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पूर्वोत्तर की राजनीति में हिमंत अपरिहार्य

Published by
आदिति फडणीस
Last Updated- December 23, 2022 | 11:52 PM IST

शायद ही ऐसा होता है जब किसी राज्य के मुख्यमंत्री का प्रभुत्व दूसरे राज्य में भी होता हो। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं का अन्य राज्यों में उपयोग तो किया लेकिन सिर्फ चुनाव प्रचार के लिए। ऐसा कोई भी प्रमाण नहीं है कि उत्तर प्रदेश से बाहर किसी राज्य में अन्य दलों के साथ गठबंधन के लिए बातचीत में योगी आदित्यनाथ की भूमिका रही हो। इस तरह के इस श्रेय के हकदार अकेले हिमंत विश्व शर्मा ही हैं।

असम के मुख्यमंत्री शर्मा आज भले ही भाजपा में हों, लेकिन उन्होंने यह कूटनीति तरुण गोगोई जैसे कांग्रेस के कुछ दिग्गज नेताओं से ही सीखी है, जिनके साथ उन्होंने कई वर्षों तक काम किया। वैसे यहां तात्पर्य शर्मा की खुद की राजनीतिक अनुनय की प्रतिभा को कम आंकना नहीं है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी सरकार बनाने के लिए गठबंधन करने का काम बड़ी तेजी से करते हैं, लेकिन वह इस बात को भी जानते हैं कि इसके लिए कब तक प्रयास करना है। इस सिलसिले में शिरोमणि अकाली दल का उदाहरण लिया जा सकता है। जब लगा कि स्थिति हाथ से निकल रही है तो भाजपा ने उसे गठबंधन से जाने दिया। दूसरी ओर हिमंत विश्व शर्मा के काम करने का तरीका ज्यादा समझौतापरक और उदार है।

इस बात पर थोड़ा आश्चर्य भी होगा कि वह पूर्वोत्तर भारत में किसी भी राजनीतिक रणनीति के लिए नवाब के रूप में माने जाते हैं। असम में पहली बार 2016 में भाजपा सरकार बनी और सर्वानंद सोनोवाल को मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके कुछ दिन बाद अमित शाह ने पूर्वोत्तर विकास परिषद (नेडा) के गठन की घोषणा की और क्षेत्र के उन सभी स्थानीय दलों ने मिलकर गठबंधन किया जिनकी विचारधारा भाजपा से मेल खाती थी। हिमंत विश्व शर्मा को संयोजक की ​जिम्मेदारी दी गई और इसके साथ ही उन्हें असम के अलावा अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में खुद की पहुंच बढ़ाने और भाजपा के विकास की बागडोर संभालने का मौका मिल गया।

इसके अलावा उन्हें पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के लिए बने केंद्रीय मंत्रालय (एमडीओएनईआर) तक पहुंच भी सुलभ करा दी गई। इस मंत्रालय का गठन 2001 में किया गया था लेकिन 2014 में भाजपा के आने से पहले तक कोई भी सरकार इसका राजनीतिक लाभ नहीं उठा पाई थी। शर्मा की तरफ से नीतिगत रूप से इस बात पर जोर डाला गया कि इस परियोजनाओं के लिए धन दिया जाना चाहिए और इससे न केवल संबद्ध राज्यों को फायदा होगा बल्कि भाजपा को भी इससे राजनीतिक लाभ पहुंचेगा।

नेडा एक शक्तिशाली गठबंधन बनकार उभरा। मेघालय में कोनॉर्ड संगमा के नेतृत्व वाली सत्ताधारी नैशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) के भले ही आज भाजपा के साथ मतभेद हो गए हों और कह रही हो कि वह बिना किसी गठबंधन के चुनाव लड़ेगी। लेकिन वह आज भी नेडा की सदस्य है, क्योंकि कौन जानता है कि कब भाजपा की सत्ता आ जाए और इसका दामन फिर से थामना पड़े? कई उदाहरण पहले से ही मौजूद हैं जब शर्मा ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पूर्वोत्तर की राजनीति में भाजपा के लिए बेहद अहम भूमिका निभाई है।

शर्मा ने ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (एएएसयू) में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की और 2001 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने असम गण परिषद (एजीपी) के भृगु कुमार फुकन को हरा दिया। विधानसभा सीट पर विजय हासिल करने के साथ ही उन्होंने संगठन को छोड़ दिया। शर्मा के इस कदम ने इतिहास रच दिया था। बाद में वह कांग्रेस में शामिल हो गए और धीरे-धीरे पूरे असम में पार्टी का मुख्य चेहरा बन गए। वह संगठन में फले-फूले और धीरे-धीरे तरुण गोगोई का दाहिना हाथ बन गए। दोनों के बीच पिता-पुत्र जैसा प्रबल हो गया था। सिवाय इसके कि गोगोई के एक पुत्र हैं जो अब असम से सांसद हैं।

फिर भी, शर्मा को उम्मीद थी कि उनकी पार्टी उनकी अनोखी प्रतिभा को पहचानेगी और पारिवारिक दावों पर उन्हें बढ़ावा देगी। गोगोई ऐसे नेता नहीं थे जिन्हें हल्के में लिया जा सके। उन्होंने 2011 में लगातार तीसरी बार कांग्रेस को जीत दिलाई थी और इसके बाद वह विधानसभा की 126 में से 78 सीटें जीतकर मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन शर्मा को लगा कि उन्हें भी इस जीत का श्रेय मिलना चाहिए। जुलाई 2014 में गोगोई ने शर्मा का नाम लेकर गुस्सा जाहिर किया। गोगोई ने एक जनसभा में कहा, ‘मैं उन पर बहुत भरोसा करता था। अब वह मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं, कम नहीं। अब मेरे उनके साथ अच्छे संबंध नहीं हैं।’

बदला लेने में डटे, शर्मा ने इतनी पहुंच बना ली थी कि वह कांग्रेस के कुछ नेताओं को अपनी तरफ जोड़ सकें। उन्होंने ऐसा ही किया और कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) की एक बैठक बुलाने के लिए पर्याप्त असंतुष्ट नेताओं को एक साथ लाए। यह काफी हद तक निर्णायक रूप से साबित भी हो गया कि मुख्यमंत्री की तुलना में सीएलपी में उनके अधिक समर्थक थे। उन्होंने 78 विधायकों में से 52 का समर्थन पाकर सीएलपी नेता बनने का दावा पेश किया। जिसे अ​खिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने ठुकरा दिया था।

शर्मा ने कड़ी टक्कर देने का विचार बनाया और 2015 में भाजपा को संदेश भेजा। उनका भाजपा में शामिल होना उम्मीद से पहले ही समय में सफल भी हो गया। लेकिन भाजपा के असम में दो ही बड़े नेता थे- पहले कामाख्या ताशा और दूसरे सर्वानंद सोनोवाल। शर्मा के भाजपा में शामिल होने से पहले केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू और सोनोवाल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और लुई बर्जर रिश्वत कांड में शर्मा की भूमिका के बारे में बताया। सोनोवाल ने स्पष्ट किया कि वह शर्मा को एक भ्रष्ट नेता मानते हैं। अमेरिकी अदालतों ने 2006 और 2011 के बीच अमेरिकी फर्म लुई बर्जर को इस बात के लिए दोषी ठहराया था कि फर्म ने शहर को पानी उपलब्ध कराने का ठेका हासिल करने के लिए भारतीय सांसदों को रिश्वत दी थी।

उस दौरान शर्मा गुवाहाटी विकास विभाग के मंत्री थे। लेकिन इस अनुबंध से संबंधित सभी फाइलें गायब हो गई हैं। प्रवर्तन निदेशालय के पूर्वी क्षेत्र कार्यालय ने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत शिकायत दर्ज की है। गोवा में इसी तरह के आरोपों का सामना कर रहे पीडब्ल्यूडी मंत्री चर्चिल अलेमाओ को गिरफ्तार किया गया था। लेकिन गुवाहाटी में अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। और अब कोई भी गिरफ्तारी नहीं होगी। मेघालय, त्रिपुरा और नागालैंड में अगले कुछ महीनों में चुनाव होने वाले हैं, हिमंत विश्व शर्मा काफी सक्रिय हैं। क्योंकि वह आदिवासी राजनीति की जटिलताओं और नागरिकता का मुद्दा औरों से ज्यादा समझते हैं। ऐसे में वह एक उपयोगी व्यक्ति है।

First Published : December 23, 2022 | 9:31 PM IST