प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 29 फरवरी को मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ के साथ मिलकर संयुक्त रूप से मॉरीशस के एक द्वीपसमूह अगालेगा में एक नई हवाईपट्टी और जेट्टी का उद्घाटन किया। यह कदम हिंद महासागर क्षेत्र में एक प्रमुख सुरक्षा प्रदाता के रूप में भारत की भूमिका को रेखांकित करता है। भारत के समर्थन वाली छह अन्य विकास परियोजनाओं के साथ यह बुनियादी ढांचे के विकास से जुड़ी परियोजना, मोदी सरकार की सबकी सुरक्षा एवं विकास नीति (सागर) का ही हिस्सा है।
इस नीति का लक्ष्य समुद्र के सहयोगी देशों के साथ भारत के आर्थिक एवं सुरक्षा सहयोग को और मजबूत करना है ताकि उनकी समुद्री सुरक्षा क्षमता को बेहतर बनाने में मदद दी जा सके। नया बुनियादी ढांचा एक समुद्री ताकत के रूप में भारत की छवि को भी मजबूत करेगा और हिंद महासागर क्षेत्र में इसकी दखल बढ़ाएगा।
मॉरीशस के मुख्य द्वीप से करीब 1,100 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर में मौजूद अगालेगा द्वीपसमूह के दो द्वीप हैं। यह द्वीप उत्तर में सेशेल्स, पूर्व में मालदीव, अमेरिकी बेस डिएगो गार्सिया और चागोस द्वीप और पश्चिम में मेडागास्कर, मोजांबिक चैनल और अफ्रीका के पूरे पूर्वी तट से घिरने की वजह से इसकी सामरिक स्थिति कुछ ऐसी है कि यह आतंकवाद, समुद्री लूटपाट और अवैध मादक पदार्थों के व्यापार के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्र बन जाता है। इसके अलावा, हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में विदेशी जहाजों, खासकर चीन के युद्धपोतों की भारी तैनाती देखी गई है।
भारत वर्ष 2005 से ही इस हवाईपट्टी पर नए सिरे से काम करने के लिए जोर देता रहा है। हालांकि वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मॉरीशस यात्रा के दौरान भारत ने समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के तहत मौजूदा 800 मीटर की हवाईपट्टी का विकास एक बड़े हवाईक्षेत्र के रूप में करने की योजना थी ताकि वहां बड़े विमान जा सकें।
पहले भारत को अपने बड़े पी-81 विमान को पड़ोस में फ्रांस के रेयूनियो द्वीप में तैनात करना पड़ता था। इस हवाईपट्टी के विकास के बाद भारत अब सीधे तौर पर इस द्वीप पर तीन बड़े विमान को उतारने और उन्हें तैनात करने में सक्षम होगा।
इस नई हवाई पट्टी के साथ, समझौता ज्ञापन में मौजूदा जेट्टी के पास एक बंदरगाह बनाने, खुफिया एवं संचार सुविधाओं के लिए निकाय बनाने और हिंद महासागर से गुजरने वाले जहाजों की पहचान के लिए एक ट्रांसपॉन्डर प्रणाली स्थापित करने का प्रावधान था। मॉरीशस के प्रधानमंत्री के शब्दों में, नई सुविधाओं के चलते क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा बेहतर तरीके से दुरुस्त होंगी। इस बंदरगाह का इस्तेमाल इलाके से गुजरने वाले भारतीय जहाजों द्वारा ईंधन भरने के लिए भी किया जाएगा।
हालांकि, इस बुनियादी ढांचे को तैयार करने का रास्ता इतना आसान नहीं था। वर्ष 2020 में, देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, जिसमें मॉरीशस की सरकार पर राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करने के आरोप लगे। इन भारत विरोधी प्रदर्शनों में कुछ को शायद चीन का भी समर्थन था। फिर भी, महामारी तथा उससे जुड़ी अन्य चुनौतियों के बावजूद 2019 में शुरू हुआ निर्माण कार्य पांच साल के भीतर पूरा हो गया। बुनियादी ढांचे के संचालन के साथ ही भारत ने क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा को बढ़ाने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की है।
समुद्र में बढ़ते दबदबे को लेकर हो रहे विवाद को देखते हुए, यह बुनियादी ढांचा वास्तव में इस क्षेत्र में चीन के द्वारा तेजी से किए जा रहे विस्तार के चलते भारत की कुछ चिंताओं को कम करने में भी मददगार साबित होगा। वर्ष 2008 से ही चीनी युद्धपोत हिंद महासागर में गश्त लगा रहे हैं और 2017 से, चीन ने जिबूती में अपना एक नौसेना सैन्य आधार बना
रखा है।
मालदीव के भारत विरोधी रुख के संदर्भ में इस बुनियादी ढांचे का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। मालदीव को चीन द्वारा सैन्य सहायता दिए जाने से जुड़े समझौते से भी इसकी पुष्टि होती है और इसकी तस्दीक इस बात से भी होती है कि मालदीव ने भारतीय सैन्य बलों को जाने के लिए कहा है। मालदीव के साथ भारत के संबंध अब तक के सबसे खराब स्तर पर पहुंच गए हैं और हिंद महासागर क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाए रखने की भारत की कोशिश के संदर्भ में मॉरीशस महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
भारत और मॉरीशस के संबंधों का एक लंबा इतिहास रहा है जो ब्रितानी जहाजों में भारत के गिरमिटिया मजदूरों के मॉरीशस पहुंचने, कारीगरों तथा राजमिस्त्री के रूप में काम करने और बाद में चीनी बागानों में काम करने से जुड़ा रहा है। महात्मा गांधी के दांडी मार्च के सम्मान में, मॉरीशस का राष्ट्रीय दिवस 12 मार्च को मनाया जाता है। इसके अलावा मॉरीशस में करीब 70 प्रतिशत से अधिक आबादी के भारतीय मूल की होने के कारण इस द्वीप में भारतीयों का प्रभाव महत्त्वपूर्ण बना हुआ है।
इसके ऐतिहासिक संबंधों के अलावा, भारत वर्तमान में मॉरीशस के शीर्ष व्यापारिक साझेदारों में से एक है जिसका वर्ष 2022-23 में द्विपक्षीय व्यापार 55.4 करोड़ डॉलर रहा। भारतीय उद्यमियों ने पिछले पांच सालों में यहां 20 करोड़ डॉलर से अधिक निवेश किया है।
वर्ष 2021 में, विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने व्यापक आर्थिक सहयोग एवं भागीदारी समझौते (सीईसीपीए) पर हस्ताक्षर किए जो किसी भी अफ्रीकी देश के साथ भारत का पहला व्यापार समझौता है। उन्होंने मॉरीशस के लिए 10 करोड़ डॉलर के रक्षा ऋण की घोषणा की। भारतीय नागरिक अब रुपये का का इस्तेमाल कर सुगमता से मॉरीशस में भुगतान कर सकते हैं जिसकी सुविधा रुपे कार्ड सेवाओं के चलते मिली है। इसी तरह, मॉरीशस के नागरिक भारतीय वस्तुओं एवं सेवाओं के भुगतान के लिए यूपीआई का उपयोग कर सकते हैं।
भारत किसी मंच/उपकरण, क्षमता निर्माण, संयुक्त गश्ती, जल विज्ञान सेवाओं आदि के लिए मॉरीशस का पसंदीदा रक्षा भागीदार भी है। मॉरीशस भारत की पड़ोसी देश से जुड़ी नीति का एक प्रमुख भागीदार है। भारत इस क्षेत्र में अपनी दखल को मजबूत कर रहा है ऐसे में निश्चित तौर पर चीन से चुनौती बढ़ने की संभावना बढ़ेगी। फिर भी, जैसा कि भारत का लक्ष्य हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी पैठ मजबूत करना और एक सुरक्षा प्रदाता के रूप में अपनी भूमिका को बढ़ाना है। इसके साथ-साथ भारतीय नौसेना का महत्त्व बनाए रखने के साथ ही मॉरीशस के साथ इसकी साझेदारी निर्णायक कारक बनी रहेगी।
(लेखक ओआरएफ में क्रमशः अध्ययन एवं विदेश नीति के उपाध्यक्ष और एसोसिएट फेलो, अफ्रीका हैं)