संपादकीय

Editorial: अमेरिका में रेमिटेंस टैक्स लागू – भारतीय प्रवासियों पर पड़ेगा सीधा असर

इस कर को अमेरिका में चुकाए जाने वाले अन्य संघीय या राज्य स्तरीय करों के विरुद्ध समायोजित भी नहीं किया जा सकेगा।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- May 26, 2025 | 10:44 PM IST

अमेरिका की प्रतिनिधि सभा द्वारा एक मत (पक्ष में 215, विपक्ष में 214) के अत्यंत कम अंतर से पारित ‘बड़े और सुंदर’ कर एवं व्यय विधेयक में एक छोटा अनाकर्षक प्रावधान शामिल है जो संभवत: अमेरिका में रहने वाले अनेक गैर नागरिकों को प्रभावित करेगा। यह है 3.5 फीसदी का ‘रेमिटेंस टैक्स’ जो सभी ग्रीन कार्ड धारकों और एच1बी, एल1 (जिसके तहत बहुराष्ट्रीय कंपनियां विदेशी शाखाओं के कर्मचारियों को अस्थायी रूप से अमेरिका स्थानांतरित कर सकती हैं) और एफ1 यानी छात्र, श्रेणियों के गैर आप्रवासी वीजा धारकों पर लागू किया जाएगा। इस कर को अमेरिका में चुकाए जाने वाले अन्य संघीय या राज्य स्तरीय करों के विरुद्ध समायोजित भी नहीं किया जा सकेगा। इस बात को लेकर राहत का भाव है कि कर को मूल प्रावधान के 5 फीसदी से कम कर दिया गया है लेकिन इसके अनचाहे नकारात्मक परिणाम सामने आ सकते हैं।

कर लगाने के पीछे तर्क डॉलर के बहिर्गमन को रोकना बताया जा रहा है। अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा रेमिटेंस भेजने वाला देश है। वर्ष 2023 में वहां रहने वाले प्रवासियों ने करीब 85.7 अरब डॉलर की राशि बाहर भेजी जो वैश्विक रेमिटेंस का करीब 27 फीसदी थी। बहरहाल, व्यापक तस्वीर को ध्यान में रखें तो आर्थिक तर्क कमजोर प्रतीत होता है। ऐसा लगता है कि इसका वास्तविक लक्ष्य डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन के आप्रवासी विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ाना है। इस धन प्रेषण का विनिमय दरों या मुद्रा भंडार पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता है। कुल मिलाकर यह रेमिटेंस अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद के एक फीसदी से भी कम है। परंतु डॉलर की मजबूती को देखते हुए प्राप्तकर्ता देशों में रहने वाले परिवारों पर इसका अहम असर होगा। तकरीबन 50 लाख भारतीयों के पास अमेरिकी वीजा है। 2.07 लाख लोगों के पास एच1बी वीजा और 3.31 लाख लोगों के पास छात्र (एफ1) वीजा है और वे ग्रीन कार्ड धारकों में अहम हिस्सेदारी रखते हैं। तकरीबन 32 अरब डॉलर के साथ अमेरिका भारत आने वाले रेमिटेंस में 27 फीसदी के लिए जिम्मेदार है। यह कर कम से कम कॉरपोरेट मोबिलिटी कार्यक्रमों और प्राप्तकर्ता देश में होने वाले व्यय को प्रभावित करेगी।

आप्रवासन को हतोत्साहित करने के अलावा यह समझ पाना मुश्किल है कि अमेरिका को इस कर से क्या लाभ होगा। सिलिकन वैली में पहले ही यह भय पैदा होने लगा है कि प्रशासन के प्रवासी विरोधी एजेंडे के कारण उसके पास प्रतिभाओं की कमी हो सकती है। अगर विदेशी छात्र-छात्राएं, जो विश्वविद्यालयों के राजस्व का मुख्य जरिया हैं, उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए वैकल्पिक देशों का रुख करते हैं तो प्रतिभाओं तक पहुंच और भी कम हो जाएगी। जहां तक भारत का संबंध है, रेमिटेंस कर दुर्भावना भी दर्शाता है क्योंकि भारत ने व्यापार समझौते के पहले सहृदयता के संकेत के रूप में ऑनलाइन विज्ञापन पर लगने वाला 6 फीसदी का ‘गूगल कर’ एक अप्रैल से समाप्त कर दिया था। यह भारत-अमेरिका दोहरे कराधन निवारण संधि के गैर भेदभावकारी प्रावधान का उल्लंघन भी हो सकता है। हालांकि अभी इस बारे में कुछ स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है।

यह विडंबना ही है कि प्रवासियों को अपना पैसा अमेरिका में रखने के लिए प्रेरित करने के बजाय यह कर उन्हें इस बात के लिए प्रोत्साहित कर सकता है कि वे तय सीमा से नीचे रहने की कोशिश करें। इससे हवाला कारोबार दोबारा सिर उठा सकता है। व्यक्तिगत स्तर पर विनिमय नियंत्रण उदार होने के साथ ही हवाला का तंत्र कमोबेश खत्म हो चुका था। यह कुछ ऐसा होगा जो वास्तव में कोई नहीं चाहेगा। इससे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा प्रवाह पर निगरानी रखने की व्यवस्था कमजोर पड़ेगी। इसमें चाहे जितनी बुराई हो लेकिन संभावना यही है कि जून में सीनेट इसे पारित कर देगी क्योंकि वहां रिपब्लिकंस के पास सहज बहुमत है। ऐसा लगता  है कि 2026 के आरंभ में उस पर हस्ताक्षर हो जाएंगे। भारत को इसके प्रभाव के लिए तैयार रहना चाहिए।

First Published : May 26, 2025 | 10:28 PM IST