केंद्रीय बजट में ऐसी नीतिगत घोषणाओं पर जोर बढ़ता जा रहा है जिनका लक्ष्य है वृद्धि को प्रोत्साहन देना। इस बीच बुनियादी ढांचा क्षेत्र की अपेक्षाएं भी इस रुझान के अनुरूप हो चुकी हैं। आइए बात करते हैं नौ ऐसी बातों की जो इस क्षेत्र को गति देने के लिए जरूरी हैं।
आवंटन: सन 2021-22 के बजट में 5.54 लाख करोड़ रुपये की राशि की प्रतिबद्धता जताई गई थी। यह 2020-21 के 4.39 लाख करोड़ रुपये से 26 फीसदी अधिक थी। बुनियादी ढांचे पर सार्वजनिक व्यय अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने वाला प्रमुख कारक है। ऐसे में कुल आवंटन में 25 फीसदी इजाफे की आशा करना ठीक है यानी यह राशि करीब 7 लाख करोड़ रुपये हो जानी चाहिए। अन्य फंडिंग विकल्पों के साथ मिलाकर देखें तो वित्तीय क्षमता राष्ट्रीय अधोसंरचना पाइपलाइन के 22 लाख करोड़ रुपये प्रति वर्ष के निवेश लक्ष्य के करीब पहुंच सकती है। इसमें सार्वजनिक इकाइयों की ओर से निवेश, नैशनल बैंक फॉर फाइनैंसिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर ऐंड डेवलपमेंट (एनएबीएफआईडी) का वितरण, बुनियादी व्यय में राज्यों का योगदान, देसी और विदेशी पूंजी तथा राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन की प्रक्रियाएं आदि शामिल हैं।
एनएबीएफआईडी का परिचालन: इसका घोषित इरादा अप्रैल 2022 से ऋण देने का है। इसके लिए बजट में बताना होगा कि शुरुआती इक्विटी पूंजी यानी 20,000 करोड़ रुपये तथा 5,000 करोड़ रुपये के एकबारगी अनुदान की क्या स्थिति है। वैश्विक फंडिंग बढ़ाने के लिए 0.1 फीसदी का सॉवरिन गारंटी शुल्क, दीर्घावधि के पूंजी प्रदाताओं के लिए 10 वर्ष की आयकर छूट, लागत के बचाव के लिए विशेष प्रावधान आदि शामिल हैं।
म्युनिसिपल बॉन्ड: रिजर्व बैंक ने 30 नवंबर 2021 को एक रिपोर्ट में कहा कि देश के शहरों और कस्बों की वित्तीय स्थिति गहरे दबाव में है जिससे उन्हें व्यय में कटौती करनी पड़ रही है। ऐसे में म्युनिसिपल बॉन्ड को प्रोत्साहित करना अहम है। बजट में कई उपायों पर विचार किया जा सकता है। इनमें ब्याज अनुदान, कर रियायत, ऋण में इजाफा आदि शामिल हैं। दुनिया भर में म्युनिसिपल बॉन्ड बाजार फंडिंग का स्थापित जरिया हैं। अमेरिका में इस बाजार का आकार 4 लाख करोड़ डॉलर है।
श्योरिटी बॉन्ड: विनिर्माण क्षेत्र में बैंक गारंटी पर बहुत जोर दिया जाता है। वहां मांगे जाने वाली नकदी के मार्जिन तथा बैंकों का गारंटी के लिए अन्य शर्तों पर बहुत जोर होता है। कई मामलों में मौजूदा बैंक गारंटी की सीमा का पूरा इस्तेमाल हुआ और बैंक अब उसे बढ़ाने से इनकार कर रहे हैं। भारतीय बीमा नियामक ने हाल में एक कार्य पत्र जारी किया है जिसमें कहा गया है कि बैंक गारंटी की जगह बीमा कंपनियां श्योरिटी बॉन्ड जारी करें। केंद्रीय बजट यह स्पष्ट संकेत दे सकता है कि 2022-23 में श्योरिटी बॉन्ड जारी किए जाएंगे।
सार्वजनिक खरीद में सुधार: अब तक की सबसे अहम घोषणओं में से एक 29 अक्टूबर 2021 को जारी वित्त मंत्रालय की सरकारी खरीद और परियोजना प्रबंधन संबंधी अधिसूचना थी। इसने काम के ठेकों के लिए ‘एल 1 राज’ (कम लागत वाली निविदा को बोली देने) समाप्त करने, समय पर भुगतान के निर्देश देने और सरकार द्वारा मध्यस्थता के मामलों में हार का मान रखने की प्रक्रिया शुरू की। इससे सार्वजनिक खरीद प्रक्रिया का नया युग शुरू हुआ। केंद्रीय बजट को इन सुधारों का भी श्रेय लेना चाहिए और यह भरोसा दिलाना चाहिए कि नए मानकों को कड़ाई से लागू किया जाएगा तथा राज्यों को साथ लिया जाएगा। फिलहाल यह अधिसूचना केवल केंद्र की खरीद संस्थाओं तक सीमित है।
हाइड्रोजन मिशन: सन 2021-22 के बजट में 800 करोड़ रुपये की राशि हाइड्रोजन मिशन के लिए अलग रखी गई है। 15 अगस्त को प्रधानमंत्री ने घोषणा की थी कि हरित हाइड्रोजन ही दुनिया का भविष्य है। उन्होंने राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की घोषणा करते हुए कहा था कि देश को हरित हाइड्रोजन उत्पादन और निर्यात का केंद्र बनाना होगा। हाइड्रोजन का इस्तेमाल उद्योगों, परिवहन और बिजली के उपकरणों में किया जाएगा। बजट में इस प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने के उपायों पर भी विचार करना चाहिए। ऐसे संयंत्रों की स्थापना में निवेश तथा इलेक्ट्रोलाइजर्स के निर्माण पर उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन दिए जाने चाहिए।
रेलवे बजट: नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रेलवे के वित्त संबंधी हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि परिचालन अनुपात सही वित्तीय प्रदर्शन नहीं दर्शाता। इसके मुताबिक 2019-20 में इसके 98 रहने की बात कही गई लेकिन अगर पेंशन भुगतान पर वास्तविक व्यय देखें तो यह 114 था। अतीत में सुरक्षा, रखरखाव आदि विभिन्न मदों पर बुकिंग व्यय का मसला भी रहा है। यह सुखद है कि हालिया नीतिगत घोषणाओं में नए रेल मंत्री ने परिचालन अनुपात को पारदर्शी बनाने की प्रतिबद्धता जताई है।
सीमेंट के लिए जीएसटी स्लैब: सीमेंट आम आदमी की आवश्यकता की वस्तु है। बड़े पैमाने पर बुनियादी निर्माण की जरूरत का सामान है। बजट में विचार होना चाहिए कि इस पर 28 फीसदी जीएसटी लगे या नहीं। देश में 65 फीसदी से अधिक सीमेंट आम लोग इस्तेमाल करते हैं। इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलना इस क्षेत्र की परेशानी है। सार्वजनिक काम की लागत कम करने और छोटे निर्माण में राहत मिलने से आर्थिक विकास पर असर पड़ेगा भले ही अल्पावधि में राजस्व कुछ कम हो।
एसईजेड और सीईजेड: विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) बीते वर्षों में अतार्किक हो चुके हैं। आशा है कि उन्हें प्रासांगिक बनाने के लिए नई नीतियां घोषित की जाएंगी। करीब चार तटीय आर्थिक क्षेत्र (सीईजेड) बनाने की अवधारणा भी राजनीतिक-नौकरशाही क्षेत्र में जोर पकड़ रही है। इनसे निर्यात को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी माहौल मिलेगा।