फरीदाबाद में रहने वाले 32 वर्षीय एडवरटाइजिंग एग्जिक्यूटिव विनीत कुमार (बदला हुआ नाम) हाल में पिता बने हैं। पिता बनने पर वह काफी खुश है लेकिन उन्हें कुछ चिंताएं भी सता रही हैं। कुमार ने कहा, ‘मुझे कभी-कभी इस बात की चिंता होती है कि अगर मैं नहीं रहा तो मेरे बच्चे का क्या होगा।’ मगर उनके जैसे माता-पिता को बाल बीमा योजना काफी राहत दे सकती है।
आम तौर पर इस प्रकार की योजनाएं बच्चे के 18 से 25 वर्ष के होने पर परिपक्व होती हैं। इसलिए इन योजनाओं से प्राप्त रकम का उपयोग बच्चे की उच्च शिक्षा अथवा विवाह जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यों में किया जा सकता है। इस प्रकार की योजनाएं आपको लक्ष्य के आधार पर धन सृजित करने में मदद कर सकती हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वे बीमा कवरेज प्रदान करती हैं।
आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस के प्रमुख (योजनाएं) श्रीनिवास बालासुब्रमण्यम ने कहा, ‘माता-पिता का असामयिक निधन होने की स्थिति में तत्काल एकमुश्त भुगतान किया जाता है। इसके अलावा भविष्य के सभी प्रीमियम भुगतान माफ कर दिए जाते हैं। अगर पॉलिसी की प्रीमियम भुगतान अवधि 10 साल है और दो साल बाद माता-पिता का निधन हो जाता है तो शेष 8 प्रीमियम का भुगतान जीवन बीमा कंपनी करती है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि पॉलिसी चालू है और परिपक्वता पर उसके सभी लाभ मिलेंगे।’
बाल बीमा योजनाएं बच्चे के लिए एक सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करती हैं, भले ही कमाने वाले व्यक्ति की मृत्यु जल्द ही क्यों न हो जाए। बजाज आलियांज लाइफ की वरिष्ठ कार्यकारी उपाध्यक्ष और प्रमुख (योजनाएं) मधु बुरुगुपल्ली ने कहा, ‘वे इस समस्या का ध्यान रखते हैं कि मेरे न रहने पर भी मेरे बच्चों की शिक्षा एवं अन्य लक्ष्य प्रभावित न होने पाए।’
इस प्रकार की योजनाएं यूनिट-लिंक्ड अथवा पारंपरिक या रिटर्न की गारंटी के साथ हो सकती हैं। पॉलिसीबाजार के योजना प्रमुख (निवेश) समीप सिंह ने कहा, ‘कुछ योजनाएं पॉलिसी अवधि के दौरान परिवार के लिए आय भी सुनिश्चित करती हैं जो आम तौर पर बीमित राशि का 1 फीसदी या एक वार्षिक प्रीमियम के बराबर होती है।’
सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) निवेश आम तौर पर उस समय बंद हो जाता है जब परिवार में कमाने वाले व्यक्ति का निधन हो जाता है। इसी प्रकार सावधि जमा लंबी अवधि की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकती है।
बुरुगुपल्ली ने कहा, ‘परिवार में कमाने वाले का निधन होने के बाद लघु अवधि की जरूरतें- पारिवारिक खर्च, होम लोन की अदायगी, स्कूल की फीस आदि को पूरा करना पहली प्राथमिकता होती है।’ बच्चे के कॉलेज जाने लायक होने तक रकम खत्म हो सकती है।
सिंह के अनुसार, अधिकतर परिवारों के पास 1 से 2 करोड़ रुपये की बीमित रकम के साथ पर्याप्त टर्म कवर भी नहीं होता है। उन्होंने कहा, ‘इस प्रकार का कवर बच्चे की उच्च शिक्षा और पत्नी के रिटायरमेंट के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है।’
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) में पंजीकृत निवेश सलाहकार (आरआईए) दीपेश राघव ने कहा कि अगर परिवार के सदस्य वित्तीय रूप से समझदार नहीं हैं तो सावधि जमा से मिली रकम बरबाद हो सकती है। मगर चाइल्ड प्लान सही समय पर भुगतान करते हैं।
बालासुब्रमण्यन ने कहा, ‘इससे यह सुनिश्चित हो सकता है कि बच्चे की शिक्षा का लक्ष्य पूरा हो, भले ही परिवार में कमाने वाले प्रमुख व्यक्ति का निधन क्यों न हो जाए।’
सावधि जमा और म्युचुअल फंड की तरह कोई भी बाल बीमा योजना अधिक किफायती नहीं हो सकती है। राघव ने कहा, ‘विशेष रूप से पारंपरिक योजनाओं में रिटर्न कम होता है।’
उन योजनाओं से बचना चाहिए जो केवल बच्चे के जीवन का बीमा करती हैं और उनके माता-पिता के जीवन का नहीं। इस प्रकार की पॉलिसी वृद्ध व्यक्तियों या पहले से बीमार लोगों के लिए भी अधिक उपयुक्त नहीं होती है।
राघव ने कहा, ‘अगर आप 50 वर्ष से अधिक उम्र के हैं तो मॉर्टेलिटी शुल्क अधिक होगा। अगर आपको स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं तो बीमाकर्ता उसके लिए अतिरिक्त शुल्क वसूल सकता है।’
यूनिट-लिंक्ड बीमा योजनाओं (यूलिप) के लिए करमुक्त रिटर्न की सीमा 2.5 लाख रुपये और पारंपरिक योजनाओं के लिए 5 लाख रुपये तक होती है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या आपको गैर पारंपरिक योजना लेनी चाहिए अथवा यूलिप का विकल्प चुनना चाहिए? पारंपरिक योजनाओं में भुगतान रकम की गारंटी होती है।
सिंह ने कहा, ‘मगर यूलिप में और विशेष रूप से लंबी अवधि की योजनाओं में इक्विटी निवेश के कारण एक बड़ा हिस्सा जमा किया जा सकता है।’