facebookmetapixel
AI की एंट्री से IT इंडस्ट्री में बड़ा बदलाव, मेगा आउटसोर्सिंग सौदों की जगह छोटे स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट‘2025 भारत के लिए गौरवपूर्ण उपलब्धियों का वर्ष रहा’, मन की बात में बोले प्रधानमंत्री मोदीकोल इंडिया की सभी सब्सिडियरी कंपनियां 2030 तक होंगी लिस्टेड, प्रधानमंत्री कार्यालय ने दिया निर्देशभारत में डायग्नॉस्टिक्स इंडस्ट्री के विस्तार में जबरदस्त तेजी, नई लैब और सेंटरों में हो रहा बड़ा निवेशजवाहर लाल नेहरू पोर्ट अपनी अधिकतम सीमा पर पहुंचेगा, क्षमता बढ़कर 1.2 करोड़ TEU होगीFDI लक्ष्य चूकने पर भारत बनाएगा निगरानी समिति, न्यूजीलैंड को मिल सकती है राहतपारेषण परिसंपत्तियों से फंड जुटाने को लेकर राज्यों की चिंता दूर करने में जुटी केंद्र सरकार2025 में AI में हुआ भारी निवेश, लेकिन अब तक ठोस मुनाफा नहीं; उत्साह और असर के बीच बड़ा अंतरवाहन उद्योग साल 2025 को रिकॉर्ड बिक्री के साथ करेगा विदा, कुल बिक्री 2.8 करोड़ के पारमुंबई एयरपोर्ट पर 10 महीने तक कार्गो उड़ान बंद करने का प्रस्वाव, निर्यात में आ सकता है बड़ा संकट

Editorial: अनुमानों का प्रबंधन

वैश्विक मुद्रास्फीति 2022 के 8.7 फीसदी से कम होकर 2023 में 6.9 फीसदी और 2024 में 5.8 फीसदी तक आ जाएगी।

Last Updated- October 27, 2023 | 8:17 PM IST
India in a safe position amid global upheaval

महामारी के कारण हुई उथलपुथल के बाद जब सुधार की प्रक्रिया शुरू हुई तब से वैश्विक अर्थव्यवस्था (Global Economy) भी निरंतर मुद्रास्फीति संबंधी दबावों का सामना कर रही है। इसके परिणामस्वरूप बड़े केंद्रीय बैंकों ने दशकों में सबसे तेज गति से मौद्रिक नीति को सख्त किया है। इससे मुद्रास्फीति संबंधी दबाव कम करने में मदद मिली है। हालांकि यह अभी भी ज्यादातर स्थानों पर लक्ष्य से ऊपर बनी हुई है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने अपने ताजा विश्व आर्थिक पूर्वानुमान (डब्ल्यूईओ) में अनुमान जताया है कि वैश्विक मुद्रास्फीति 2022 के 8.7 फीसदी से कम होकर 2023 में 6.9 फीसदी और 2024 में 5.8 फीसदी तक आ जाएगी।

भारतीय रिजर्व बैंक ने भी मई 2022 से अब तक नीतिगत रीपो दर में 250 अंकों का इजाफा किया और उसके बाद ही रुका। रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने गत सप्ताह दरों में इजाफा रोके रखने का निर्णय लिया। उसके अनुमानों के मुताबिक चालू वर्ष में मुद्रास्फीति की दर औसतन 5.4 फीसदी रहेगी। बहरहाल, वैश्विक खाद्य और ईंधन कीमतों में अस्थिरता तथा अल नीनो जैसे हालात जोखिम बढ़ा सकते हैं।

रिजर्व बैंक समेत केंद्रीय बैंकों के लिए परिदृश्य अभी भी चुनौतीपूर्ण है और वे कितनी जल्दी अपना लक्ष्य हासिल कर पाते हैं वह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि मुद्रास्फीति संबंधी अनुमानों को कैसे आकार दिया जाता है। डब्ल्यूईओ के ताजा विश्लेषण में यह बात रेखांकित की गई है कि मुद्रास्फीति संबंधी अनुमान मुद्रास्फीतिक परिदृश्य को आकार देने में अहम भूमिका निभाते हैं। भविष्य में मुद्रास्फीति में इजाफा होने की संभावना मौजूदा दरों को गति प्रदान कर सकती है और वे लंबे समय तक ऊंचे स्तर पर बनी रह सकती हैं।

दूसरे शब्दों में कहें तो केंद्रीय बैंक के जो कदम अनुमानों को कम कर सकते हैं वे मुद्रास्फीति को तेजी से तथा आसानी से नियंत्रित कर सकते हैं। विकासशील देशों में मुद्रास्फीति की दर में कमी लाना अधिक चुनौतीपूर्ण है क्योंकि वहां ऐसे कारक अधिक हैं जो अतीत के अनुभवों के आधार पर अनुमान तैयार करते हैं।

ऐसे में हालिया इतिहास में उच्च मुद्रास्फीति के दौर उन अनुमानों को तैयार करने में मददगार होंगे और मुद्रास्फीति की दर लंबे समय तक ऊंचे स्तर पर बनी रहेगी। इसके अलावा एक बार अनुमान बढ़ जाने के बाद लक्ष्य में कमी आने में अधिक समय लगता है।

अध्ययन में यह भी कहा गया है कि निकट भविष्य में मुद्रास्फीति संबंधी अनुमानों के पास मुद्रास्फीति की वास्तविक दरों को स्पष्ट करने की अधिक शक्ति होगी बजाय कि दीर्घकालिक अनुमानों के। ध्यान देने वाली बात यह है कि तमाम विकासशील देशों में, दीर्घकालिक अनुमानों का प्रबंधन किया जाता रहा है जबकि निकट अवधि के अनुमान मुद्रास्फीति के लक्ष्य से अधिक विचलन दिखाते हैं। ऐसे में प्रतिगामी कारकों का आधिक्य और अल्पावधि के अनुमानों में इजाफा मुद्रास्फीति को लंबा खींच सकता है और मौद्रिक नीति संबंधी कदमों के प्रभाव को कमजोर कर सकता है।

निरंतर मुद्रास्फीतिक घटनाएं मामले को और जटिल बना सकती हैं क्योंकि एक तय अवधि में मुद्रास्फीति में कमी लाना उत्पादन की दृष्टि से महंगा पड़ सकता है। विकासशील देशों के केंद्रीय बैंक स्वाभाविक रूप से मूल्य स्थिरता लाने की दृष्टि से बेहतर स्थिति में होंगे बशर्ते कि अग्रसोची कारक अधिक हों जिन्हें पता होता है कि आपूर्ति क्षेत्र या लागत संबंधी झटकों की प्रकृति अस्थायी हो।

मुद्रास्फीतिक अनुमानों के प्रबंधन के मामले में अध्ययन बताता है कि केंद्रीय बैंकों की स्वायत्तता तथा मौद्रिक नीति संबंधी कदमों में पारदर्शिता एवं संचार आदि अहम हैं। मौद्रिक नीति ढांचे में सुधार से मुद्रास्फीति संबंधी अनुमानों को अधिक दूरंदेशी बनाया जा सकता है। इस संदर्भ में भारत ने मुद्रास्फीति को लक्षित करने की लचीली व्यवस्था अपनाकर अच्छा किया है जहां मुद्रास्फीति संबंधी निर्णय समिति लेती है। इस समिति के सदस्य भी स्वतंत्र होते हैं।

हाल के दिनों में अवश्य समिति वृहद आर्थिक परिदृश्य तथा मुद्रास्फीतिक हालात को समझने में संघर्षरत रही है। हाल में आपूर्ति क्षेत्र के कारकों की वजह से मुद्रास्फीति में इजाफा होने से हालात और जटिल हुए हैं। स्पष्ट संचार, मुद्रास्फीति को कम रखने की स्पष्ट प्रतिबद्धता तथा जरूरत पड़ने पर पहल करने की तैयारी इस समय अहम हैं।

First Published - October 11, 2023 | 9:14 PM IST

संबंधित पोस्ट