प्रतीकात्मक तस्वीर
अगर आप PhonePe, GPay या Paytm जैसे ऐप्स से रोजाना पैसे भेजते या लेते हैं, तो थोड़ा ध्यान दें। नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) ने UPI ट्रांजेक्शंस के लिए नए सेटलमेंट नियम लाए हैं। ये 3 नवंबर 2025 से लागू होंगे। इससे पैसे के लेन-देन में कुछ बदलाव आएंगे, खासकर बैंकों और डिस्प्यूट्स को हैंडल करने में। आइए, आसान भाषा में समझने की कोशिश करते हैं कि ये क्या हैं और आपकी जिंदगी पर क्या असर पड़ेगा।
अभी तक UPI के सभी ट्रांजेक्शंस, चाहे वो कन्फर्म हो चुके हों या डिस्प्यूट वाले, एक ही साइकल में सेटल होते थे। लेकिन अब NPCI ने इन्हें अलग-अलग कर दिया है। यानी, जो ट्रांजेक्शन पूरी तरह वैलिड हैं, वो तेजी से सेटल होंगे। वहीं, अगर कोई प्रॉब्लम हो, जैसे कि चार्जबैक या डिस्प्यूट तो वो अलग प्रोसेस से हैंडल होगा। इससे सिस्टम ज्यादा स्मूथ चलेगा और बैंकों को कम झंझट होगा।
हालांकि, यूजर्स के लिए इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि ये बदलाव बैकएंड पर हैं। पैसे भेजना या रिसिव वैसा ही रहेगा जैसे पहले से काम करता है। लेकिन अगर कभी ट्रांजेक्शन में गड़बड़ी हो, जैसे पैसे कट गए लेकिन रिसीवर को न पहुंचे, तो डिस्प्यूट सॉल्व करने का तरीका अब पहले से बेहतर हो जाएगा। आपको कम वेटिंग का फायदा मिलेगा, और ऐप्स पर अपडेट्स जल्दी दिखेंगे। कुल मिलाकर, आपकी डेली पेमेंट्स सुरक्षित और तेज रहेंगी।
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इसका सबसे बड़ा फायदा बैंकों को मिलेगा। पहले डिस्प्यूट्स की वजह से सेटलमेंट में देरी होती थी, जो RBI के फाइन का कारण बनती थी। अब अलग साइकल्स से वो क्लीन ट्रांजेक्शंस को प्रायोरिटी दे सकेंगे। ऐप्स जैसे PhonePe, GPay और Paytm को भी अपने सिस्टम अपडेट करने पड़ेंगे, ताकि ये नए नियम फॉलो हो सकें। इससे ओवरऑल UPI नेटवर्क ज्यादा मजबूत बनेगा।
अगर आप Paytm इस्तेमाल करते हैं, तो एक और खबर है। NPCI ने पुराने @paytm UPI ID से जुड़े ऑटोपे मंडेट्स को बंद करने की डेडलाइन दो महीने बढ़ा दी है। अब ये 31 अक्टूबर 2025 तक चलेंगे। मतलब, आपके रेगुलर बिल पेमेंट्स जैसे लोन EMI या सब्सक्रिप्शंस में अभी कोई जल्दबाजी नहीं। लेकिन उसके बाद नई ID पर स्विच करना जरूरी होगा।
NPCI के आंकड़ों के मुताबिक, बीते अगस्त में UPI ने 20 अरब से ज्यादा लेनदेन किए, जिनका कुल मूल्य 24.85 लाख करोड़ रुपये था। यह पहली बार था जब UPI ने एक महीने में 20 अरब लेनदेन का आंकड़ा पार किया। NPCI अब सेटलमेंट को अलग-अलग करके सिस्टम की रुकावटें कम करने, कामकाज को बेहतर बनाने और सेटलमेंट में देरी के जोखिम को घटाने की कोशिश कर रहा है।