महालेखा नियंत्रक द्वारा हर महीने के अंत में केंद्र सरकार के राजस्व और व्यय के आंकड़े जारी किए जाते हैं और उस समय उसका विश्लेषण और आकलन किया जाता है। ये अंकेक्षण रहित प्रारंभिक आंकड़े होते हैं लेकिन इनसे केंद्र की वित्तीय स्थिति के बारे में मोटा अनुमान लग जाता है।
परंतु वर्ष के दौरान राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति का विश्लेषण नहीं हो पाता। यह दुख की बात है। इसकी एक वजह यह हो सकती है कि ऐसी कोई केंद्रीकृत एजेंसी नहीं है जो सभी 30 राज्यों की वित्तीय स्थिति के आंकड़े जुटाए और उन्हें मासिक आधार पर उपलब्ध कराए। भारतीय रिजर्व बैंक राज्यों के बजट पर एक अध्ययन करता है लेकिन चूंकि वह वार्षिक प्रकाशन है इसलिए वह देर से आता है।
गत 10 वर्षों से राज्यों के बजट का संयुक्त आकार केंद्र के बजट से अधिक रहा है। राज्यों के बजट का आकार 2011-12 में पहली बार केंद्र के बजट से अधिक हुआ। उस वर्ष यह चार फीसदी अधिक था। सन 2020-21 में राज्यों का बजट केंद्र के बजट से 22 फीसदी अधिक था। ऐसे में राज्य अपने व्यय अथवा राजस्व का क्या करते हैं यह बात अर्थव्यवस्था के लिए उतनी ही अहम है जितना कि केंद्र का बजट।
उदाहरण के लिए जब सरकारों से यह आशा होती है कि वे महामारी के दौरान या उसके तत्काल बाद ज्यादा खर्च करेंगी तब मोटे तौर पर ध्यान इस बात पर केंद्रित रहता है कि केंद्र सरकार का व्यय का रुख क्या है। राज्यों पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है जबकि उनके व्यय का आकार काफी बड़ा होता है। राज्यों के बजट के बारे में ताजातरीन जानकारी आसानी से उपलब्ध नहीं होती है और ऐसे में विश्लेषण भी आसानी से नहीं किया जा सकता है। ऐसे में अर्थव्यवस्था पर केवल केंद्र के राजस्व अथवा व्यय के प्रभाव का आकलन काफी भ्रामक होता है।
वर्ष 2021-22 के शुरुआती पांच महीनों के लिए केंद्र सरकार के व्यय और राजस्व के आंकड़े उपलब्ध हैं। लेकिन अब तक केवल 20 राज्यों ने ही अप्रैल-अगस्त 2021 के बिना अंकेक्षण के प्रारंभिक बजट आंकड़े जारी किए हैं। इनमें पश्चिम बंगाल, बिहार, असम दिल्ली और पूर्वोत्तर समेत कुछ अन्य छोटे राज्यों को छोड़कर लगभग सभी बड़े राज्य शामिल हैं। सन 2021-22 के पूर्ण वर्ष के लिए इन 20 राज्यों का कुल व्यय 34.4 लाख करोड़ रुपये रहा जो केंद्र के अनुमानित 34.8 लाख करोड़ रुपये के अनुमानित व्यय से मामूली कम है। अगर इन 20 राज्यों के अप्रैल-अगस्त 2021 के व्यय और राजस्व संग्रह के तौर तरीकों का विश्लेषण किया जाए तो पता चलता है कि उनका तरीका केंद्र से एकदम अलग रहा।
पहली बात ये राज्य, केंद्र की तुलना में समग्र व्यय के मामले में कम कंजूस रहे हैं। अप्रैल-अगस्त 2021 में उनका कुल व्यय 2020 की समान अवधि की तुलना में 13 फीसदी और 2019 की समान अवधि की तुलना में 11 फीसदी बढ़ा। इसके विपरीत केंद्र सरकार ने गत वर्ष की तुलना में व्यय केवल दो फीसदी जबकि 2019 की तुलना में 9 फीसदी बढ़ाया। हालांकि केंद्र ने महामारी की पहली लहर के बीच अप्रैल-अगस्त 2020 में राज्यों की तुलना में ज्यादा व्यय किया। केंद्र के कुल व्यय में हुए छह फीसदी के इजाफे के उलट राज्यों का व्यय अप्रैल-अगस्त 2020 में दो फीसदी कम हुआ। राज्यों के व्यय में इजाफा इस आम धारणा के विपरीत है कि राज्यों ने चालू वित्त वर्ष के शुरुआती पांच महीनों में अपना व्यय कम किया।
परंतु चिंता की बात यह है कि इस वर्ष राज्यों के व्यय में जो इजाफा हुआ उसका अधिकांश हिस्सा बढ़े हुए राजस्व व्यय में है। अप्रैल-अगस्त 2021 में राज्यों का राजस्व व्यय 2020 की तुलना में 9 फीसदी और 2019 की तुलना में 12 फीसदी बढ़ा। इसके विपरीत केंद्र सरकार ने राजस्व व्यय पर लगाम लगाए रखी और इसमें सालाना आधार पर एक फीसदी की कमी आई। 2019 की तुलना में यह केवल 6 फीसदी बढ़ा।
पूंजीगत व्यय के मोर्चे पर भी केंद्र का प्रदर्शन बेहतर रहा। अप्रैल-अगस्त 2020 में उसके पूंजीगत व्यय में आने वाली कमी भी इन 20 राज्यों से कम रही। यानी सालाना आधार पर जहां राज्यों के पूंजीगत व्यय में अप्रैल-अगस्त 2021 में काफी इजाफा देखने को मिला वहीं यह बढ़ोतरी 2019 की तुलना में केवल 10 फीसदी थी। दो वर्ष पहले की तुलना में केंद्र के पूंजीगत व्यय में 26 फीसदी की अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि देखने को मिली।
दूसरी बात, केंद्र तथा इन 20 राज्यों के बीच ज्यादा विरोधाभासी बात कर राजस्व संग्रह में भी नजर आती है। केंद्र (शुद्ध राजस्व) तथा इन 20 राज्यों के कर राजस्व में अप्रैल-अगस्त 2020 में 30 फीसदी की कमी आई। ऐसा लॉकडाउन की वजह से हुआ।
परंतु 2021 के समान महीनों में उनका प्रदर्शन एकदम अलग है। केंद्र का शुद्ध राजस्व 127 फीसदी बढ़ा जबकि इन 20 राज्यों का कर राजस्व 52 फीसदी बढ़ा। केंद्रीय करों में इन 20 राज्यों की हिस्सेदारी कम होती रही। अप्रैल-अगस्त 2020 में इसमें 14 फीसदी की कमी आई जबकि 2021 की समान अवधि में यह चार फीसदी और घट गया।
इससे एक विडंबनात्मक तस्वीर बनती है। राजस्व संग्रह के मामले में राज्यों का प्रदर्शन अपेक्षाकृत कमजोर रहा लेकिन उनका व्यय अधिक है, खासकर राजस्व खाते में। परंतु केंद्र सरकार को अपने संग्रह तथा राज्यों को हस्तांतरण कम करने के कारण काफी लाभ हो रहा है। इसके बावजूद केंद्र अपना बटुआ ढीला नहीं कर रहा है क्योंकि उसका कुल व्यय नियंत्रण में है और केवल पूंजीगत व्यय में ही इजाफा हुआ है। आखिर में इसके चलते राज्यों का संयुक्त राजकोषीय घाटा काफी अधिक हो सकता है जबकि केंद्र के घाटे के लक्ष्य में मामूली भटकाव दिख सकता है। केंद्र सरकार अपने राजकोषीय विवेक का जश्न मनाएगी, लेकिन राज्यों को परेशानी होगी। परंतु भारतीय अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाले केवल केंद्र के आंकड़ों को नहीं देखेंगे। वे संयुक्त राजकोषीय प्रदर्शन पर नजर डालेंगे। राज्यों के वित्तीय प्रदर्शन में विचलन पर जल्दी नजर डालने से मदद मिल सकती है लेकिन पहला काम यह सुनिश्चित करना होना चाहिए कि केंद्र की तर्ज पर सभी राज्यों का बजट डेटा मासिक आधार पर जारी हो।