संपादकीय

Editorial: व्यापक अनिश्चितता: ट्रंप ने वैश्विक व्यापार को अनदेखे मार्ग पर धकेला

निकट और मध्यावधि में हालात कैसे विकसित होते हैं, यह देखना अभी बाकी है। भारत को नए वैश्विक परिदृश्य में उभरते अवसरों के प्रति सजग रहना होगा।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- July 08, 2025 | 10:34 PM IST

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने सोमवार को एक दर्जन से अधिक देशों को पत्र लिखकर, उनके यहां से अमेरिका को होने वाले आयात पर 25 से 40 फीसदी तक का शुल्क लगाने की बात कही है। यह 1 अगस्त से प्रभावी होगा। जिन देशों को नई शुल्क दरों के बारे में बता दिया गया है उनमें जापान और दक्षिण कोरिया भी शामिल हैं जिनके आयात पर 25 फीसदी शुल्क लगाया जाएगा जबकि कुछ अन्य क्षेत्रवार दरें भी लागू होंगी। इस सूची में भारत का नाम नहीं है और ट्रंप का वक्तव्य संकेत देता है कि भारत और अमेरिका दोनों जल्दी ही एक व्यापार समझौते पर पहुंच सकते हैं।

भारत के नजरिये से देखा जाए तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए और सरकार को यह श्रेय दिया जाना चाहिए कि वह अमेरिकी प्रशासन के साथ सक्रियता से बातचीत कर रही है। हालांकि, समझौते की प्रकृति और दोनों पक्षों की ओर से दी जाने वाली संभावित रियायतें अभी तक स्पष्ट नहीं हैं। खबरें बताती हैं कि भारतीय समय के अनुसार मंगलवार देर रात तक समझौते का विस्तृत ब्योरा सामने आ सकता है।

तथाकथित जवाबी शुल्क पर स्थगन की 90 दिन की अवधि समाप्त होने और अमेरिका द्वारा पत्र भेजे जाने के बीच कुछ बातें स्पष्ट हैं। कारोबारी साझेदारों के साथ व्यक्तिगत समझौतों पर बातचीत आसान नहीं है और जैसा कि कई लोगों को डर था, अमेरिका ने एकपक्षीय तरीके से काम करने का निर्णय लिया है। वह अब उन देशों पर भी ऊंची शुल्क दर आरोपित कर रहा है जिनके साथ उसका मुक्त व्यापार समझौता है। सख्त बातचीत के बावजूद अमेरिका केवल यूनाइटेड किंगडम और वियतनाम के साथ ही समझौता कर सका है और वियतनाम के साथ उसके समझौते को लेकर भी कई प्रश्न उठे हैं।

चीन के साथ एक समझौता हुआ है लेकिन इसका संबंध दुर्लभ खनिज तत्वों की आपूर्ति से ज्यादा है। इन पत्रों से पता चलता है कि ट्रंप के कदमों के पीछे असल कारण विभिन्न देशों के साथ व्यापार घाटा है। उनके लिए किसी भी देश के साथ व्यापार घाटा, गैरबराबरी का परिचयक है जिसे ठीक किया जाना चाहिए, शुल्क के साथ कम से कम आंशिक रूप से इसमें सुधार किया जाना चाहिए।

इतना ही नहीं, अगर उसके कारोबारी साझेदार प्रतिरोध करने की कोशिश करते हैं तो अमेरिका शुल्क दर बढ़ाने के लिए भी तैयार है और अगर साझेदार अपने बाजारों को अमेरिकी निवेश के लिए खोलते हैं तो वह शुल्क दरें कम करने का इच्छुक है। अमेरिका के कदम अब यह दिखाते हैं कि बहुपक्षीय वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में नेतृत्व की भूमिका को बचाए रखने की उसकी कोई इच्छा नहीं है। उसका रुख संकीर्ण सोच वाला और अल्पावधि के आकलन पर आधारित है। इसमें से अधिकांश का ठोस आर्थिक आधार नहीं है।

अब जबकि यह स्पष्ट है कि अमेरिकी शुल्क दर ट्रंप की ‘लिबरेशन डे’ की घोषणा से अधिक होंगे तो यह बात मुद्रास्फीति संबंधी अनुमानों को प्रभावित करेगी और अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के आकलन को भी प्रभावित करेगी। इससे मुद्रास्फीति के अनुमानों पर असर पड़ने की संभावना है और यह अमेरिकी फेडरल रिजर्व की गणना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इससे मौद्रिक सहजता प्रभावित होगी। ऐसे में ट्रंप फेडरल रिजर्व पर दबाव और बढ़ा सकते हैं। उनका मानना है कि केंद्रीय बैंक नीतिगत ब्याज दरों को स्थिर रखकर सही काम नहीं कर रहा है।

भारत के लिए अभी यह देखना होगा कि अमेरिका के साथ होने वाला नया समझौता घरेलू अर्थव्यवस्था और निर्यात पर क्या असर डालता है। भारत में कृषि क्षेत्र को खोलने को लेकर आशंकाएं हैं क्योंकि वह देश की आधी से अधिक आबादी की आजीविका का साधन है। हालांकि यह देखना अहम होगा कि भारत को अन्य समकक्ष देशों की तुलना में किस प्रकार की टैरिफ रियायत मुहैया कराई जाती है लेकिन संभावित लाभ सीमित ही रहेंगे। अमेरिकी नीति व्यापार घाटे से संचालित है और किसी भी देश के साथ घाटे में इजाफा होने पर दरें बढ़ाई जाएंगी। ट्रंप ने विश्व व्यापार व्यवस्था को अनिश्चित हालात में डाल दिया है और यह देखना होगा कि मध्यम अवधि में हालात क्या मोड़ लेते हैं। काफी कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगा कि अन्य बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश हालात से कैसे निपटते हैं। भारत को नई विश्व व्यवस्था में उभरते अवसरों के लिए तैयार रहना होगा।

 

First Published : July 8, 2025 | 10:12 PM IST