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Editorial: फॉक्सकॉन-वेदांत डील का अंत, नई शुरुआत की जरूरत

वेदांत और फॉक्सकॉन ने इस क्षेत्र को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है और दोनों नई शुरुआत करना चाहती हैं।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- July 11, 2023 | 11:38 PM IST

फॉक्सकॉन-वेदांत संयुक्त उपक्रम (Foxconn-Vedanta Joint Venture) का खत्म होना देश की सेमीकंडक्टर विनिर्माण का गढ़ बनने की महत्त्वाकांक्षा के लिए बड़ा झटका है।

गुजरात में बनने वाले 19.5 अरब डॉलर के इस संयंत्र में 28 नैनोमीटर की चिप बनने की उम्मीद थी। यह देश में सेमीकंडक्टर निर्माण से जुड़े शोध एवं विकास को प्रोत्साहित करने की दृ​ष्टि से एक अहम परियोजना थी।

वेदांत और फॉक्सकॉन ने इस क्षेत्र को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है और दोनों नई शुरुआत करना चाहती हैं। अभी यह पता नहीं है कि आ​खिर यह संयुक्त उपक्रम क्यों भंग किया गया।

माना जा रहा है कि यूरोपीय चिप निर्माता एसटीमाइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स को शामिल करना विवाद का विषय बना। इसके अलावा वित्तीय कठिनाइयां तो थी हीं। वेदांत-फॉक्सकॉन एसटीएम की तकनीक का लाइसेंस हासिल करने का प्रयास कर रही थी जबकि सरकार की इच्छा थी कि एसटीएम से वित्तीय प्रतिबद्धता भी हासिल की जाए।

एसटीएम के विपरीत वेदांत की इस क्षेत्र में कोई विशेषज्ञता नहीं है। माना जा रहा था कि भारत में काम करने के मामले में उसकी लंबी विशेषज्ञता इस संयुक्त उपक्रम को अफसरशाही की जटिलताओं और कानूनी दांवपेचों से निकलने में मदद करेगी।

फॉक्सकॉन विनिर्माण क्षेत्र में सिद्धहस्त है यानी उसके पास चिप असेंबल करने की ढेर सारी विशेषज्ञता है। परंतु कंपनी अब सेमीकंडक्टर विनिर्माण में प्रवेश कर रही थी। इस क्षेत्र के लिए भारत की 10 अरब डॉलर की स​ब्सिडी योजना के तहत दो अन्य सेमीकंडक्टर निर्माण संबंधी प्रस्ताव भी संकट के ​शिकार हैं।

अबू धाबी की नेक्स्ट ऑर्बिट समर्थित आईएसएमसी और इजरायल की टावर सेमीकंडक्टर ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह इंटेल और टावर के लंबित विलय के कारण प्रस्तावित विचार को स्थगित रखे।

समूह ने कहा था कि वह कर्नाटक में 3 अरब डॉलर का संयंत्र स्थापित करेगा लेकिन इसके लिए विलय की प्रतीक्षा की जाएगी। उक्त विलय एक वर्ष से अ​धिक समय से लंबित है। दूसरा प्रस्ताव सिंगापुर की आईजीएसएस वेंचर्स को अभी मंजूरी की प्रतीक्षा है।

इन विपरीत घटनाक्रम का अर्थ यह है कि भारत जहां सेमीकंडक्टर डिजाइन का स्वीकृत केंद्र है, वहीं प्रोत्साहन के जरिये विनिर्माण केंद्र बनने की इसकी को​शिशों के समक्ष कई अवरोध हैं। नीतिगत स्तर पर विनिर्माण क्षमता का विकास करने के लिए काफी रणनीतिक समझ चाहिए। 21वीं सदी में बनने वाली लगभग हर चीज में चिप का इस्तेमाल होता है।

महामारी के दौरान इसकी आपूर्ति में भारी बाधा थी क्योंकि चीन में इसका उत्पादन प्रभावित था। यूक्रेन युद्ध के कारण इसकी कमी का एक और चक्र शुरू हुआ क्योंकि यूक्रेन नियॉन का एक अहम आपूर्तिकर्ता है। नियॉन चिप का जरूरी कच्चा माल है। इसके परिणामस्वरूप कई अन्य देशों के साथ भारत भी आपूर्ति श्रृंखला में विविधता लाना चाहता है।

यूरोपीय संघ और अमेरिका द्वारा चीन को जरूरी विनिर्माण उपकरण बेचने से इनकार करने और चीन द्वारा प्रतिरोधस्वरूप गैलियम और जर्मेनियम (दोनों अहम कच्चे माल) का निर्यात सीमित करने के बाद एक बार फिर चिप की उपलब्धता में कमी देखने को मिल सकती है।

बहरहाल जहां विनिर्माण इकाई तैयार करना समझदारी भरा है, वहीं यह एक चुनौती भी पेश करता है। चिप निर्माताओं को बड़े पैमाने पर लागत कम रखने की जरूरत है। इसका अर्थ इस क्षेत्र में 20 अरब डॉलर के आसपास का निवेश करना होगा।

विनिर्माण प्रक्रिया में बहुत बड़ी मात्रा में शुद्ध जल की आवश्यकता होगी। ऐसे में इसे सीमित स्थानों पर ही स्थापित किया जा सकता है वह भी महंगे जल शोधन संयंत्रों के साथ। उच्चस्तरीय चिप निर्माण के लिए बेहतर तकनीक की आवश्यकता होती है जो बहुत कम कंपनियों के पास है। चूंकि ऐसी चिप का दोहरा इस्तेमाल होता है इसलिए अमेरिका और नीदरलैंड के तर्ज पर इनके निर्यात पर प्रतिबंध भी लगाया जा सकता है। इसके लिए अच्छी कूटनीति की आवश्यकता है।

भारत इस क्षेत्र में पकड़ बनाने की को​शिश करके अच्छा करेगा क्योंकि 2030 तक हमारी घरेलू मांग ही 60 अरब डॉलर का स्तर पार कर सकती है। परंतु उस समय सीमा को नए सिरे से तय करना होगा और अपनी नीति की समीक्षा करनी होगी ताकि इस झटके के बाद वह नए प्रस्ताव जुटा सके।

First Published : July 11, 2023 | 11:38 PM IST