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Editorial: प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना और नई चुनौतियां

PM Suryodaya Yojana: भारत का लक्ष्य अपनी स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता का 50 फीसदी अक्षय बिजली उत्पादन स्रोतों से हासिल करने का है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- January 24, 2024 | 9:14 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत 22 जनवरी को प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना की शुरुआत की घोषणा की। इस योजना का लक्ष्य एक करोड़ घरों की छतों (रूफटॉप) पर सोलर पैनल लगाने की है। इस नीति की विस्तृत जानकारी अभी सामने आनी है लेकिन इसका व्यापक लक्ष्य एकदम स्पष्ट है: गरीब और मध्य वर्ग के परिवारों को स्वच्छ और सस्ती बिजली मुहैया कराना।

सबसे बढ़कर यह कि छतों पर लगने वाले सौर ऊर्जा उपकरण सबको बिजली उपलब्ध कराने का लक्ष्य हासिल करने का एक अहम जरिया है। ऐसा इसलिए कि पारंपरिक बिजली उत्पादन मॉडल की तरह इसमें अंतिम छोर तक अधोसंरचना की उतनी जरूरत नहीं होती। यह अक्षय ऊर्जा को लेकर देश की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता के निबाह की दृष्टि से भी उपयोगी कदम होगा।

भारत का लक्ष्य अपनी स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता का 50 फीसदी अक्षय बिजली उत्पादन स्रोतों से हासिल करने का है। परंतु इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए नई योजना को उन चुनौतियों से भी पार पाना होगा जो छतों पर सौर ऊर्जा उपकरण लगाने के क्षेत्र में आरंभ से ही देखने को मिल रही हैं।

सूर्योदय योजना 2010 से अब तक घोषित चौथी ऐसी योजना है जो छतों पर सौर ऊर्जा पैनल लगाने से संबंधित है। 2010 में सबसे पहले जवाहरलाल नेहरू नैशनल सोलर मिशन की स्थापना की गई थी। वर्ष 2015 में एक अन्य योजना की घोषणा की गई ताकि आम परिवारों तथा बिजली वितरण कंपनियों को ऐसी परियोजनाओं को लेकर प्रोत्साहित किया जा सके।

सरकार ने 2017 में सोलर ट्रांसफिगरेशन ऑफ इंडिया (सृष्टि) योजना की शुरुआत की। इसका इरादा वित्तीय प्रोत्साहन की मदद से रूफटॉप सोलर योजनाओं के लिए वितरण कंपनियों को नोडल एजेंसी के रूप में मजबूती प्रदान करना था।

बहरहाल, 13 सालों के इस नीतिगत समर्थन का परिणाम यह हुआ है कि ग्रिड से संबद्ध रूफटॉप सौर ऊर्जा की स्थापित क्षमता 40 गीगावॉट के लक्ष्य के बजाय केवल 11 गीगावॉट तक पहुंची है। यह लक्ष्य भी 2022 से आगे बढ़ाकर 2026 कर दिया गया है। अब तक 70,000 से 80,000 घर सौर ऊर्जा पैनलों की मदद से रोशन हैं।

रूफटॉप सोलर सिस्टम को बड़े पैमाने पर अपनाए जाने की राह में तीन बड़ी बाधाएं हैं: जागरूकता की कमी, ऊंची लागत और वित्तीय विकल्पों की कम उपलब्धता तथा वितरण कंपनियों की ऐसी परियोजनाओं को क्रियान्वित करने के प्रति अनिच्छा। ऐेसे में सूर्योदय योजना की सफलता के लिए लोगों को इसके लाभ के बारे में यकीन दिलाना होगा। परंतु ऐसा करने के लिए पहले कई सफल योजनाओं का उदाहरण पेश करना होगा।

मिसाल के तौर पर लागत की बात करें तो छत पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने की लागत 2.2 लाख रुपये से 3.5 लाख रुपये तक आ सकती है। केवल अमीर और उच्च मध्य वर्ग के लोग ही कुछ हद तक वित्तीय विकल्पों तक पहुंच बना सकते हैं क्योंकि अधिकांश भारतीय परिवार कम खपत वाले दायरे में आते हैं। ऐसे लोगों के लिए रूफटॉप सोलर सिस्टम तभी कारगर साबित हो सकता है जब उन्हें भारी भरकम सब्सिडी प्रदान की जाए।

बिजली वितरण कंपनियों की अनिच्छा में भी इस वित्त की अहम भूमिका है। अधिकांश लोगों को डर है कि नेट मीटरिंग सिस्टम के कारण उच्च मूल्य ग्राहकों से राजस्व को क्षति होगी और उनकी पहले से खस्ता वित्तीय स्थिति पर और बुरा असर होगा। नेट मीटरिंग बिलिंग की एक प्रणाली है जो सौर ऊर्जा प्रणालियों के मालिकों को ग्रिड में बिजली मुहैया कराने के बदले क्रेडिट प्रदान करती है।

सूर्योदय योजना पहली ऐसी योजना है जिसमें उत्पादित बिजली के बजाय परिवारों की संख्या का लक्ष्य तय किया गया है। कुल आंकड़ा महत्त्वाकांक्षी प्रतीत होता है लेकिन यह बहुत अधिक नहीं है क्योंकि इस क्षेत्र में बहुत अधिक संभावनाएं हैं।

स्वतंत्र थिंक टैंक काउंसिल ऑन एनर्जी, एन्वॉयरनमेंट ऐंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के 25 करोड़ घरों में यह क्षमता है कि वे अपनी छतों पर 637 गीगावॉट सौर ऊर्जा स्थापित कर सकें।

निश्चित तौर पर अब सरकार के पास शौचालय, पेयजल और घरेलू गैस के रूप में घरेलू बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के क्रियान्वयन का अनुभव है लेकिन रूफटॉप सौर ऊर्जा को कमजोर आर्थिक स्थिति वाले परिवारों तक लाने के लिए नए तरह की चुनौतियों को हल करना होगा।

First Published : January 24, 2024 | 9:14 PM IST