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रखनी होगी तैयारी

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 8:02 PM IST

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने गत सप्ताह यह निर्णय लिया कि वह अपना ध्यान मूल्य स्थिरता पर केंद्रित करके अपने नीतिगत रुख को नए सिरे से निर्धारित करेगा। यही कारण है कि केंद्रीय बैंक ने नीतिगत दायरे को सामान्य किया। बहरहाल, रिवर्स रीपो दर में इजाफा करने के बजाय आरबीआई ने एक अन्य उपाय पेश किया जिसका नाम है स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी (एसडीएफ)। यह उपाय नीतिगत दायरे के लिए एक आधार के रूप में काम करेगा। केंद्रीय बैंक ने रिवर्स रीपो दर को अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया लेकिन यह सामान्य परिस्थितियों के लिए अनावश्यक है। एसडीएफ की दर नीतिगत रीपो दर से 25 आधार अंक कम रहेगी जबकि मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी रेट रीपो दर से 25 आधार अंक ऊपर रहेगी। इससे महामारी के पहले का 50 आधार अंक का स्तर बहाल हो जाएगा। बेहतर तो यही होगा कि आरबीआई महामारी की तरह अब भी इस दायरे को न छेड़े।
इस बीच मौद्रिक नीति समिति ने नीतिगत रीपो दर और रुख को अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया लेकिन अब उसका ध्यान समायोजन को समाप्त करने पर है। वह बिना वित्तीय बाजारों को छेड़े आसानी से अपने रुख को निरपेक्ष बना सकती थी। बल्कि ऐसा करने से दरें तय करने वाली समिति को अनिश्चित आर्थिक माहौल में ज्यादा लचीलापन मिलता। एमपीसी ने चालू वर्ष के लिए अपने मुद्रास्फीतिक अनुमान को संशोधित कर 5.7 फीसदी कर दिया है। हालांकि तिमाही अनुमान बताते हैं कि मुद्रास्फीति की दर के लगातार तीन तिमाहियों तक तय दायरे के स्तर को पार करने की पूरी संभावना है।  जनवरी और फरवरी में दरें छह फीसदी से अधिक थीं। मार्च के आंकड़े भी छह फीसदी से अधिक रहने का अनुमान है। आरबीआई के अनुमान बताते हैं कि चालू वित्त वर्ष की पहली और दूसरी तिमाही में दरें क्रमश: 6.3 फीसदी और 5.8 फीसदी रहेंगी। यह बात ध्यान देने लायक है कि केंद्रीय बैंक हाल के समय में मुद्रास्फीति के दबाव को कम करके आंकता रहा है। ऐसे में लक्ष्य हासिल न कर पाने को नाकामी माना जाएगा और एक स्पष्टीकरण देना होगा। कानून के मुताबिक आरबीआई को बताना पड़ेगा कि वह किन कारणों से मुद्रास्फीति का लक्ष्य हासिल करने से चूक गया और इस संबंध में कौन से कदम प्रस्तावित हैं।
ऐसे में काफी संभावना है कि एमपीसी को ज्यादा आक्रामक ढंग से कदम उठाने होंगे क्योंकि वास्तविक मुद्रास्फीति अनुमान से अधिक रहेगी। उदाहरण के लिए आरबीआई ने अमेरिकी डॉलर की विनिमय दर 76 रुपये रहने का अनुमान लगाया। चूंकि जिंस कीमतों के अधिक होने के कारण भारत का चालू खाते का घाटा बढ़ सकता है तथा वैश्विक वित्तीय हालात के चलते पूंजी प्रवाह भी कमजोर रह सकता है, ऐसे में रुपये के कमजोर होने की आशंका है। अनुमानों के मुताबिक मुद्रा में 5 फीसदी की गिरावट से मुद्रास्फीति की दर 20 आधार अंक तक बढ़ सकती है। आरबीआई के लिए बेहतर यही होगा कि वह मुद्रास्फीति को थामने के लिए रुपये का बचाव न करे क्योंकि इससे दीर्घावधि का असंतुलन पैदा हो सकता है। आरबीआई का कच्चे तेल की कीमतों संबंधी अनुमान भी दबाव में आ सकता है। अनुमान से अधिक कड़ाई आर्थिक सुधार और वृद्धि को प्रभावित करेगा। वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में आधार प्रभाव के कमजोर पडऩे के साथ वृद्धि के घटकर चार फीसदी रह जाने का अनुमान है। यह बात नीति निर्माताओं को चिंतित करने वाली होनी चाहिए। आरबीआई को जहां मूल्य स्थिरता पर ध्यान देने की जरूरत है, वहीं सरकार को टिकाऊ ढंग से वृद्धि को आगे बढ़ाने पर विचार करना चाहिए।

First Published : April 10, 2022 | 10:44 PM IST