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जलवायु परिवर्तन से सही ढंग से निपटना जरूरी

जलवायु परिवर्तन से निपटने को लेकर भारत के प्रयास उन उपायों से एकदम अलग हैं जो भारत के लोगों और खेतों को अत्यधिक गर्मी से बचाने के लिए उठाने की आवश्यकता है।

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लवीश भंडारी   
Last Updated- December 05, 2024 | 9:25 PM IST

कॉप 29 बैठकों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि विकसित देश अपने पापों की भरपाई नहीं करेंगे। इसके परिणामस्वरूप भारत तथा अन्य विकासशील देशों को न तो समुचित सहायता मिलेगी और न ही सब्सिडी वाला ऋण मिलेगा। वहां जो कुछ हुआ वह कम से कम मेरे लिए पूरी तरह अपेक्षित था। जिस पैमाने पर सहायता की आवश्यकता है वह किसी भी विकसित देश के लिए राजनीतिक रूप से व्यवहार्य नहीं है।

ज्यादा से ज्यादा वे ऋण सुविधाओं का वादा कर सकते थे जो विकासशील देशों को भारी कर्ज में डालने वाली बात ही होती। बहरहाल, जलवायु परिवर्तन से संबंधित बदलावों से जुड़े कर्ज की समस्या अब आड़े नहीं आएगी। इसके बजाय अब हमें बुनियादी समस्या पर ध्यान देना होगा। मसलन जलवायु परिवर्तन की बढ़ती घटनाओं के बीच हम कैसे बचें और समृद्धि हासिल करें।

यह चुनौती छोटी नहीं है। साक्ष्य बताते हैं कि बदलाव और आय को होने वाला नुकसान दोनों अनुमान से अधिक होंगे। जलवायु मॉडल बताते हैं कि दक्षिण एशिया सबसे अधिक प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में शामिल है। अब यह स्पष्ट है कि औसत ताप वृद्धि जहां 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य से ऊपर रहेगी वहीं चुनिंदा स्थानों पर कुछ खास दिनों में तापमान अनुमान से अधिक रहेगा। ऐसे में उत्तर भारत में 50 डिग्री से अधिक गर्मी का हालिया अनुभव उस बात की झलक है जो आने वाले समय में सामने आ सकती है।

इतना ही नहीं, हालिया शोध बताता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण आय पर पड़ने वाला असर बहुत गहरा होगा। यह पहले लगाए गए अनुमानों से कहीं अधिक होगा। कृषि पर हुए अध्ययन पहले ही यह दिखा रहे हैं कि उच्च तापमान और कम खाद्य उत्पादन के बीच गहरा संबंध है। असंगठित क्षेत्र की आय भी बुरी तरह प्रभावित हो रही है क्योंकि उच्च तापमान स्वास्थ्य आदि को प्रभावित कर रही है। कुल मिलाकर बढ़ती गरमी आय और उत्पादकता पर नकारात्मक असर डाल रही है।

संयुक्त राष्ट्र चाह रहा है कि जलवायु परिवर्तन को लेकर उत्प्रेरक कदम उठाए जाएं। वह कई देशों में नैशनल एडाप्टेशन प्लान सहित कई प्रकार की पहलों पर जोर दे रहा है। भारत ने भी जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी) तैयार की है। बहरहाल, एनएपीसीसी लोगों को होने वाले आय संबंधी नुकसान पर ध्यान नहीं देता। न ही वह लचीलापन बढ़ाने या उन्हें गर्म होती दुनिया के मुताबिक ढलने में सक्षम बनाने केंद्रित है।

एनएपीसीसी के आठ घटक या मिशन हैं जिसमें शामिल हैं: ज्यादा सौर ऊर्जा, बेहतर ऊर्जा किफायत, ऊर्जा किफायत वाला शहरी नियोजन, जल का बेहतर इस्तेमाल, हिमालय की पारिस्थितिकी में सुधार, वनाच्छादित क्षेत्र में इजाफा और जलवायु परिवर्तन को लेकर जानकारी और समझ में सुधार। ये सब सही हैं हालांकि इनमें से कुछ के मोर्चे पर प्रदर्शन सही नहीं है। ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हमें आय को बचाने की जरूरत है, मजबूती हासिल करनी है और पेशागत और जीवन शैली संबंधी व्यवहार में बदलाव लाने में मदद करनी है। एनएपीसीसी चाहे जितना उद्देश्यपूर्ण हो लेकिन वह उभरती समस्याओं को हल नहीं करेगा।

अधिकांश भारतीय राज्यों ने गर्मी से निपटने के लिए हीट एक्शन प्लान (एचएपी) तैयार किए हैं लेकिन ये राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकार द्वारा निर्देशित होते हैं जिसका ध्यान स्वाभाविक रूप से कार्यक्रम आधारित प्रणाली अपनाने का है। दूसरे शब्दों में कहें तो एचएपी अत्यधिक गर्मी की घटनाओं से निपटने पर ध्यान केंद्रित करता है जो काफी हद तक वैसा ही है जैसे प्रदूषण से निपटने के लिए ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान यानी जीआरएपी। जिस प्रकार जीआरएपी प्रदूषण के अधिक व्यवस्थित मामलों से निपटने में नाकाम है वैसे ही एचएपी अनुकूलन की चुनौतियों से निपटने में। देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के मामले में जो तरीके अपना रहा है वे उसके बचाव के लिए जरूरी उपायों के साथ असंगत हैं।

इस चुनौती को बेहतर ढंग से समझने के लिए अधिक गर्मी, अधिक अस्थिर जलवायु को अपनाने में नाकामी से हुए नुकसान पर विचार करें। उत्पादकता में गिरावट न केवल कृषि और पालतू-पशुओं पर असर डालेगी बल्कि व्यापार, परिवहन, विनिर्माण और असंगठित विनिर्माण, पारिवारिक लोग भी बुरी तरह प्रभावित होंगे। जिन पेशों में बाहर उत्पादन होता है वहां भी असर होगा। यहां तक कि अगर हवा के आने-जाने और ठंडा रखने का उचित इंतजाम नहीं हुआ तो घर के भीतर से किए जाने वाले काम भी प्रभावित होंगे। शिक्षा के प्रभाव पर भी असर पड़ेगा और स्वास्थ्य सेवा आपूर्ति पर भी। जब समस्या इतनी बड़ी हो तो शुरुआत कहां से की जाए?

सब कुछ करने के बजाय, हमें कुछ ऐसी चीजों पर ध्यान देना होगा जो सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। इसके अलावा हमें ऐसी क्रियान्वयन प्रणालियों की मदद से काम करना होगा जिन्हें बनाने में वर्षों का समय नहीं लगता और जो पहले ही सफल साबित हो चुके हैं। मैं यहां दो बातों पर ध्यान केंद्रित करूंगा।

पहली चुनौती है लोगों को अत्यधिक गर्मी से बचाना। इसमें शामिल है घरों, कार्यालयों, विद्यालयों और सार्वजनिक जगहों मसलन फुटपाथ, छोटे बाजारों और चौपाल आदि को अत्यधिक गर्मी से बचाना। भारी गर्मी वाली जगहें जीवन और स्वास्थ्य को बहुत अधिक नुकसान पहुंचा सकती हैं। इसके लिए कई पहल करने की आवश्यकता होगी। इनमें ठंडी छतों को अपनाना, घरों को हवादार बनाना और पौधों, वृक्षों आदि की मदद से सार्वजनिक स्थानों को गर्मी के प्रभाव से बचाने के प्रयास करना शामिल है।

पानी की उपलब्धता भी एक अहम बात है। जल जीवन मिशन के दायरे को बढ़ाने की जरूरत है ताकि ग्रामीण इलाकों में गर्मी से निपटने संबंधी लक्ष्यों को इसमें शामिल किया जा सके। शायद इसके लिए एक जल ताप मिशन शुरू करना होगा ताकि शहरों में गर्मी की समस्या से निपटने का प्रयास किया जाए। ऐसे मिशन को जरूरी स्थानीय निकायों और समुदायों के साथ मिलकर काम करना होगा ताकि गर्मी से संबंधित जोखिमों के बारे में जागरुकता बढ़ाई जा सके और गर्मी से निपटने के प्रभावी उपायों पर काम किया जा सके।

दूसरा प्रमुख मुद्दा कृषि से संबंधित है और इसमें राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) पहले ही सक्रिय भूमिका निभा रहा है। वह पालतू पशुओं और बीजों को लेकर शोध, नवाचारी व्यवहार को लेकर फंड मुहैया करा रहा है। तकनीकी रूप से देखें तो नाबार्ड कोई सरकारी संस्थान नहीं है लेकिन कृषि संबंधित विनिर्माण, शोध संस्थानों, व्यापार एवं अन्य सेवाओं के मामले में उसका व्यापक नेटवर्क उसे सक्षम बनाता है कि वह कृषि में जरूरी बदलाव में मदद कर सके। भारत को एक व्यापक खाद्य भंडारण व्यवस्था भी कायम करनी होगी। मौसमी उतार-चढ़ाव कृषि उत्पादन पर असर डालेगा और कीमतों पर भी। यहां भी नाबार्ड मददगार साबित हो सकता है।

इसके अलावा भी बहुत कुछ किया जाना है लेकिन चौतरफा प्रयास करने के बजाय हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम प्रयास करें और उन चीजों पर काम करें जो ज्यादा मायने रखती हैं। फिलहाल के लिए इसका अर्थ है लोगों को, खेतों को अत्यधिक तापमान और मौसमी उतार-चढ़ाव से बचाना।
उत्सर्जन में कमी की बात करें तो भारत पहले ही पंचामृत और एनएपीसीसी के साथ उस दिशा में काम कर रहा है। इन प्रयासों को रोकने की आवश्यकता नहीं है केवल नई पहलों पर ध्यान देना होगा जो अधिक गर्म और अप्रत्याशित जलवायु से निपटने में सक्षम हों।

First Published : December 5, 2024 | 9:25 PM IST