संपादकीय

Editorial: NSO के आंकड़ों के मायने

अनुमान से कम वृद्धि का अर्थ यह है कि सरकार को व्यय कटौती करनी होगी ताकि राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के 4.9 फीसदी के स्तर पर रखा जा सके।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- January 07, 2025 | 9:46 PM IST

चालू वित्त वर्ष (2024-25) में राष्ट्रीय आय के पहले अग्रिम अनुमान राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने मंगलवार को जारी कर दिए। इनके मुताबिक देश की अर्थव्यवस्था 2023-24 के 8.2 फीसदी की तुलना में इस वर्ष 6.4 फीसदी की दर से बढ़ेगी। NSO का अनुमान भारतीय रिजर्व बैंक के 6.6 फीसदी के अनुमान से थोड़ा कम है और यह कोविड के वर्ष यानी 2020-21 के बाद से अब तक का सबसे कमजोर आंकड़ा है।

नॉमिनल वृद्धि दर (मुद्रास्फीति को हटाकर) 9.7 फीसदी रहने की उम्मीद है जबकि गत वित्त वर्ष में वह 9.6 फीसदी थी। पहले अग्रिम अनुमानों की उत्सुकता से प्रतीक्षा थी क्योंकि दूसरी तिमाही में वृद्धि दर 5.4 फीसदी रही थी और इस आंकड़े से अधिकांश विश्लेषकों को झटका लगा था। इसके अलावा इसका इस्तेमाल वित्त मंत्रालय द्वारा बजट निर्माण के लिए भी किया जाएगा।

सरकार पहले अग्रिम अनुमानों से खुश नहीं होगी क्योंकि यह चालू वर्ष के साथ-साथ मध्यम अवधि के लिए भी चुनौतियां बढ़ाने वाले हैं। नॉमिनल स्तर पर अनुमान से कम वृद्धि का अर्थ यह है कि सरकार को व्यय कटौती करनी होगी ताकि राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के 4.9 फीसदी के स्तर पर रखा जा सके। आम बजट में अनुमान लगाया गया था कि चालू वर्ष में नॉमिनल जीडीपी 10.5 फीसदी की दर से बढ़ेगा। हालांकि वास्तविक जीडीपी में अंतर बहुत अधिक नहीं होगा लेकिन कुछ कवायद की आवश्यकता होगी। अगर राजस्व अनुमानों को भी संशोधित करके कम करना पड़ा तो मुश्किल बढ़ेगी।

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार अप्रैल-नवंबर की अवधि में कुल राजस्व संग्रह बजट अनुमानों का 59.8 फीसदी था जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में यह 65.3 फीसदी था। हालांकि बजट अनुमान की बात करें तो कुल व्यय भी पिछले साल की तुलना में कम है लेकिन अंतर काफी कम है। संभव है कि सरकार बजट में आवंटित पूंजीगत व्यय को पूरी तरह खर्च नहीं कर पाए। हालांकि इससे उसे राजकोषीय घाटे को थामे रखने में मदद मिलेगी लेकिन यह समग्र वृद्धि पर असर डालेगा।

बहरहाल चूंकि वित्त वर्ष में केवल चार महीने बाकी हैं तो सरकार के पास जरूरी बदलाव करने का समय है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस कवायद का संशोधित अनुमान में क्या असर नजर आता है। अगर पहले अग्रिम अनुमान के मुताबिक वर्ष की दूसरी छमाही में भी वृद्धि में सुधार नहीं होता है तो हालात और जटिल हो सकते हैं। अगले साल और मध्यम अवधि के नजरिये से आगामी बजट की चुनौती होगी अर्थव्यवस्था को टिकाऊ उच्च वृद्धि की राह पर ले जाना।

कई अर्थशास्त्री कह चुके हैं कि वर्तमान आर्थिक मंदी की अगर पिछले सालों से तुलना की जाए तो यह कोई विसंगति नहीं बल्कि महामारी के बाद की तेज वृद्धि के बाद सामान्य स्थिति में वापसी है। इसके अलावा यह भी याद करना होगा कि वृद्धि का बहुत हद तक समर्थन किया जा रहा है। इसके लिए सरकारी व्यय बढ़ाया जा रहा है जिसके चालू वर्ष में जीडीपी के 3.4 फीसदी रहने का अनुमान है। हालांकि राजकोषीय बंधनों के चलते इसमें इजाफे की भी अपनी सीमा है।

ऐसे में उच्च वृद्धि कि लिए जरूरी है कि अर्थव्यवस्था के अन्य कारक प्रभावी हों। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जुलाई 2024 के बजट में कहा था कि सरकार एक आर्थिक नीति ढांचा तैयार करेगी ताकि अगली पीढ़ी के सुधारों की राह आसान हो। सरकार यह काम जितनी जल्दी करे उतना अच्छा होगा। इसे आगामी बजट में पेश किया जाना चाहिए ताकि आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए इसे जल्द से जल्द क्रियान्वित किया जा सके। चूंकि निकट भविष्य में वैश्विक आर्थिक माहौल अनुकूल होता नहीं दिखता इसलिए घरेलू नीतियों की मदद से वृद्धि को गति प्रदान करनी होगी। ये नीतियां कारोबारी माहौल सुधारने और देश के कारोबारी क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा बढ़ाने से संबंधित हो सकती हैं।

First Published : January 7, 2025 | 9:32 PM IST