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Editorial: फेड का संतुलनकारी कदम

महामारी के दौरान मुद्रास्फीति में इजाफे को गलत समझने के बाद वह यह सुनिश्चित करना चाहता है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था को कोई झटका न लगे।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- September 19, 2024 | 10:33 PM IST

अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व (फेड) एक बार फिर गलत साबित होना नहीं चाहता। महामारी के दौरान मुद्रास्फीति में इजाफे को गलत समझने के बाद वह यह सुनिश्चित करना चाहता है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था को कोई झटका न लगे। बेरोजगारी की दर अगस्त में 4.2 फीसदी बढ़ी जबकि एक वर्ष पहले इसमें 3.8 फीसदी का इजाफा हुआ था।

इसके परिणामस्वरूप फेड की फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (एफओएमसी) ने बुधवार को यह निर्णय लिया कि वह फेडरल फंड के लक्षित दायरे को 50 आधार अंक कम करके 4.75 से 5 फीसदी के दायरे में रखेगी। अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने नीतिगत ब्याज दरों को 2022 के आरंभ से अब तक 11 बार बढ़ाया और वह दशकों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई।

ऐसा मुद्रास्फीति की दर को नियंत्रित करने के लिए किया गया जो जून 2022 में 9.1 फीसदी के उच्चतम स्तर पर जा पहुंची। हालांकि बाजार ने दरों में 25 से 50 आधार अंकों की कमी का अनुमान किया था और एसऐंडपी 500 के रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने के बाद दिन के अंत में अमेरिकी शेयर बाजार गिरावट पर बंद हुए। गुरुवार को भारतीय शेयर बाजार में ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं हुआ।

यद्यपि फेड ने 50 आधार अंकों की कटौती के साथ सहजता की शुरुआत की लेकिन इसके भविष्य के कदम और दरों में कमी की गुंजाइश अभी भी बहसतलब है। फेड के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने नीतिगत घोषणा के बाद मीडिया से बातचीत में कहा कि बाजार को इसकी व्याख्या एक नई तरह की गति के रूप में नहीं करनी चाहिए। फेड के अधिकारियों के अनुमान बताते हैं कि इस वर्ष दरों में एक और 50 आधार अंकों की कमी हो सकती है जबकि 2025 में एक प्रतिशत की कमी की जा सकती है।

हालांकि अनुमान हमेशा संशोधन का विषय होते हैं और यह देखना होगा कि एफओएमसी कैसे आगे बढ़ती है। 2.5 फीसदी की मुद्रास्फीति की दर जहां फेड के मध्यम अवधि के दो फीसदी के लक्ष्य के अनुरूप है वहीं नीतिगत ब्याज दरों में भारी कटौती करने यह जोखिम हो सकता है कि कहीं मुद्रास्फीति लक्ष्य से ऊपर ही न बनी रहे। फेड कभी नहीं चाहेगा कि ऐसा हो।

इस संदर्भ में यह ध्यान देना महत्त्वपूर्ण है कि सहजता का यह चक्र आम चक्रों से अलग है। चूंकि अर्थव्यवस्था किसी तरह की मुश्किल में नहीं है। कम ब्याज दर के कारण व्यय में अपेक्षाकृत तेजी से इजाफा हो सकता है। इसके अलावा पॉवेल ने दरों से जुड़े निर्णय कों नीतिगत दरों को निरपेक्ष के करीब ले जाने का एक व्यवस्थित कदम बताया। निरपेक्ष दर ऐसी नीतिगत दर है जो न तो प्रतिबंधात्मक हो और न ही समायोजन वाली। महामारी के पहले माना जा रहा था कि 2.5 फीसदी की दर निरपेक्ष दर होगी लेकिन उसके बाद से इसमें इजाफा हुआ है और यह बढ़ोतरी अमेरिका के बजट घाटे में ढांचागत इजाफा होने की वजह से हुआ। एक अनुमान के मुताबिक यह 3.5 से 4.8 फीसदी के बीच है। इससे दरों में कमी की गुंजाइश सीमित हो जाती है।

हालांकि बैंक ऑफ इंगलैंड और यूरोपियन सेंट्रल बैंक ने भी हाल ही में नीतिगत दरों में कमी की है। वैश्विक वित्तीय बाजार और पूंजी प्रवाह फेड के कदमों से अधिक प्रभावित होते हैं। वित्तीय हालात को सहज बनाने के लिए कम नीतिगत दर की अपेक्षा होगी। पिछले कुछ समय से ऐसा हो भी रहा है। बहरहाल सहजता का यह चक्र अलग होगा क्योंकि नीतिगत दर शून्य के स्तर से काफी अधिक स्तर पर रह सकती है जबकि वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से वह काफी समय तक शून्य के इर्दगिर्द ही रही है।

वैश्विक पूंजी प्रवाह भी तुलनात्मक रूप से कम रह सकता है क्योंकि अमेरिकी सरकार को घाटे की भरपाई की जरूरत है। भारत फेड के सख्ती के तूफान से अपेक्षाकृत सहजता से निपटने में कामयाब रहा है क्योंकि हमारे यहां विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति मजबूत थी और भारतीय रिजर्व बैंक ने मुद्रा कुशल प्रबंधन किया।

फेड के सहजता के चक्र के बीच भारतीय रिजर्व बैंक को यह सुनिश्चित करना होगा पूंजी का प्रवाह रुपये पर अनावश्यक रूप से ऊपरी दबाव न बनाए। यदि ऐसा हुआ तो भारत के कारोबारी क्षेत्रों की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता पर असर होगा। नीतिगत संदर्भ में रिजर्व बैंक से अपेक्षा होगी कि वह मुद्रास्फीति की दर को टिकाऊ स्तर पर चार फीसदी की मुद्रास्फीति की दर से सुसंगत बनाए।

First Published : September 19, 2024 | 10:33 PM IST