Illustration by Ajay Mohanty
कई लोगों को अचल संपत्ति या रियल एस्टेट में निवेश आकर्षक लगता है। आम मध्यमवर्गीय परिवार तीन मकान खरीदने का ख्वाब देखता है: एक रहने के लिए, दूसरा बच्चों के लिए और तीसरा निवेश के लिए। जमीन में निवेश करने वाले कहते हैं, ‘जमीन में निवेश इसलिए अच्छा है क्योंकि नई जमीन तो बनने से रही।’
लेकिन जमीन में निवेश का यह कारण कुछ सही नहीं है। देश में जमीन का इस्तेमाल करने वाले अधिक लोग नहीं हैं। अगर हम बहुत उदारता बरतते हुए मान लें कि हर व्यक्ति मकान और दुकान या दफ्तर के लिए करीब 100 वर्ग मीटर जमीन इस्तेमाल करता है तो इस देश की 1.4 अरब की आबादी को भारत की कुल जमीन का 4.2 फीसदी हिस्सा ही चाहिए।
अगर हम मान लें कि चार सदस्यों वाले हर परिवार को करीब 4,600 वर्ग फुट जमीन चाहिए और फ्लोर स्पेस इंडेक्स केवल 1 है तब भी देश में मौजूद समूची जमीन का इस्तेमाल नहीं हो पाएगा।
देश में अधिकतर वयस्कों को बचपन में ही पढ़ाया गया कि आबादी कितनी तेजी से बढ़ रही है। मगर भारत की प्रजनन दर में बहुत अंदर आ गया है। देश की कुल प्रजनन दर 1964 में छह थी जो 2022 में घटकर दो रह गई है। हमें इस गिरावट की वजह के बारे में ठीक से नहीं पता लेकिन कुछ तो हो रहा है। भारत के इतिहास के हरेक चरण में आबादी का बदलाव अनुमान से तेज गति से हुआ है। दक्षिण के राज्यों की कुल प्रजनन दर जर्मनी की दर से कम है। हमें कहना चाहिए, ‘जमीन में निवेश इसलिए कीजिए क्योंकि आबादी ज्यादा नहीं बढ़ रही है।’
अपना पैसा निवेश करते समय याद रखना चाहिए कि पिछले 20 वर्षों में निफ्टी 26 गुना चढ़ चुका है। इसमें विविधता है, पारदर्शिता है और तरलता यानी शेयर बेचकर फौरन नकद हासिल करने की संभावना है, लेकिन रियल एस्टेट में ऐसा नहीं है। रियल एस्टेट में निवेश पर जरूरत से ज्यादा जोर उन परिवारों के कारण भी होता है, जिन्हें सूचीबद्ध कंपनियां, अकाउंटिंग के आंकड़े, एक्सचेंज और डिपॉजिटरी ठीक नहीं लगतीं। जब भी कोई परिवार शेयरों में निवेश करने चलता है तो वह रियल एस्टेट की कीमतें नीचे आने की वजह बनता है।
गहराई से सोचिए कि क्या किसी कार की कीमत बढ़ सकती है? यह बेवकूफाना बात है क्योंकि कार की कीमत बढ़ेगी तो उसकी आपूर्ति बहुत बढ़ जाएगी। अगर हम यह मानना बंद कर दें कि जमीन दुर्लभ है तो रियल एस्टेट ईंट, इस्पात और कांच के ढेर के अलावा क्या है। उसकी कीमत चढ़ेगी तो आपूर्ति बढ़ जाएगी, जिसके बाद कीमत में लगातार इजाफा हो ही नहीं पाएगा। सच कहें तो रियल एस्टेट की यह दीवानगी तमाम अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान पहुंचा सकती है। रियल एस्टेट पर जोर चीन के आर्थिक मॉडल की नाकामी का भी बड़ा कारण रहा।
1980 के दशक के आरंभ से ही चीनी परिवार रियल एस्टेट पर बहुत जोर देने लगे। भारत ने 1992 से 2017 के बीच मजबूत वित्तीय बाजार तैयार किए, जो चीन में कभी नहीं हो सका। चीन के परिवारों ने जब-जब वित्तीय संपत्तियों में निवेश की कोशिश की, उन्हें घाटा हुआ और वे रियल एस्टेट की ओर लौट गए। वहां की सरकार ने लोगों को विदेश में निवेश नहीं करने दिया, जिससे रियल एस्टेट में ही निवेश बढ़ता गया। नीति निर्माताओं ने भी शहरी विकास के लिए रकम के इंतजाम को रियल एस्टेट के साथ जोड़कर उसे हवा दी। चीन में नीतियों की बुनियाद नियंत्रण ही है और नीति निर्माताओं की इस मंशा के कारण रियल एस्टेट को रकम की शक्ल में अर्थव्यवस्था को बार-बार प्रोत्साहन मिले।
विचारक दशकों से रियल एस्टेट की समस्या के प्रति आगाह करते रहे मगर अधिकतर लोगों को फौरी मुनाफे से ही मतलब रहा। समय के साथ हालात बिगड़ने लगे। वहां हर परिवार के पास औसतन 1.5 घर हैं और आबादी के बारे में अनुमान भारत के मुकाबले बहुत खराब हैं। चीन में इतने मकान खाली पड़े हैं, जितने बंबई में भी नहीं हैं। वहां पूरे के पूरे शहर निर्जन हो गए हैं।
रियल एस्टेट कारोबार में शामिल हर कोई – निवेशक, ऋणदाता, डेवलपर, सरकार – प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझ रहा है और रियल एस्टेट क्षेत्र अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ने से रोक रहा है। दिवाला प्रक्रिया तेज हो तो कर्ज देने वालों और परिवारों को बड़ा घाटा होता है मगर यह धीमी हो तो और भी नुकसान होता है और अर्थव्यवस्था को कई वर्षों तक इसका खमियाजा भुगतना पड़ता है। चीन में रियल एस्टेट की समस्याएं अब आम परिवारों के हौसले कुंद कर रही है।
ये बातें भारत में नीतिगत क्षेत्र के लिए बहुत महत्व रखती हैं। भारत में हमने संस्थाओं के निर्माण और वित्तीय नीति में ऊंची क्षमता के दौर के साथ अच्छा प्रदर्शन किया है। इससे शेयर बाजार, डेरिवेटिव्स कारोबार, विदेशी निवेशकों को मजबूत बुनियाद मिली। इससे आम परिवारों ने धीरे-धीरे रियल एस्टेट से निकलकर वित्तीय संपत्तियों में निवेश करना सीख लिया। वित्तीय क्षेत्र के विकास में सुस्ती हमारे लिए ही मुश्किलें पैदा करती है।
मकानों की कीमत और आय का अनुपात शहरी नीति के कारण बिगड़ता है। लोगों के लिए सबसे अच्छा तब होता है, जब मकान का किराया या कीमत कम हो। होना तो यह चाहिए कि शहर में लोग अपनी आय का केवल 10 प्रतिशत हिस्सा खर्च कर रहने के लिए मकान का इंतजाम कर सकें। किराया कम होगा तो पगार भी कम देनी होगी, जिससे कंपनियों की लागत घटेगी और वे दुनिया भर की कंपनियों से होड़ कर सकेंगी।
इसके लिए जमीन पर बहुमंजिला इमारतें बननी चाहिए, जिससे बहुत सारे मकान तैयार हो जाएंगे। उन मकानों की कीमत और किराये भी कम होंगे। नीतियों में कई तरह की खामियां रियल एस्टेट आपूर्ति के आड़े आ रही हैं। नीति निर्माताओं को स्थिति पलट देनी चाहिए शहरों में आम मकानों के साथ बहुमंजिला इमारतों पर भी जोर देना चाहिए। चीन का उदाहरण बताता है कि शहरों के लिए रकम जुटाने का तरीका कितना अहम है। इसके लिए वस्तु एवं सेवा कर का कुछ हिस्सा शहरों में लगाना चाहिए और रियल एस्टेट में उछाल के जरिये शहरों के विकास की उम्मीद लगाने के बजाय संपत्ति कर का इस्तेमाल करना चाहिए।
यह रुख वित्तीय नीति से जुड़ा है। वित्तीय नीति का रुख खेत या रियल एस्टेट के बदले कर्ज रोकने वाला नहीं होना चाहिए। इसे कर्ज या रकम के इंतजाम को बढ़ावा देना चाहिए ताकि आपूर्ति बढ़े और रियल एस्टेट के दाम नीचे आ जाएं। इसके लिए विदेशी रियल एस्टेट डेवलपरों और रियल एस्टेट में विदेशी कर्ज पर लगी रोक हटानी होंगी। पूंजी के बाहर जाने पर लगा नियंत्रण भी कम करना होगा ताकि आम लोग वैश्विक संपत्तियों में निवेश कर सकें और भारत में रियल एस्टेट में निवेश का आकर्षण कम हो सके।
(लेखक एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता हैं)