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पारदर्शिता को लेकर अलग-अलग रुख

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 9:20 PM IST

केंद्रीय वित्त मंत्रालय की सराहना करना उचित है कि उसने बॉन्ड जैसे बजट से इतर संसाधनों की मदद से सरकारी व्यय की पूर्ति को स्वीकार करने में पारदर्शिता का परिचय दिया। सरकार इनकी अपने स्तर पर या फिर राष्ट्रीय अल्प बचत फंड (एनएसएसएफ) से उधारी लेकर पूरी भरपाई करती है। बजट से इतर ऐसे संसाधनों से सरकारी व्यय की पूर्ति करने से राजकोषीय घाटे का वास्तविक आकार छिप जाता है। इसलिए यह खुलासा तथा ऐसे संसाधनों के इस्तेमाल में चरणबद्ध कमी दोनों, काबिलेतारीफ हैं।
खुलासे की प्रक्रिया 2019-20 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पहला बजट पेश किए जाते समय शुरू हुई। बजट से इतर ऐसे संसाधनों के लिए सरकारी उपाय का ब्योरा सन 2016-17 से व्यय बजट दस्तावेज में दिया जाने लगा था और वह उसमें केवल उस व्यय की जानकारी दी जाती जो सरकारी बॉन्ड की मदद से पूरा किया जाता। वर्ष 2020-21 के बजट में सीतारमण ने एक कदम आगे बढ़कर बजट भाषण के अंत में अपनी सरकार की बजट से इतर उधारी का ब्योरा पेश किया। उन्होंने ऐसे खुलासे 2019-20 और 2020-21 की प्रस्तावित उधारी तक सीमित रखे, परंतु उन्होंने बॉन्ड और एनएसएसएफ के जरिये ली जाने वाली उधारी को भी शामिल करना शुरू कर दिया।
2019-20 में बजट के अतिरिक्त ऐसीउधारी का बजट अनुमान 57,004 करोड़ रुपये था जो उस वर्ष के संशोधित अनुमान में 1.73 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया। इतना ही नहीं 1.86 लाख करोड़ रुपये के साथ उन्होंने दिखाया कि वह 2020-21 में वह ऐसे और अधिक संसाधन जुटाएंगी। यह दिक्कततदेह था क्योंकि इसमें राजकोषीय घाटे का वास्तविक आंकड़ा छिप सकता था। परंतु अच्छी बात है कि उन्होंने इसे छिपाने की मंशा नहीं दिखाई।
सीतारमण ने 2021-22 के बजट में सरकार के बजट संसाधनों से इतर संसाधन के इस्तेमाल पर और खुलासा किया। बजट भाषण के अंत में उन्होंने पहली बार कहा कि एनएसएसएफ तक से ऐसे संसाधन जुटाने की परिपाटी उनके पूर्ववर्ती अरुण जेटली ने 2016-17 में आरंभ की थी। 2016-17, 2017-18 और 2018-19 में ऐसी उधारी के क्रमश: 79,000 करोड़ रुपये , 88,000 करोड़ रुपये और 1.63 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहने का अनुमान जताया गया था।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वह बजट से इतर ऐसे संसाधनों पर निर्भरता कम करना चाहती हैं। उदाहरण के लिए 2019-20 में ऐसी उधारी का वास्तविक आंकड़ा कम करके 1.48 लाख करोड़ रुपये पर लाया गया जबकि संशोधित अनुमान 1.73 लाख करोड़ रुपये था। वहीं 2020-21 के 1.86 लाख करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान को घटाकर 1.26 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया। उन्होंने यह भी प्रस्ताव रखा कि 2021-22 में इसे कम कर करके 30,000 करोड़ रुपये किया जाएगा।
इस माह के आरंभ में 2022-23 का बजट पेश करते समय सीतारमण ने अपेक्षा से बेहतर प्रदर्शन किया और बजट से इतर संसाधन राशि को 30,000 करोड़ की जगह 751 करोड़ रुपये तक ले आयीं। अगले वर्ष इसे शून्य करने का इरादा है।
सरकार के बजट से इतर पारदर्शिता को लेकर ऐसे सराहनीय प्रदर्शन के बीच यह एक पहेली ही है कि वित्त मंत्री सीमा शुल्क प्रस्तावों को लेकर इतनी पारदर्शी क्यों नहीं रहीं। याद रहे कि सीमा शुल्क बदलावों को वित्त मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत अधिसूचनाओं के माध्यम से समझना आसान नहीं। उन्हें अतीत में जारी अन्य प्रासंगिक नोटिस के साथ पढऩा होता है ताकि नए नियमों के वास्तविक निहितार्थ समझे जा सकें तथा किसी वस्तु की प्रभावी शुल्क दर तय की जा सके।
प्रमुख सीमा शुल्क बदलावों को सरल भाषा में रेखांकित करने का काम जेटली ने शुरू किया था। वह अपने भाषण के अंत में एक सारणी में इसे पेश करते जहां नयी-पुरानी दरों का ब्योरा होता और साथ ही शुल्क समायोजन का सरकार का लक्ष्य बताया जाता।
यह बड़ा बदलाव था। आप आसानी से उन वस्तुओं की सूची बना सकते थे जिनका सीमा शुल्क बढ़ा क्योंकि सरकार घरेलू उद्योग के लिए एक समान क्षेत्र तय करना चाहती थी (यह भी एक तरह का संरक्षणवाद था)। यह भी  देखा जा सकता था कि सरकार ने अतिरिक्त संसाधन जुटाने के लिए कितनी वस्तुओं पर शुल्क बढ़ाया। सरकार के अनुसार भारतीय निर्यात को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए शुल्क में कमी भी की जाती।
अपने शुरुआती तीन बजट में सीतारमण ने विभिन्न वस्तुओं के सीमा शुल्क में बदलाव को सामने रखने की उपयोगी रवायत कायम रखी। परंतु 2022-23 के बजट में अचानक इस परंपरा को त्याग दिया गया। हालांकि सीमा शुल्क में परिवर्तन उनकी नई कर पहल का एक अहम हिस्सा है।
सीमा शुल्क के मोर्चे पर एक अहम पहल रियायतों की जटिल व्यवस्था में सुधार भी हैं जिन्हें विभिन्न सरकारों ने गत तीन दशक में पेश किया। इनकी वजह से सीमा शुल्क व्यवस्था और जटिल हुई है। सरकारें सीमा शुल्क में कमी करते हुए दरों में कटौती न करके एक रियायत अधिसूचना पेश कर देतीं। इसका प्रवर्तन प्रभावी दर को कम कर देता।  
स्वाभाविक सी बात है कि सीमित रियायतों के साथ एक सरल सीमा शुल्क व्यवस्था की आवश्यकता थी। सीतारमण ने 2022 के बजट में प्राय: ऐसा ही किया। उन्होंने एक ही बार में 414 उत्पादों पर से सीमा शुल्क हटा दिया। इन वस्तुओं के आयात शुल्क की प्रभावी दर में कोई बदलाव नहीं आएगा लेकिन इन वस्तुओं पर रियायत को लेकर भ्रम दूर हो जाएगा। सीमा शुल्क व्यवस्था में अनेक अन्य बदलाव भी हुए हैं। करीब 97 वस्तुओं की शुल्क दरों को तार्किक बनाया जाएगा। कई अन्य वस्तुओं की रियायत व्यवस्था को सरल किया गया। इनमें कुछ ऐसी वस्तुएं भी हैं जिनकी प्रभावी सीमा शुल्क दर में कमी की गई है।
परंतु न तो बजट भाषण में और न ही बाद में सामने आए स्पष्टीकरण में आम आदमी के लिए सीमा शुल्क बदलाव के दायरे को स्पष्ट किया गया है। यदि वित्त मंत्री ने पुरानी परंपरा बरकरार रखी होती तो भी लोगों को यह आसानी से समझ में आता।
हालांकि सीमा शुल्क बदलाव के कारण दरों में इजाफे को लेकर चिंता बरकरार रहती। आखिरकार कुछ मशीनरी और परियोजना आयात संबंधी नौ ऐसी वस्तुएं हैं जिन पर शुल्क बढ़ाया गया है। अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि कुछ ऐसी वस्तुएं जिनकी रियायत खत्म की गई है, अब उन पर अधिक शुल्क लगेगा या नहीं। यदि गत सात वर्षों की तरह इस बार भी बजट भाषण के अंत में स्पष्ट नोट प्रस्तुत किया जाता तो ये तमाम संदेह दूर हो गए होते।
बीते कुछ वर्षों से कुल सीमा शुल्क संग्रह में इजाफा होता रहा है। कुल आयात में उनका हिस्सा भी इस अवधि में बढ़ा है। सीमा शुल्क में बदलाव की वास्तविक दिशा स्पष्ट होती तो शायद और मदद मिलती।

First Published : February 10, 2022 | 11:21 PM IST