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यूरोप से सबक

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 11:41 PM IST

महामारी अभी समाप्त नहीं हुई है। रॉयटर्स ने ताजा आंकड़ों का जो विश्लेषण किया है उससे पता चलता है कि 240 में से 55 देशों में संक्रमण की दर घटने के बजाय बढ़ रही है। कुछ देशों खासकर कि पूर्वी यूरोप के देशों में संक्रमण रिकॉर्ड स्तर पर है और गंभीर चिंता की बात यह है कि उनमें से अनेक देशों को कुछ हद तक लॉकडाउन लगाना पड़ेगा। खासतौर पर रूस जैसे देशों को जहां टीकों को लेकर काफी हद तक हिचकिचाहट है और जिसके चलते स्थानीय आबादी के बड़े हिस्से ने अब तक टीका नहीं लगवाया है। कुछ देश जो पहले ही बड़ी लहर का सामना कर चुके हैं उन्हें आशा थी कि टीकाकरण होने के बाद उन्हें संक्रमण में इजाफे से बचाव हासिल होगा लेकिन अब वे अपनी बात पर दोबारा विचार कर रहे हैं: विशेष रूप से जर्मनी में संक्रमण के मामले अब तक के सभी रिकॉर्ड तोड़ चुके हैं और वहां स्वास्थ्य व्यवस्था पर दबाव नजर आने लगा है। यूरोप खासतौर पर जोखिम में है और विश्व स्वास्थ्य संगठन उसे महामारी का ‘केंद्र’ कह रहा है और उसने चेतावनी दी है कि इस क्षेत्र में महामारी के कारण पांच लाख और लोग जान गंवा सकते हैं।
यूरोप में लगातार बढ़ते मामलों में भारत के लिए सबक छिपा हुआ है। आबादी के टीकाकरण के मामले में भारत अधिकांश यूरोपीय देशों से कुछ महीने पीछे चल रहा है। दूसरी लहर के दौरान भारत में भारी तबाही मची थी। उस दौरान देश के हालात काफी कुछ वैसे ही थे जैसे कि पिछले डेढ़ साल में यूरोप में देखने को मिले। ऐसे में अगर यूरोप, जो अतीत के कड़े लॉकडाउन से उबरा है और जहां दोबारा हल्के फुल्के लॉकडाउन पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है, तो भारत भी अगर मामलों में पहले जैसी बढ़ोतरी और कड़े लॉकडाउन से बचना चाहता है तो उसे भी पूरे घटनाक्रम पर करीबी निगाह रखनी होगी।
सबसे पहला और अहम सबक तो यही है कि टीकाकरण कार्यक्रम में तेजी लाई जाए और उसे पूरा किया जाए। रूस और दक्षिण पूर्वी यूरोप समेत यूरोप के कई सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र वही हैं जहां टीकाकरण अपेक्षित गति नहीं पकड़ सका है। रूस ने भले ही स्पूतनिक टीका तैयार किया लेकिन वहां वयस्क आबादी के केवल 40 फीसदी हिस्से को टीका लग सका है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि हमारे देश ने कोरोनावायरस पर जीत की घोषणा ‘कुछ ज्यादा जल्दी’ कर दी। बाद वाली समस्या के पहलू तो भारत में नजर भी आ रहे हैं, मसलन टीकाकरण कार्यक्रम से जुड़ी हर उपलब्धि का जश्न मनाया जा रहा है। हम रूस में यह देख चुके हैं कि जीत का भाव आपदा का बीज बोता है क्योंकि इससे प्रशासन और जनता दोनों में आश्वस्ति का भाव पैदा होता है। आश्वस्ति से हर हाल में बचना चाहिए। अब टीकों की आपूर्ति में भी कोई बाधा नहीं है और फिलहाल राज्य सरकारों के पास 15 करोड़ खुराक बिना इस्तेमाल के रखी हैं।
देश में टीकाकरण कार्यक्रम को तेज करने के लिए यह जरूरी है कि जिन लोगों ने टीके की पहली खुराक ले ली है उन्हें समय पर दूसरी खुराक लगा दी जाए। इस बात के तमाम प्रमाण मौजूद हैं टीके की पहली खुराक लगवाने वाले अनेक लोग दूसरी खुराक नहीं लगवा रहे हैं। यह जरूरी है कि यह सिलसिला चलता न रहे। यह सवाल भी पूछना होगा कि क्या आने वाले समय में बड़े नियोक्ताओं के यहां और सरकारी कंपनियों के प्रोत्साहन ढांचे को टीका लगवाने से जोड़ा जाना चाहिए। अंत में कुछ प्रमाण ऐसे भी हैं कि टीकों से मिली प्रतिरक्षा समय के साथ कमजोर पड़ जाती है। विशेषज्ञों को इसका आकलन करना चाहिए और यह तय करना चाहिए कि क्या संवेदनशील समूहों के लिए टीकाकरण कार्यक्रम की शुरुआत की जानी चाहिए, जैसा कि कई देश कर चुके हैं?

First Published : November 8, 2021 | 11:12 PM IST