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Editorial: महिलाओं का प्रतिनिधित्व

आगामी संसदीय चुनाव प्रचार अभियान में महिलाएं केंद्रीय भूमिकाओं में नजर आ रही हैं। हर राजनीतिक दल महिलाओं को लेकर चुनावी वादे कर रहा है।

Last Updated- March 27, 2024 | 9:25 PM IST
MP: Women reservation increased in government jobs, will get more employment opportunities MP: सरकारी नौकरियों में महिला आरक्षण बढ़ा, मिलेंगे रोजगार के ज्यादा अवसर

आगामी संसदीय चुनाव प्रचार अभियान में महिलाएं केंद्रीय भूमिकाओं में नजर आ रही हैं। हर राजनीतिक दल महिलाओं को लेकर चुनावी वादे कर रहा है जो देश के कुल 96.8 करोड़ मतदाताओं में करीब आधी हैं। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस लगातार महिला मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए एक किस्म की होड़ में नजर आए हैं।

भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने जहां महिलाओं पर केंद्रित व्यापक स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य कार्यक्रमों की शुरुआत की है, वहीं कांग्रेस ने नारी न्याय योजना की पेशकश की है जिसके तहत महिलाओं के बैंक खातों में एक लाख रुपये डाले जाएंगे और केंद्र सरकार की सभी नौकरियों में उन्हें 50 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा।

ऐसे बढ़ाचढ़ाकर किए गए वादे किस हद तक पूरे हो सकते हैं यह एक बड़ा सवाल है लेकिन यह देखना विचित्र है कि सभी दल राजनीतिक बयानबाजी में इतने आगे निकल चुके हैं। पिछले वर्ष संसद के विशेष सत्र में 106वां संशोधन अधिनियम पारित होने के बाद यह विषय खासतौर पर विवादास्पद हो गया है। इसे महिला आरक्षण विधेयक के नाम से जाना जाता है जिसके तहत 15 वर्षों तक महिलाओं को संसद में 33 फीसदी आरक्षण देने की बात कही गई है।

चूंकि यह प्रावधान परिसीमन के बाद लागू होगा इसलिए सभी राजनीतिक दलों के पास पर्याप्त समय है कि वे इसके लिए अपनी चुनावी सूची तैयार कर सकें। इसके बावजूद राजनीतिक दल महिलाओं के मुद्दों पर दिखावा ही करते हैं और इसकी एक बानगी यह है कि किसी प्रमुख राजनीतिक दल ने अपनी पार्टी उम्मीदवारों की सूची में अब तक महिलाओं को समुचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया है।

इस होड़ में भाजपा आगे है और 25 मार्च तक उसने जितने उम्मीदवार घोषित किए हैं उनमें 17 फीसदी महिलाएं हैं। अब तक 66 महिला उम्मीदवारों के साथ पार्टी ने लैंगिक आधार पर अपना प्रदर्शन सुधारा है। साल 2014 में उसके 428 उम्मीदवारों में से 38 महिलाएं थीं, 2019 में यह आंकड़ा सुधरकर 436 में से 55 हुआ।

कांग्रेस उम्मीदवारों की सूची बताती है कि उसने अब तक 12 फीसदी महिलाओं को टिकट दिया है। सबसे अधिक चकित करने वाली सूची तृणमूल कांग्रेस की है। पार्टी ने पश्चिम बंगाल की 42 सीटों में से 12 पर महिलाओं को उम्मीदवार बनाया है।

बहरहाल, कुल मिलाकर भले ही आंकड़े हतोत्साहित करने वाले हों लेकिन ये 2019 के आम चुनाव की तुलना में बेहतर रहने वाले हैं जब कुल प्रत्याशियों में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 9 फीसदी थी। पिछली लोक सभा में 78 महिलाएं चुन कर आई थीं जो कुल सदस्यों का 14.3 फीसदी था। इसके बावजूद यह देश के आम चुनावों के इतिहास में महिलाओं की सबसे बड़ी संख्या थी।

चरणबद्ध तरीके से हो रहा स्थिर सुधार उत्साहित करने वाला है लेकिन ये आंकड़े बताते हैं कि महिला आरक्षण कानून लागू होने के बाद राजनीतिक दलों को तेजी से प्रयास करने होंगे। इंटर-पार्लियामेंटरी यूनियन (आईपीयू) के अनुसार फिलहाल भारत संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के 26.9 फीसदी के वैश्विक औसत से काफी पीछे है।

आईपीयू की संसद में महिलाओं की हिस्सेदारी की ताजा मासिक वैश्विक रैंकिंग में भारत 184 देशों में से 144वें स्थान पर है। कॉर्पोरेट बोर्ड में महिलाओं का प्रतिनिधित्व हालांकि कम है लेकिन इसमें सुधार हुआ है। 2019 के 15 फीसदी के बजाय अब 20 फीसदी महिलाएं कंपनियों के बोर्ड में हैं।

परंतु संसद तथा राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी दोगुनी करने के लिए सभी दलों को महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर खास ध्यान देना होगा। संसद ने कानून पारित कर दिया है और यह समय आने पर प्रभावी हो जाएगा लेकिन 2024 के लोक सभा चुनाव में इसे लेकर प्रतिबद्धता दर्शाई जा सकती थी।

First Published - March 27, 2024 | 9:25 PM IST

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