गाजा पट्टी से संचालित फिलिस्तीनी उग्रवादी समूह हमास ने दक्षिणी इजरायल में असाधारण स्तर पर हमला किया जिसने पूरी दुनिया को हिला दिया। अभी भी यह पता नहीं है कि हमले में कितने इजरायली (तथा अन्य देशों के नागरिक) मारे गए और कितने बंधक बनाए गए हैं। मरने वालों की तादाद सैकड़ों में है। एक छोटे देश के लिए यह तादाद बहुत बड़ी है।
कुछ लोगों का कहना है कि होलोकॉस्ट (यहूदी नरसंहार) के बाद पहली बार एक दिन में इतने अधिक लोग मारे गए हैं। इजरायली प्रशासन के बारे में पारंपरिक रूप से यह माना जाता रहा है कि वह फिलिस्तीनी आतंकवादियों द्वारा किए गए हमलों की प्रतिक्रिया बहुत उग्र तरीके से देता है। ऐसे में हमास के हमले के बाद यह आशंका बलवती है कि भीड़भाड़ वाली गाजा पट्टी की घेराबंदी और नाकाबंदी होगी और वहां के लोगों को भीषण मानवीय आपदा का सामना करना पड़ेगा।
आम नागरिकों की हत्या और अपहरण की प्राथमिक जिम्मेदारी हमलावरों की होगी। अन्य संगठनों की तुलना में हमास ने बहुत पहले फिलिस्तीन की आजादी के संघर्ष के लिए अतिवादी और उग्रवादी रुख चुन लिया था। एक खुली जंग में भी इसे एक हिंसक और गलत युद्ध अपराध माना जाता। परंतु इसके दोषी चौतरफा हैं।
इजरायल में दक्षिणपंथी लोकप्रिय नेता बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार है और वह भी इसके लिए जवाबदेह हैं। नेतन्याहू को अपने अतिराष्ट्रवादी और कट्टरपंथी गठबंधन साझेदारों को खुश करना है और इसके लिए उन्होंने इजरायली सेना और खुफिया सेवाओं के साथ मिलकर लड़ाई को चुना। उन्होंने फिलिस्तीनियों को हाशिये पर धकेल दिया और उनके समक्ष दो राष्ट्रों वाले हल की कोई आशा जीवित न रहने दी।
बाद की हरकतों ने हमास को आतंकी कार्रवाई में संलिप्त कर दिया जबकि पहले की घटनाओं में खुफिया और सैन्य नाकामियों ने योगदान दिया। इसकी वजह से उग्रवादी घंटों तक इजरायल की सीमा में कई किलोमीटर भीतर तक घुसे रहे और उन्हें जमीन पर किसी प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ा।
इजरायल को सुरक्षा की गारंटी देने वाले अमेरिका ने दशकों से फिलिस्तीनियों के अधिकारों की अनदेखी की है। उसने कभी नेतन्याहू की अतियों पर लगाम लगाने की कोशिश नहीं की। हमास का कहना है कि उसे इस हमले में ईरान की मदद मिली है।
ईरान खुद को क्षेत्रीय आधिपत्य वाली उस भूमिका के नाकाबिल साबित कर रहा है जिसकी वह आकांक्षा रखता है। भारत, सऊदी अरब से लेकर तुर्की तक अन्य क्षेत्रीय शक्तियों ने एक क्षेत्रीय एजेंडे की सीमा को समझ लिया है और वे बिना फिलिस्तीनी नागरिकों के अधिकारों के सवाल को हल किए, इजरायल के साथ रिश्तों को सामान्य करना चाहती हैं।
अब ध्यान इस बात पर केंद्रित किया जाना चाहिए कि यह संघर्ष आगे और न भड़के। गाजा में कुछ प्रतिक्रिया होना लाजिमी है लेकिन ऐसे किसी भी बड़े भड़कावे से बचना होगा जिसमें लेबनान और ईरान भी शामिल हो जाएं। भारत का हित भी इसी बात में निहित है कि क्षेत्र में जल्दी शांति और स्थिरता कायम हो।
कच्चे तेल की कीमतें पहले ही भारत के लिहाज से काफी ऊंची हो चुकी हैं और उसने हाल ही में पश्चिम एशिया में बड़ी अधोसंरचना योजनाओं में भागीदारी की घोषणा की है। भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप कॉरिडोर (आईएमईसी)इस बात पर निर्भर है कि संयुक्त अरब अमीरात और इजरायल के बंदरगाहों के बीच सुरक्षित जमीनी संपर्क संभव हो।
अगर अरब देशों और इजरायल के बीच रिश्ते बिगड़ते हैं या इजरायल की सीमा पर लड़ाई लंबी चलती है तो ऐसी योजना को क्षति पहुंचेगी। भारत को तात्कालिक समस्या को लेकर संतुलित प्रतिक्रिया देनी होगी जबकि इसके साथ ही उसे दीर्घकालिक नजरिया भी अपनाना होगा। जब तक इजरायल और फिलिस्तीन के बीच शांति स्थापित नहीं होती भारत के पश्चिम में शांति स्थापना नहीं होगी।