प्रतीकात्मक तस्वीर
अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के नेतृत्व में नियम-व्यवस्था आधारित लोकतंत्र और व्यापार पर पश्चिमी देशों के बीच आपसी सहमति की बुनियाद दरकने का एक और उदाहरण जी-7 देशों की बैठक में दिखा। कनाडा के प्रांत अल्बर्टा के कनानास्किस में प्रधानमंत्री मार्क कार्नी की मेजबानी में आयोजित जी-7 देशों की 51वीं बैठक में यह बिखराव साफ नजर आया। दो दिनों तक चली इस बैठक के कार्यक्रमों और जिन विषयों पर चर्चा होनी थी उनमें वृद्धि एवं साझा आर्थिक संपन्नता के लिए आवश्यक रकम पर आपसी साझेदारी मजबूत करना, वृद्धि के लिए एआई से जुड़ी पहल एवं महत्त्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति व्यवस्था तैयार करना और प्रवासियों की अवैध घुसपैठ आदि शामिल थे। इसके साथ ही ईरान और यूक्रेन संकट पर भी चर्चा होनी थी।
मगर इन विषयों पर कोई संयुक्त बयान जारी नहीं होने से जी-7 देशों के बीच आपसी मतभेद उजागर हो गए। हालांकि, अलग-अलग विषयों पर कुछ संयुक्त बयान जरूर आए। ईरान और इजरायल के बीच चल रहे युद्ध के साए में हुई इस बैठक के पहले ही दिन ट्रंप बैठक बीच में छोड़कर वाशिंगटन लौट गए। ट्रंप के इस निर्णय से जी-7 शिखर सम्मेलन गतिरोध का शिकार हो गया।
ईरान व इजरायल के बीच जारी घमासान के दौरान इस बैठक में ‘गाजा में संघर्ष विराम सहित पश्चिम एशिया में तनाव कम करने’ पर एक संक्षिप्त बयान अवश्य आया मगर इसमें ईरान और इजरायल के बीच संघर्ष विराम का जिक्र नहीं था। अमेरिका की आपत्ति के बाद यूक्रेन के समर्थन में संयुक्त बयान भी हटा दिया गया। हालांकि, ट्रंप की आपत्ति के बाद जी-7 की 51वीं बैठक की अध्यक्षता कर रहे कनाडा की तरफ से जारी सार वक्तव्य में एक छोटा हिस्सा शामिल किया गया जिसमें ‘आर्थिक प्रतिबंध सहित रूस पर अधिकतम दबाव बनाने के लिए सभी विकल्प तलाशने’ की बात कही गई। ट्रंप इस बैठक में अन्य सदस्य देशों के साथ व्यापार सौदा करना चाहते थे मगर कनाडा, जापान और यूरोपीय संघ किसी को भी अपनी बात रखने का मौका नहीं मिला।
कनाडा के प्रधानमंत्री के निमंत्रण पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहुंचने से सम्मेलन में कुछ जान आई और कुछ सकारात्मक परिणाम भी सामने आए। बैठक में भारत-कनाडा द्विपक्षीय रिश्तों में आई खटास कम हुई। जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल में दोनों देशों के संबंध बिगड़ गए थे लेकिन जी-7 सम्मेलन के दौरान मोदी और कार्नी की बैठक के द्विपक्षीय ताल्लुकात सुधरने की पहली संभावना नजर आई।
इस दिशा में ‘सोच-विचार कर उठाए गए पहले कदम’ के रूप में दोनों नेता अपने-अपने उच्चायोग दोबारा भेजने पर सहमत हो गए। दोनों प्रधानमंत्री व्यापार, दोनों देशों के बीच संबंध एवं संपर्क से जुड़े कई क्षेत्रों में वरिष्ठ एवं कार्य-स्तरीय ढांचा एवं चर्चा शुरू करने पर सहमत हुए। आने वाले समय में और भी कूटनीतिक कदम उठाए जाने की संभावना है। दोनों नेताओं की बैठक पर कनाडा की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि ‘पार-देशीय अपराध एवं दमन, सुरक्षा और नियम आधारित व्यवस्था’ पर भी चर्चा हुई।
भारत और कनाडा के बीच गहरे सांस्कृतिक संबंध रहे हैं इसलिए निश्चित रूप ये सही सकारात्मक संकेत हैं। कनाडा की कुल आबादी में 5 प्रतिशत हिस्सा भारतीय मूल के लोगों की है। किंतु, कुछ प्रमुख प्रश्न अब भी अनुत्तरित हैं। सबसे पहले,ओटावा के इस आरोप का कोई निष्कर्ष नहीं निकला है कि कनाडा की धरती पर एक सिख पृथकतावादी नेता की हत्या में भारत सरकार के एजेंटों का हाथ रहा है। साल 2023 में दोनों देशों के बीच संबंध खराब होने की यह सबसे बड़ी वजह थी। कनाडा में ताकतवर सिख कनाडा गुट कार्नी पर दबाव बना सकते हैं। मोदी को आमंत्रित करने के कार्नी के निर्णय के खिलाफ सिख प्रदर्शनकारियों ने कैलगरी में एक विरोध रैली का आयोजन किया। कैलगरी जी-7 के आयोजन स्थल से सबसे नजदीक शहर है।
इस बीच, प्रधानमंत्री मोदी और ट्रंप के बीच फोन पर हुई 35 मिनट की बातचीत से कुछ प्रगति हुई है। इस साल नई दिल्ली में ‘क्वाड’ के अगले शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए मोदी का निमंत्रण राष्ट्रपति ट्रंप ने स्वीकार कर लिया है। पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन के कार्यकाल में ‘क्वाड’ पर कोई खास प्रगति नहीं हुई थी इसलिए इसे एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जाना चाहिए। मगर ट्रंप के नेतृत्व में ‘क्वाड समूह कितनी प्रगति करेगा यह फिलहाल एक अनुत्तरित प्रश्न है।