गत माह बिज़नेस स्टैंडर्ड के एक आयोजन में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने निजीकरण की नीति को लेकर केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराया। एक फरवरी को अंतरिम बजट पेश किए जाने के बाद इस बारे में कुछ चिंताएं उत्पन्न हुई थीं क्योंकि बजट में वर्ष के लिए विनिवेश लक्ष्य को स्पष्ट रूप से सामने नहीं रखा गया था।
ऐसे में मंत्री का वक्तव्य आश्वस्त करने वाला है। महामारी के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र की नई नीति आत्मनिर्भर भारत के पैकेज के हिस्से के रूप में घोषित की गई थी। यह नीति 2021-22 के केंद्रीय बजट का भी हिस्सा थी। इस नीति में सभी रणनीतिक और गैर रणनीतिक क्षेत्रों में विनिवेश की कल्पना की गई थी। सरकार सामरिक क्षेत्रों के केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों (सीपीएसई) में न्यूनतम उपस्थिति बनाए रखेगी। उदाहरण के लिए परमाणु ऊर्जा, बिजली, पेट्रोलियम और वित्तीय सेवाएं आदि।
बहरहाल इसके क्रियान्वयन के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है जिसे समझा जा सकता है क्योंकि विनिवेश और निजीकरण जटिल कवायद हो सकती हैं। कुछ सीपीएसई में समय लग सकता है और इसकी कई वजह हो सकती हैं, मिसाल के लिए कर्मचारियों के हितों की रक्षा करना।
संभावित जटिलता के बावजूद सरकार के लिए बेहतर यही होगा कि वह इस मार्ग पर सहजता से बढ़े। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि उनकी सरकार का अगला कार्यकाल बड़े निर्णयों वाला होगा और विभिन्न मंत्रालयों के बारे में कहा जा रहा है वे इस दिशा में खाका तैयार कर रहे हैं। अगली सरकार के स्वरूप से इतर कई मजबूत वजह हैं जिनकी वजह से विनिवेश में सुधार सरकार के एजेंडे में शीर्ष पर होना चाहिए।
सरकार ने महामारी के बाद आर्थिक रूप से उबरने के लिए पूंजीगत व्यय में इजाफा किया। इसने हाल के वर्षों में वृद्धि को गति दी है लेकिन सरकार के व्यय बढ़ाने के कारण राजकोषीय समेकन की प्रक्रिया धीमी हुई है। केंद्र सरकार का लक्ष्य राजकोषीय घाटे को 2025-26 तक सकल घरेलू उत्पाद के 4.5 फीसदी तक लाने का है। यदि विनिवेश फंड की राशि पूंजीगत व्यय का हिस्सा हो तो इससे राजकोषीय समेकन की प्रक्रिया को तेज करने में मदद मिलेगी।
अगर सरकार की ओर से वित्तीय मदद की मांग कम होगी तो निजी क्षेत्र के लिए फंड बचेंगे। निजी क्षेत्र के पूंजीगत व्यय में सुधार के संकेत मिल रहे हैं। बहरहाल, अगर सरकार बचत अधिशेष के अधिकांश हिस्से की खपत करती रही तो निजी पूंजीगत व्यय में सुधार खतरे में पड़ जाएगा। उस स्थिति में सरकार को पूंजी आयात पर विवश होना पड़ सकता है जो शायद इस मोड़ पर वांछित न हो। ऐसे में बड़े पैमाने पर विनिवेश न केवल सरकारी पूंजीगत व्यय को बरकरार रखने में मदद कर सकता है बल्कि यह निजी निवेश को बढ़ाने में भी मदद कर सकता है जो वृद्धि के लिए आवश्यक है।
इसके अलावा शेयर बाजारों में भी तेजी का दौर है और परिदृश्य सकारात्मक नजर आ रहा है। अगर मान लिया जाए कि भारत में एक स्थिर सरकार बनती है (जिसकी पूरी संभावना है) तो और सुधार संभव है। वैश्विक मुद्रास्फीति उच्चतम स्तर पर है और वित्तीय हालात तुलनात्मक रूप से सहज हुई है। निवेशकों का अनुमान है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व इस वर्ष के अंत में नीतिगत दरों में कटौती आरंभ करेगा।
वैश्विक बाजार में मुद्रा की कम लागत से भारत जैसे उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों में पूंजी प्रवाह बढ़ेगा जो शेयर बाजार के मूल्यांकन को बढ़ाएगा। शेयरों की बढ़ती मांग और अनुकूल मूल्यांकन का अर्थ यह है कि सरकार को अपनी परिसंपत्तियों का बेहतर मूल्य मिलेगा। उसे इस अवसर का लाभ लेना चाहिए।
ध्यान देने वाली बात है कि एसऐंडपी बीएसई पीएसयू सूचकांक के अनुसार सीपीएसई के शेयरों की कीमत बीते एक साल में दोगुनी हो चुकी है। मूल्य आय अनुपात के रूप में उनका मूल्यांकन अभी भी मानक एसऐंडपी बीएसई सेंसेक्स से काफी कम है। अगर अधिक विनिवेश हुआ तो संभव है कि निवेशकों की भागीदारी बढ़े, ऐसे में इन कंपनियों के लिए विस्तार के लिए पूंजी जुटाना आसान होगा। ऐसे में आक्रामक विनिवेश और निजीकरण वृद्धि के लिए कई तरह से मददगार होगा।