सरकार ने हाल ही में देश के श्रम बाजार नियमन को एक हद तक लचीला बनाने संबंधी जो कदम उठाए हैं, वे लंबे समय से प्रतीक्षित थे और उनका स्वागत किया जाना चाहिए। कुछ अन्य ऐसे सुधार हैं जिनके बारे में लंबे समय से अर्थशास्त्रियों का यह मानना रहा है कि देश की वृद्धि संभावनाओं को बेहतर बनाने की दृष्टि से वे उतने ही अहम हैं जितने कि श्रम सुधार। यही कारण है कि औद्योगिक संबंध संहिता 2020 (गत 29 सितंबर को अधिसूचित) समेत हालिया संहिताओं को बड़े अग्रगामी कदमों के रूप में देखा जाना चाहिए, भले ही वे बहुत दूरगामी न हों। इन संहिताओं से बाजार में वास्तविक लचीलापन भले ही नहीं आया हो लेकिन इन्होंने तयशुदा अवधि के अनुबंध आधारित रोजगार को औपचारिक बनाने और उसके दायरे का विस्तार करने का काम किया है।
देश के श्रम बाजार में लचीलापन न होने के करण उक्त व्यवस्था स्वत: विकसित हो गई थी। सरकार का यह कदम समुचित लचीलापन लाने की दिशा में समझदारी भरी पहल है। इसके बावजूद तयशुदा अवधि के अनुबंधित रोजगार को लेकर चिंताएं बरकरार हैं। खासतौर पर संहिता में किए गए एक ऐसे संशोधन को लेकर जो यह सुनिश्चित करता है कि कंपनियों को मौजूदा स्थायी कर्मचारियों को तयशुदा अवधि के अनुबंधित कर्मचारियों में बदलने की अनुमति होगी। कुछ लोग इसे प्रतिगामी कदम मान रहे हैं। हालांकि यह इसे देखने का सही नजरिया नहीं है। सही बात तो यह है कि यह कदम उन कर्मचारियों के लिए रोजगार की निरंतरता तय करेगा जो अभी स्थायी कर्मचारी हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इस कदम से उनके नियोक्ताओं की प्रतिस्पर्धी क्षमता, पूंजी जुटाने की क्षमता और काम का विस्तार करने की क्षमता बढ़ेगी। चिंता का एक विषय यह भी है कि तयशुदा अवधि के अनुबंधित रोजगार किसी न किसी तरह मौजूदा स्थायी रोजगार से कमतर होते हैं।
कार्यकाल की सुरक्षा की दृष्टि से देखें तो यह बात सही है। परंतु यह स्थायित्व आंशिक रूप से इसलिए भी है क्योंकि देश में औपचारिक और श्रेष्ठ रोजगार का स्तर काफी कम है। निश्चित तौर पर वास्तविक मौजूदा कार्य बल की स्थिति के मानक के मुताबिक तो जिस तयशुदा अनुबंधित रोजगार की बात परिकल्पना है उसे श्रेष्ठ काम कहा जा सकता है। जब तक हर प्रकार के सांविधिक भुगतान की गारंटी है तब तक अनुबंध में पूरी पारदर्शिता मानी जाएगी। यदि वेतन संहिता का पालन किया जा रहा है तो यह मानने की पूरी वजह है कि अनुबंधित रोजगार, उत्कृष्ट रोजगार के आमतौर पर स्वीकार्य मानक को पूरा करेगा। एक अहम मूल्यवद्र्धन यह है कि ऐसा लचीलापन प्रतिस्पर्धा बढ़ाने वाला साबित होगा और इससे नए रोजगार तैयार होंगे। खासतौर पर यदि श्रम बाजार में बदलाव जारी रहता है और इसके साथ-साथ कौशल विकास कार्यक्रम चलते हैं। व्यापक समझौता कुछ इस प्रकार का होना चाहिए: अधिक लचीलेपन की अनुमति दी जाए और इसके साथ ही ऐसा अनुकूल माहौल बनाया जाए कि अनुबंध का उल्लंघन होने पर मदद मिल सके। इन अनुबंधों को ठेकेदारों के जरिये नहीं बल्कि खुद कंपनियों के जरिये अंजाम दिया जाएगा। इससे यह तय होता है कि उपरोक्त स्थिति बनने पर प्रभावी मदद के लिए बेहतर प्रणाली विकसित की जा सकेगी। कर्मचारियों को कौशल विकास का हर अवसर मिलना चाहिए ताकि वे आसपास की जगहों से बेहतर कौशल सीख सकें, अपने करियर की योजना बना सकें। उन्हें अन्य सामाजिक सुरक्षा कवरेज भी मिलनी चाहिए। इसके अलावा श्रम संगठन या अन्य प्रकार के प्रतिनिधित्व के साथ समर्थन मिलना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि शक्तिशाली कंपनियां अनुबंध की शर्तों का पालन करें। यह तय करना अहम है कि किसी भी उल्लंघन को तय समय में निपटाया जाए। ऐसा करके भारत मुख्यधारा के उदार लोकतांत्रिक देशों में शामिल हो जाएगा और उत्कृष्ट रोजगार तैयार करने का उसका रिकॉर्ड भी सुधरेगा।