मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के दूसरे बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए लगभग 6.81 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए। पिछले साल जुलाई के बजट में दिए गए 6.21 लाख करोड़ रुपये से यह रकम 9.5 प्रतिशत ज्यादा है। लेकिन कुल रक्षा बजट में 4.88 लाख करोड़ रुपये यानी 71.75 प्रतिशत हिस्सेदारी राजस्व व्यय की है, जिसमें वेतन, पेंशन, रखरखाव, मरम्मत और बुनियादी ढांचा शामिल है।
बजट दस्तावेज से पता चलता है कि राजस्व व्यय के अंतर्गत आने वाला पेंशन खर्च 13.8 प्रतिशत बढ़कर 2025-26 में 1.60 लाख करोड़ रुपये रहेगा। 2024-25 में यह करीब 1.41 लाख करोड़ रुपये था। पिछले कई साल से सालाना रक्षा बजट में पेंशन की हिस्सेदारी 20 प्रतिशत से ज्यादा ही रही है। पेंशन पर खर्च में इतने भारी इजाफे की प्रमुख वजह 2015 में लागू वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) योजना है। इसमें पेंशन की रकम हर पांच साल में बढ़ा दी जाती है। इस तरह सरकार से मिले संसाधन रक्षा बजट में दिक्कत पैदा करते हैं क्योंकि बड़ा हिस्सा पूंजीगत व्यय के बजाय राजस्व व्यय में चला जाता है।
सरकार चीन और पाकिस्तान की क्षमताओं और उनसे होने वाले सैन्य खतरों के हिसाब से खर्च तय करने की जरूरत को पूरी तरह नजरअंदाज नहीं कर सकती। साथ ही वह उन देशों के सैन्य खर्च को भी अनदेखा नहीं कर सकती। भारत के सशस्त्र बलों को आधुनिक बनाने के लिए बजट से कम पूंजी मिलती है तो उसकी भरपाई करने के कई तरीके हैं, जिन्हें अपनाकर भारत और उसके दुश्मनों की क्षमताओं के बीच अंतर कम किया जा सकता है।
15वें वित्त आयोग की सिफारिशों को कुछ हद तक अपनाकर ऐसा किया जा सकता है। आयोग ने पेंशन और वेतन पर खर्च कम करने की अपील की थी। मोदी सरकार ने जून 2022 में अग्निवीर योजना शुरू की, जिसके तहत सशस्त्र सेवाओं में केवल 4 साल के लिए भर्ती की जानी थी। 15वें वित्त आयोग में अग्निवीर योजना जैसी कोई सिफारिश नहीं थी। इस योजना में 4 साल पूरे होने पर 25 प्रतिशत अग्निवीरों की सशस्त्र सेवाओं में नियमित भर्ती की जानी है। जिन्हें नियमित भर्ती नहीं दी जाती है, उन्हें 4 साल बाद 11 लाख रुपये दिए जाते हैं।
हालांकि अभी यह तय नहीं हुआ है कि अग्निवीर योजना के तहत कितने प्रतिशत जवानों को 4 साल पूरे होने के बाद सेना में शामिल किया जाएगा। इस पर अपेक्षा से ज्यादा विवाद हो रहा है। सेना अभी इस पर विचार कर रही है और सभी पक्षों से मशविरा ले रही है कि इस सीमा को 25 प्रतिशत से ऊपर ले जाना चाहिए या नहीं। अग्निवीर योजना ठीक से लागू हो गई तो रक्षा राजस्व बजट के अंतर्गत जाने वाली पेंशन कम हो जाएगी। किंतु सेना में भर्ती करने की दर 25 प्रतिशत से अधिक की गई तो इस योजना से होने वाली बचत घट जाएगी। यह भी हो सकता है कि वेतन एवं पेंशन पर बढ़ा हुआ खर्च कम करने का मकसद ही पूरा नहीं हो सके। कुछ भी हो अग्निवीर योजना के कारण खर्च एवं भुगतान में बचत 2030 से पहले तो शुरू नहीं हो पाएगी। इसीलिए योजना को जल्द से जल्द लागू करना बहुत आवश्यक है।
15वें वित्त आयोग ने रक्षा मंत्रालय से मिले सुझावों के आधार पर कई सिफारिशें कीं, जिन्हें लागू करने पर सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए चाहे उन्हें बारी-बारी ही लागू क्यों न किया जाए। पहली सिफारिश है रक्षा संपत्तियां बेचना या पट्टे पर देना। रक्षा उपकरणों की खरीद के लिए रकम जुटाने का दूसरा तरीका रक्षा बॉन्ड जारी करना है। सार्वजनिक क्षेत्र की रक्षा इकाइयों (डीपीएसयू) और आयुध कारखानों (ओएफ) को निर्यात से जो भी मुनाफा होता है वह रक्षा उद्देश्यों में ही लगाया जाना चाहिए। रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश से मिल रही रकम भी रक्षा बजट के तहत खरीद आदि में होने वाले कुल खर्च में थोड़ी मदद कर सकती है।
एक उपाय लोगों से पैसे उधार लेने के लिए रक्षा बॉन्ड जारी करना भी है। आम तौर पर रक्षा बॉन्ड नागरिकों से भावना भरी अपील की तरह होते हैं, जिसमें उनसे सैन्य उपकरण आदि की खरीद के लिए सरकार को एक तय अवधि के लिए रकम उधार देने का अनुरोध किया जाता है। निवेश की गई रकम पर सरकार या कंपनी उस अवधि में ब्याज देती रहती है मगर इस ब्याज की दर आम तौर पर बाजार में चल रही दर से कुछ कम होती है। बॉन्ड की मियाद पूरी होने पर आपका मूलधन यानी लगाई गई असली रकम लौटा दिया जाएगा। 15वें वित्त आयोग ने ‘एकबारगी एकमुश्त अनुदान’ की सिफारिश भी की है। इसके लिए सरकार उस रकम का इस्तेमाल कर सकती है, जो वित्त मंत्रालय के पास पड़े हैं और ठीक से खर्च नहीं हो रहे हैं।
ऐसी नीति भी बनाई जा सकती है, जिसके तहत रक्षा सेवाओं द्वारा की जाने वाली समूची खरीद पर सीमा शुल्क और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) जैसे कर पूरी तरह खत्म कर दिए जाएं। आयोग की सबसे चुनौतीपूर्ण सिफारिश ऐसा रक्षा कोष बनाने की है, जिसमें रकम कभी खत्म ही नहीं हो। यह बात 2004-05 के अंतरिम बजट में भी कही गई थी लेकिन मोदी सरकार इसे लागू करने से हिचक रही है क्योंकि ऐसा करने में संवैधानिक अड़चनें आ सकती हैं। अंतिम और शायद सबसे व्यावहारिक विकल्प रक्षा उपकर लगाकर रक्षा खरीद के लिए रकम जुटाना है।
सशस्त्र सेवाओं के लिए रक्षा उपकरण आदि की खरीद के लिए रकम जुटाने का कोई भी तरीका सरकार अपना सकती है मगर यथास्थिति खत्म होनी चाहिए और महत्त्वाकांक्षी राह तैयार होनी चाहिए।
(हर्ष पंत ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली में वाइस प्रेसिडेंट हैं और कार्तिक बोम्मकांति वहां सीनियर फेलो हैं)