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उपभोक्ता धारणा में मजबूती जारी रहने की उम्मीद

Published by
महेश व्यास
Last Updated- January 27, 2023 | 10:01 PM IST

वर्ष 2022 के अंतिम दो महीनों में उपभोक्ताओं की धारणा में 2.6 प्रतिशत कमजोरी देखी गई। सितंबर और अक्टूबर में उपभोक्ता धारणा 13.6 प्रतिशत मजबूत हुई थी। त्योहारों के दौरान आम तौर पर दिखने वाले उत्साह के कारण इन दो महीनों में उपभोक्ताओं का मिजाज ठीक लग रहा था। त्योहारों के बाद उपभोक्ता धारणा में गिरावट कोई अप्रत्याशित बात नहीं थी।

हालांकि अच्छी बात यह रही कि त्योहारों के समय उपभोक्ता धारणा सूचकांक (आईसीएस) में तेजी की तुलना में इसमें (आईसीएस) गिरावट की गति धीमी रही। शुद्ध आधार पर उपभोक्ताओं की धारणा में संभवतः त्योहारों के बाद 10.7 प्रतिशत से अधिक सुधार हुआ है। जनवरी में भी धारणा में सुधार जारी है। 22 जनवरी, 2023 तक आईसीएस का 30 दिनों का मूविंग एवरेज दिसंबर अंत की तुलना में 2.2 प्रतिशत अधिक था।

आईसीएस में लगातार सुधार का अभिप्राय है कि नवंबर और दिसंबर में इसमें 2.6 प्रतिशत की गिरावट अस्थायी थी। इन दोनों महीनों में दैनिक पारिश्रमिक पर काम करने वाले मजदूरों की मांग एवं छोटे कारोबारियों के व्यवसाय में कमजोरी दिखती है। नवंबर और दिसंबर में आईसीएस में संभवतः इस वजह से गिरावट आई होगी। छोटे कारोबारियों के कारोबार में बढ़ोतरी और दैनिक वेतन पर काम करने वाले श्रमिकों की मांग बढ़ने की उम्मीद से त्योहारी सत्र तक उपभोक्ताओं की धारणा मजबूत हुई होगी। मगर त्योहारों के बीतने के बाद मांग कम हो जाती है और उपभोक्ताओं की धारणा थोड़ी नरम पड़ जाती है।

जून और सितंबर 2022 के बीच छोटे कारोबारियों और दैनिक मजदूरी करने वाले श्रमिकों के आईसीएस में 22 प्रतिशत का इजाफा हुआ। यह ऐसा समय होता है जब खेतों में और उसके बाद त्योहारी मौसम में श्रमिकों की मांग बढ़ जाती है। वैसे तो शेष सभी पेशेवर समूहों की धारणा मजबूत हुई है मगर दैनिक मजदूरी करने वाले श्रमिकों का मिजाज सबसे ज्यादा मजबूत हुआ था।

जून और सितंबर के दौरान इस समूह का आईसीएस 13.7 प्रतिशत तक बढ़ गया। उसके बाद सितंबर और दिसंबर 2022 के दौरान दैनिक मजदूरी करने वाले श्रमिकों का आईसीएस 5.4 प्रतिशत लुढ़क गया। इसी अवधि के दौरान अन्य सभी समूहों के आईसीएस में मजबूती लगातार जारी रही। यह स्पष्ट है कि त्योहारों के बाद आईसीएस में कमी केवल दैनिक मजदूरी करने वाले श्रमिकों के समूह तक ही सीमित रही। देश में सभी परिवार जितनी आय अर्जित करते हैं उसमें छोटे कारोबारियों और दैनिक मजदूरी करने वाले श्रमिकों की हिस्सेदारी करीब 18 प्रतिशत होती है। मगर कुल परिवारों की संख्या की बात करें तो उनकी हिस्सेदारी 25 प्रतिशत तक होती है।

सितंबर और दिसंबर 2022 के बीच वेतनभोगी कर्मचारियों का आईसीएस 8.9 प्रतिशत बढ़ गया। यह ऐसा समूह है जिसकी औसत आय का स्तर सर्वाधिक होता है। आकार में भी यह समूह बड़ा है, हालांकि संख्या के हिसाब से यह सबसे बड़ा समूह नहीं है। अधिक औसत आय और सभी परिवारों की कुल आय में बड़ी हिस्सेदारी के कारण वेतनभोगी वर्ग का महत्त्व अधिक होता है। चार बड़े पेशेवर समूहों- कारोबारी व्यक्ति, वेतनभोगी कर्मचारी, रोजाना मजदूर और किसान- में वेतनभोगी कर्मचारी सर्वाधिक आय अर्जित करते हैं।

वेतनभोगी वर्ग के करीब 6.05 करोड़ परिवार हैं। भारत में परिवारों की कुल संख्या का वे करीब 18 प्रतिशत हैं। मगर भारत में सभी परिवार जितनी आय अर्जित करते हैं उनमें इन 18 प्रतिशत परिवारों की हिस्सेदारी 27 प्रतिशत होती है। भविष्य में प्रगति की संभावनाओं के दृष्टिकोण से वेतनभोगी कर्मचारियों की निरंतर मजबूत धारणा का विशेष महत्त्व होता है। दिलचस्प बात है कि वेतनभोगी वर्ग ने भविष्य को लेकर अधिक आशावादी रुख का परिचय दिया है।

इस समूह का उपभोक्ता अपेक्षा सूचकांक (आईसीई) सितंबर- दिसंबर 2022 के दौरान 12 प्रतिशत बढ़ गया है जबकि पूरा आईसीई केवल 5 प्रतिशत दर से बढ़ा है। मजबूत वृद्धि की संभावनाओं के लिहाज से कृषक परिवार भी उतने ही महत्त्वपूर्ण होते हैं। देश में परिवारों की कुल संख्या में उनकी हिस्सेदारी 26 प्रतिशत और कुल परिवारों की आय में हिस्सेदारी 25 प्रतिशत होती है।

इन समूह की एक खास बात यह है कि बाकी सभी समूहों की तुलना में इसका आईसीएस लगातार ऊंचे स्तर पर रहता है। अप्रैल 2020 में जब कोविड महामारी शुरू हुई थी तो किसान परिवारों का आईसीएस कारोबारी परिवार के लगभग बराबर और वेतनभोगी कर्मचारियों से थोड़ा ऊपर ही था। 2020 की शुरुआत से किसान परिवारों की धारणा में तेजी से सुधार हुआ है। अप्रैल 2020 के बाद किसान परिवारों का आईसीएस शेष सभी पारिवारिक समूहों की तुलना में लगातार अधिक रहा है।

दिसंबर 2022 तक किसान परिवारों का आईसीएस औसत आईसीएस की तुलना में 11.5 प्रतिशत अधिक था। इससे पहले नवंबर 2022 में यह 15.7 प्रतिशत अधिक था। कारोबारी समुदाय के परिवार देश में कुल परिवारों की संख्या का 20 प्रतिशत थे। कुल परिवारों में उनकी हिस्सेदारी धीरे-धीरे बढ़ रही है। 2014-15 में यह 14 प्रतिशत, 2015-16 में 15 प्रतिशत, 2016-17 में 16 प्रतिशत, 2017-18 में 18 प्रतिशत और 2018-19 के बाद 20 प्रतिशत रही है। हालांकि परिवारों की कुल आय में कारोबारी परिवारों की आय का हिस्सा इसी अनुपात में नहीं बढ़ा है।

2014-15 में परिवारों की कुल आय में उनकी हिस्सेदारी 19 प्रतिशत थी। यह 2016-17 में बढ़कर 20 प्रतिशत और 2018-19 में बढ़कर 24 प्रतिशत हो गई। तब से यह घट कर 20 प्रतिशत रह गई है। कारोबारी परिवारों का आईसीएस थोड़ा कम रहता है और पूरे सूचकांक में इस पर खास नजर रखी जाती है। नवंबर 2022 में दो वर्षों के दौरान पहली बार कारोबारी व्यक्तियों का आईसीएस समग्र आईसीएस से अधिक रहा। मगर दिसंबर में यह रफ्तार बरकरार नहीं रख पाया। वेतनभोगी कर्मचारियों और किसानों के परिवार देश में कुल परिवारों की संख्या का 45 प्रतिशत हैं और कुल आय में इनकी हिस्सेदारी 52 प्रतिशत है। ऐसा प्रतीत होता है कि उपभोक्ता धारणा मजबूत बनाए रखने में ये दोनों समूह अहम योगदान दे रहे हैं।

(लेखक सीएमआईई प्रा. लि. के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं।)

First Published : January 27, 2023 | 10:01 PM IST