डॉनल्ड ट्रंप को अमेरिका का राष्ट्रपति बने दो महीने से ज्यादा गुजर चुके हैं मगर अभी तक खुद अमेरिकी जनता और तमाम देश नहीं समझ पाए हैं कि ट्रंप की नीतियों के नतीजे क्या होंगे। अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार जो आर्थिक अनुमान जारी किए हैं उन पर भी ट्रंप की नीतियों से जुड़ी अनिश्चितता एवं आशंका के प्रभाव स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (एफओएमसी) के सदस्यों का अनुमान है कि पिछले अनुमानों की तुलना में मुद्रास्फीति बढ़ सकती है, आर्थिक वृद्धि नरम पड़ सकती है और बेरोजगारी भी सिरदर्द बढ़ा सकती है। हालांकि इन आंकड़ों में बदलाव ज्यादा नहीं है मगर उनकी दिशा घनघोर अनिश्चितता की तरफ इशारा कर रही है। वित्तीय बाजारों के लिहाज से एक मात्र अच्छी बात यह है कि फेडरल ओपन मार्केट कमेटी इस साल ब्याज दर में 50 आधार अंक की एक और कटौती के लिए तैयार है।
बहरहाल फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने नीतिगत बैठक के बाद संवाददाता सम्मेलन में कहा कि शुल्कों के कारण मुद्रास्फीति को मध्यम अवधि में 2 प्रतिशत पर लाने की कवायद में देर हो सकती है। उन्होंने माना कि अनिश्चितता काफी अधिक है। फेडरल रिजर्व ने नीतिगत दर पर अनुमान नहीं बदला है मगर यह देखना चाहता है कि ट्रंप की नीतियां वास्तविक आर्थिक परिणामों पर किस तरह असर डालती हैं। अनिश्चितता का सबसे बड़ा कारण व्यापार दिख रहा है। अमेरिका ने अभी तक चीन और कुछ देशों पर ही शुल्क लगाए हैं किंतु वह 2 अप्रैल से सभी देशों पर जवाबी शुल्क लगाने की तैयारी कर रहा है, जिससे वैश्विक व्यापार में भारी उथल-पुथल मच सकती है।
व्यापार के मोर्चे पर अनिश्चितता बढ़ी तो फेड के लिए नीतिगत विकल्प चुनना मुश्किल हो जाएगा। परंपरागत समझ तो यही कहती है कि मौद्रिक नीति को एकाध बार आने वाले ये झटके गंभीरता से नहीं लेने चाहिए। किंतु इस बार परिस्थितियां शायद उतनी सहज नहीं हों। अमेरिका में मुद्रास्फीति 2 प्रतिशत के लक्ष्य से अधिक है और कीमतें बढ़ने पर अनुमान ज्यादा बिगड़ सकते हैं। याद रहे कि कोविड महामारी के बाद फेड मुद्रास्फीति का अनुमान लगाने में गच्चा खा गया था, जिसे आगे उसकी किसी भी टिप्पणी के समय जरूर ध्यान रखा जाएगा। शुल्कों से मुद्रास्फीति एवं इससे जुड़े अनुमान प्रभावित हो सकते हैं और उससे जुड़ी अनिश्चितताएं कारोबारी हौसला बिगाड़ रही हैं। कमजोर आर्थिक वृद्धि एवं ऊंची मुद्रास्फीति के फेड के अनुमान से यह बात साफ भी हो जाती है।
ट्रंप की उथलपुथल मचाने वाली नीति शुल्कों तक ही नहीं रुकी है। आव्रजन पर ट्रंप प्रशासन की नीति के अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए दीर्घकालिक परिणाम हो सकते हैं। ट्रंप की नीतियों पर बाजार में दिखा शुरुआती उत्साह अब कमजोर पड़ने लगा है और शेयर बाजार में गिरावट से यह साबित भी होता है। कई लोगों को शुरू में लगा था कि ट्रंप की नीतियों से निकट भविष्य में आर्थिक मजबूती आएगी। मगर ऊंचे स्तरों पर पहुंचकर एसऐंडपी 8 प्रतिशत फिसल चुका है। मध्य जनवरी से डॉलर सूचकांक भी 5 प्रतिशत से अधिक गिर गया है। इस गिरावट से दूसरे बाजारों को फायदा हुआ है मसलन भारतीय मानक सूचकांक पिछले हफ्ते 4 प्रतिशत से ज्यादा उछल गए।
फिर भी भारत में निवेशकों एवं नीति निर्धारकों को निकट अवधि में अनिश्चितता के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि अमेरिका के जवाबी शुल्क किन रूपों में सामने आएंगे। भारत को स्थिति का अंदाजा लगाने के लिए अमेरिका के अधिकारियों के साथ निरंतर संपर्क में रहना होगा। इस सप्ताह अमेरिका से अधिकारियों का एक दल भारत आ रहा है, जो प्रस्तावित व्यापार समझौते पर भी चर्चा करेगा। इस मोर्चे पर होने वाली प्रगति पर सबकी नजरें टिकी होंगी। ट्रंप का कार्यकाल दुनिया में उथल-पुथल मचाता रहेगा किंतु व्यापार संबंधी अनिश्चितताओं के समाधान से स्थिति कुछ हद तक अवश्य स्पष्ट होने की उम्मीद तो की जा सकती है।