संपादकीय

Editorial: Dollar vs renminbi: चीनी मुद्रा बुनियादी चुनौतियों का सामना कर रही है

भले ही अमेरिका और डॉलर को लेकर चिंताएं हों, लेकिन रेनमिनबी उस खाली जगह को भरने की स्थिति में नहीं है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- June 19, 2025 | 10:56 PM IST

पीपल्स बैंक ऑफ चाइना के गवर्नर पान गोंगशेंग ने एक बहु-ध्रुवीय अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली तैयार करने की जोरदार वकालत की है। उन्होंने बुधवार को कहा कि किसी एक मुद्रा पर अत्यधिक निर्भरता दुनिया के लिए ठीक नहीं है। गोंगशेंग ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि दुनिया को डॉलर आधारित वैश्विक वित्तीय प्रणाली का विकल्प तैयार करना चाहिए। चीन अपनी मुद्रा रेनमिनबी (आरएमबी) को लगातार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के तौर पर स्थापित करने का प्रयास कर रहा है।

छह विदेशी बैंकों ने बुधवार को कहा कि वे स्विफ्ट भुगतान प्रणाली के विकल्प के रूप में चीन के क्रॉस-बॉर्डर इंटरबैंक पेमेंट सिस्टम का इस्तेमाल करेंगे। यह तर्क दमदार है कि विश्व को सीमा पार भुगतान के लिए केवल एक मुद्रा या भुगतान प्रणाली पर आश्रित नहीं रहना चाहिए। अमेरिकी की वर्तमान राजनीति एवं उसकी नीतिगत स्थिति को देखते हुए ऐसे विचार लोगों का ध्यान आकर्षित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए यूरोपीय केंद्रीय बैंक की अध्यक्ष क्रिस्टीन लेगार्ड ने हाल में कहा कि पूरे विश्वास के साथ यह नहीं कहा जा सकता कि डॉलर का दबदबा आगे भी कायम रहेगा।

डॉनल्ड ट्रंप कई रूपों में अमेरिका को एक अनिश्चित दिशा में ले जा रहे हैं जिससे यह कहना मुश्किल है कि आगे हालात कैसे रहेंगे। उदाहरण के लिए ट्रंप ने दुनिया के अन्य देशों के साथ व्यापार का तौर-तरीका बदलने की ठान ली है। ट्रंप की नजर में किसी भी देश के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा स्वीकार्य नहीं है और इस स्थिति को बदलने का शुल्क सबसे सटीक हथियार है। उन्होंने दुनिया के देशों के लिए अमेरिका के साथ व्यापार समझौते करने के लिए 9 जुलाई की समय सीमा तय कर रखी है, जो अब नजदीक आ रही है। किंतु, अब तक यह स्पष्ट नहीं है कि कितने व्यापार साझेदार देशों के साथ अमेरिका समझौता करेगा। हालांकि, यह तो साफ है कि शुल्क काफी अधिक होंगे और अमेरिका नियम-आधारित व्यापार व्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचा चुका होगा। यह अनिश्चितता वास्तविक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रही है।  शुल्कों से जुड़ी अनिश्चितता के कारण फेडरल रिजर्व ने बुधवार को नीतिगत दरों में बदलाव नहीं करने का निर्णय लिया।

फेडरल रिजर्व के नए आर्थिक अनुमानों में कहा गया है कि वर्ष 2025 में मुद्रास्फीति 3 फीसदी के आसपास रह सकती है। मार्च में व्यक्त अनुमान में इसके 2.7 फीसदी रहने की बात कही गई थी। फेडरल रिजर्व के अनुसार चालू वर्ष में अमेरिका का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 1.4 फीसदी की दर से बढ़ेगा। मार्च में जारी अनुमानों में यह दर 1.7 फीसदी रहने का जिक्र था। कमजोर होती आर्थिक वृद्धि दर और बढ़ती मुद्रास्फीति की आशंका ने अमेरिका के केंद्रीय बैंक को पशोपेश में डाल दिया है।

ट्रंप प्रशासन का व्यापार पर रुख ही इसका एकमात्र कारण नहीं है। संस्थानों का अनादर भी काफी नुकसान पहुंचा रहा है। उदाहरण के लिए राष्ट्रपति ट्रंप ने नीतिगत दर पर निर्णय से पहले फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल को ‘बेवकूफ व्यक्ति’ करार दिया। केंद्रीय बैंक पर ट्रंप प्रशासन का दबाव बाजार को रास नहीं आया। इतना ही नहीं, अमेरिका की राजकोषीय सेहत भी बिगड़ गई है और आने वाले वर्षों पर उस पर भारी कर्ज चढ़ने की भी आशंका जताई गई है।

अमेरिका की वर्तमान स्थिति उत्साह एवं विश्वास को बढ़ावा नहीं दे रही है। भविष्य में व्यापार एवं पूंजी प्रवाह पर भी इसका असर दिखेगा। किंतु, इन बातों से चीन की मुद्रा रेनमिनबी के अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली पर छाने की संभावना स्वतः मजबूत नहीं हो पाएगी। यह भी सच है कि चीन एक बड़ा व्यापारिक देश और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, इसलिए कुछ द्विपक्षीय एवं क्षेत्रीय व्यापार रेनमिनबी आधारित प्रणालियों में हो सकते हैं। हालांकि, रेनमिनबी के अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बनने की राह में कम से कम दो बाधाएं हैं।

 रेनमिनबी का मूल्य निर्धारण भी पिछले कई दशकों से अमेरिकी डॉलर से होता रहा है, जिसमें कड़े पूंजी नियंत्रण की अहम भूमिका रही है। ऐसा नहीं लगता कि चीन निकट भविष्य में पूंजी नियंत्रण से पीछे हट जाएगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी मुद्रा के व्यापक इस्तेमाल होने के लिए जरूरी है कि उसका बेरोक-टोक कारोबार हो। दूसरा कारण यह है कि चीन अब भी मजबूत चालू खाता अधिशेष की स्थिति में है जिसका मतलब है दुनिया में कारोबार के लिए पर्याप्त रेनमिनबी उपलब्ध नहीं हो पाएगी। इसका इस्तेमाल ज्यादातर चीन की वस्तुएं खरीदने के लिए होता है। लिहाजा, अमेरिका और अमेरिकी डॉलर के भविष्य को लेकर चिंता जरूर जताई जा रही है मगर रेनमिनबी इस कमान को संभालने की स्थिति में नहीं है। आने वाले वर्षों में वैश्विक मौद्रिक प्रणाली अधिक बिखर सकती है जिसका नतीजा ऊंची लागत और बढ़ी अनिश्चितता के रूप में दिखेगा। 

First Published : June 19, 2025 | 10:32 PM IST