विस्फोटक फटते हैं, सुलेमान का घर थर्राता है।


अभी-अभी विस्फोट शुरू हुआ है। विस्फोट पहाड़ के बीचोंबीच हो रहा है, जहां तक सड़क मार्ग से पहुंचना नामुमकिन है। पहाड़ आर्द्र है और पानी की तेज आवाजों से पूरा वातावरण कोलाहल भरा है। सुलेमान की पत्नी मार्था यहीं से आकर पीने का पानी ले जाती हैं। पर आने वाले समय में मार्था को यहां पानी मयस्सर नहीं होगा, क्योंकि पनबिजली परियोजना के लिए नदी की धारा बदल दी जाएगी।


सुलेमान के गांव में 60 घर हैं। पर तीस्ता पर चल रहे इस प्रोजेक्ट से प्रभावित होने वाले परिवारों की जो लिस्ट बनाई गई है, उसमें इस गांव के किसी व्यक्ति का नाम नहीं है। प्रोजेक्ट पर काम अभी शुरू हुआ है और 9 किलोमीटर लंबी सुरंग का निर्माण होते ही तीस्ता की दिशा बदल दी जाएगी और फिर तीस्ता ऊर्जा लिमिटेड के नाम से 1200 मेगावॉट बिजली का उत्पादन शुरू कर दिया जाएगा।


पड़ोस के एक पहाड़ पर पहले ही 22 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाई जा चुकी है। इसका निर्माण एक अन्य पनबिजली परियोजना के लिए किया गया है, जिसका नाम है ‘तीस्ता वी’। इसी तरह, आने वाले दिनों में कई और पहाड़ों में सुरंग खोदी जाने की योजना है, जिनका जिम्मा कुल 26 कंपनियों को दिया जा चुका है। ये सुरंगें 9 किलोमीटर से लेकर 22 किलोमीटर लंबी होंगी।


इन प्रोजेक्टों से करीब 5 लाख लोग प्रभावित होंगे। इनके अलावा कुछ विलुप्त होते जंगली जानवर और पक्षियों की बड़ी तादाद भी है, जिन पर असर पड़ेगा।सिक्किम ऐसा राज्य है जो भूकंप के लिहाज से देश का दूसरा खतरनाक  जोन है। यहां हफ्ते में भूकंप के औसतन दो झटके तो आते ही हैं, जो यहां के लोगों की जीवनशैली का हिस्सा बन चुके हैं।


यानी ऐसे झटके सिक्कमवासियों के लिए सामान्य हैं। भूस्खलन की घटनाएं तो आए दिन होती रहती हैं और उत्तरी या पश्चिमी सिक्किम के किसी भी हिस्से में तफरीह करते वक्त कोई भी भूस्खलन की घटनाओं का गवाह बन सकता है।सिक्किम के माइन्स, मिनरल्स और भूगर्भ शास्त्र विभाग ने पहाड़ों में सुरंग बनाए जाने के लिए किए जा रहे विस्फोटों के बुरे प्रभावों के प्रति आगाह किया था। पर सरकार ने इसकी अनदेखी करते हुए ‘तीस्ता वी’ प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी और आज यह प्रोजेक्ट पूरा भी हो चुका है।


विभाग की रिपोर्ट में कहा गया था – ‘पहाड़ों पर की जाने वाली ब्लास्टिंग से जल के निरंतर स्रोत के सूखने का खतरा बना रहता है। पहाड़ों के हर हिस्से से बहकर नीचे आने वाले झरनों का पानी सिंचाई के काम आता है और लोग पीने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। तीस्ता वी प्रोजेक्ट के क्षेत्र में सुरंग के निर्माण के दौरान एक झरना सूख गया। शिवालय मंदिर के नीचे से निकलने वाले जल के निरंतर स्रोत सूख रहे हैं और इस बात की पुष्टि भी हो चुकी है। ‘


इस पूरे मामले में बांध बनाने वाले बिल्डरों की बेरुखी की भी काफी भर्त्सना हो चुकी है। दरअसल, ये बिल्डर अपना ज्यादा जोर इंजीनियरिंग से जुड़े मसलों, प्रोजेक्ट पर आने वाली लागत और प्रोजेक्ट की प्रगति आदि पर देते हैं, पर उनमें से कोई भी प्रोजेक्ट भूगर्भशास्त्र से जुड़े पहलुओं और उसके प्रभाव को सोचने और उस दिशा में काम करने की जरूरत महसूस नहीं करता। ये पहाड़ों की मौत की ही चेतावनी मात्र नहीं हैं। बातें कई और भी हैं।


300 मेगावॉट की पानन हाइड्रो इलेक्ट्रिक परियोजना के मामले में विभाग ने ब्लास्टिंग से होने वाले नुकसान की बात कही है। विभाग ने कहा है कि हो सकता है कि विस्फोटकों के इस्तेमाल से होने वाले नुकसान का असर फौरन न दिखे, पर लंबे समय में इसका नुकसान दिखता है।


रिपोर्ट के मुताबिक, पहाड़ों पर किए जाने वाले विस्फोट से बनने वाले मलबे को ठिकाने लगाने के मामले में भी अजीब तरह की अनदेखी की जाती है। मिसाल के तौर पर, पानन प्रोजेक्ट के कुल 1 लाख वर्ग मीटर क्षेत्र में 24.42 लाख क्यूबिट टन मलबा पैदा हुआ। मलबे की यह भारी मात्रा पर्यावरण की हालत बिगाड़ देगी। इससे प्राकृतिक असंतुलन पैदा होगा और इस वजह से तमाम तरह की दिक्कतें पैदा होंगी। पर इन मामलों में सिक्किम सरकार की कान पर जूं तक नहीं रेंग रही।

First Published : April 1, 2008 | 12:28 AM IST