प्रतीकात्मक तस्वीर | फोटो क्रेडिट: Freepik
ITR-1 vs ITR-2: भारत में इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) दाखिल करना हर उस व्यक्ति के लिए जरूरी है, जिसकी आय टैक्स के दायरे में आती है। लेकिन सही फॉर्म चुनना लोगों के लिए एक मुश्किल का काम बन जाता है। खासकर, सबसे महत्वपूर्ण ITR-1 (सहज) और ITR-2 के बीच का फर्क समझना लोगों के लिए जरूरी होता है, क्योंकि गलत टैक्स फॉर्म भरने से आपके पास इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का नोटिस आ सकता है। आइए, आसान भाषा में समझने की कोशिश करते हैं कि दोनों फॉर्म में क्या मूल अंतर है और AY26 में दोनों में क्या क्या बदलाव हुए हैं।
ITR-1, को ‘सहज’ फॉर्म भी कहते हैं और इसे उन टैक्सपेयर्स के लिए बनाया गया है, जिनकी आय का सिस्टम बिल्कुल सीधा है। इनकम टैक्स एक्सपर्ट बलवंत जैन कहते हैं, “अगर आप नौकरीपेशा हैं, एक मकान के किराए से आय आता हो या बैंक में जमा पैसे से ब्याज मिलता है, तो ये फॉर्म आपके लिए है। हालांकि, इसमें कुछ शर्ते भी हैं। सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस (CBDT) के मुताबिक, ITR-1 का इस्तेमाल केवल भारतीय निवासी (रेसिडेंट) व्यक्ति कर सकते हैं, जिनकी कुल आय 50 लाख रुपये तक है। इसमें सैलरी, पेंशन, एक मकान की प्रॉपर्टी से आय और अन्य स्रोतों (जैसे बैंक ब्याज) से आय शामिल हो सकती है। इसके अलावा, अगर आपकी कृषि आय 5,000 रुपये तक है, तो भी आप ITR-1 भर सकते हैं।”
हाल ही में, CBDT ने ITR-1 फॉर्म में कुछ बदलाव भी किए हैं। अब आप इसमें 1.25 लाख रुपये तक की लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (LTCG) की जानकारी दे सकते हैं, जो सेक्शन 112A के तहत आता है, बशर्ते आपके पास कोई पुराना नुकसान न हो। इसका मतलब है कि अगर आपने शेयर या म्यूचुअल फंड बेचकर 1.25 लाख तक का मुनाफा कमाया है, तो भी आप इस फॉर्म का इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे, अगर आपकी आय 50 लाख से ज्यादा है या आपके पास विदेशी संपत्ति है, तो ITR-1 आपके लिए नहीं है।
जैन कहते हैं, “ITR-2 उन लोगों के लिए है, जिनकी आय का ढांचा थोड़ा मुश्किल है। ये फॉर्म व्यक्तियों और हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) के लिए है, जिनकी आय बिजनेस या प्रोफेशन से नहीं आती। अगर आपकी आय 50 लाख रुपये से ज्यादा है, आपके पास एक से ज्यादा मकान हैं, या आपने शेयर, म्यूचुअल फंड, प्रॉपर्टी या सोने जैसी चीजों से कैपिटल गेन कमाया है, तो आपको ITR-2 भरना होगा। इसके अलावा, अगर आपने विदेशी संपत्ति में निवेश किया है, विदेशी बैंक खाते में सिग्नेचर करने का अधिकार है, या आप किसी कंपनी के डायरेक्टर हैं, तो भी ये फॉर्म आपके लिए है।”
ITR-2 में हाल के बदलावों ने इसे और पारदर्शी बनाया है। AY 2025-26 के लिए ITR-2 में अब कैपिटल गेन की अलग-अलग तारीखों के आधार पर रिपोर्टिंग करनी होगी। यानी, अगर आपने 23 जुलाई 2024 से पहले या बाद में कोई संपत्ति बेची, तो उसका अलग-अलग हिसाब देना होगा। साथ ही, शेयर बायबैक से होने वाले कैपिटल लॉस को भी अब अलग से दिखाना होगा, जो 1 अक्टूबर 2024 के बाद लागू होगा। ये बदलाव टैक्सपेयर्स को सही टैक्स गणना में मदद करेंगे, लेकिन इसे भरने में थोड़ी मेहनत लगेगी।
ITR-1 और ITR-2 के बीच सबसे बड़ा फर्क उनकी जटिलता और लागू होने की शर्तों में है। जैन के मुताबिक, ITR-1 उन लोगों के लिए है, जिनकी आय सीधी-सादी है। मिसाल के तौर पर, अगर आप एक नौकरीपेशा इंसान हैं, जिसके पास एक मकान है और बैंक ब्याज से थोड़ी आय है, तो ITR-1 आपके लिए काफी है। लेकिन अगर आपकी आय 50 लाख से ज्यादा है, या आपके पास कई मकान हैं, या आपने शेयर बाजार में बड़ा निवेश किया है, तो ITR-2 आपका फॉर्म है।
एक और बड़ा अंतर ये है कि ITR-2 गैर-निवासियों (NRI) और निवासियों, दोनों के लिए है, जबकि ITR-1 केवल निवासियों के लिए है। अगर आप भारत में गैर-निवासी हैं और आपकी आय सिर्फ बैंक ब्याज से है, तो आपको ITR-2 भरना होगा। साथ ही, अगर आपकी कृषि आय 5,000 रुपये से ज्यादा है, या आपने विदेशी संपत्ति में निवेश किया है, तो भी ITR-2 ही आपका रास्ता है।
जैन कहते है, “सही फॉर्म चुनना इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी आय का स्रोत क्या है और आपकी वित्तीय स्थिति कितनी जटिल है। अगर आपकी कुल आय 50 लाख से कम है, आपके पास एक मकान है, और आपकी आय सैलरी, ब्याज या छोटी कृषि आय से है, तो ITR-1 (सहज) आपके लिए सही है। ये फॉर्म भरना आसान है और इसमें ज्यादा डॉक्यूमेंट्स की जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन अगर आपकी आय में कैपिटल गेन, विदेशी संपत्ति, या एक से ज्यादा मकान शामिल हैं, तो ITR-2 चुनना होगा।”
उदाहरण के लिए, मान लीजिए आप एक नौकरीपेशा व्यक्ति हैं, जिसकी सैलरी 45 लाख रुपये है और बैंक ब्याज से 2 लाख रुपये की आय है। आप ITR-1 भर सकते हैं। लेकिन अगर आपकी सैलरी 55 लाख है या आपने शेयर बेचकर 2 लाख का मुनाफा कमाया, तो आपको ITR-2 की जरूरत पड़ेगी। इसी तरह, अगर आप किसी कंपनी के डायरेक्टर हैं या आपके पास विदेशी शेयर हैं, तो ITR-2 ही सही है।
CBDT ने AY 2025-26 के लिए दोनों फॉर्म में कुछ बदलाव किए हैं। ITR-1 में अब आप 1.25 लाख तक के कैपिटल गेन को शामिल कर सकते हैं, जो पहले नहीं था। वहीं, ITR-2 में अब TDS (टैक्स डिडक्टेड ऐट सोर्स) की जानकारी के लिए अलग से कॉलम जोड़ा गया है, जिसमें आपको ये बताना होगा कि टैक्स किस सेक्शन (जैसे 194I, 194J) के तहत काटा गया। इसके अलावा, अगर आपकी आय 1 करोड़ रुपये से ज्यादा है, तो आपको ITR-2 में अपनी संपत्तियों और देनदारियों का ब्योरा देना होगा। पहले ये सीमा 50 लाख थी, जिसे बढ़ाकर अब मध्यम आय वालों को राहत दी गई है।
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दोनों फॉर्म में आपको ये चुनना होगा कि आप न्यू टैक्स रिजीम चुन रहे हैं या ओल्ड। ओल्ड रिजीम में टैक्स दरें कम हैं, लेकिन आप 80C, 80D जैसी छूट ले सकते हैं। अगर आप ओल्ड रिजीम चुनते हैं, तो ITR-1 और ITR-2 में आपको अपनी डिडक्शन्स की पूरी जानकारी देनी होगी। अगर आप बिजनेस या प्रोफेशन से आय कमाते हैं और पुराना रिजीम चुनना चाहते हैं, तो फॉर्म 10-IEA भरना होगा।
जैन कहते हैं, “टैक्स रिटर्न दाखिल करने से पहले अपनी आय के स्रोतों को अच्छे से जांच लें। फॉर्म 16, फॉर्म 26AS और एनुअल इन्फॉर्मेशन स्टेटमेंट (AIS) डाउनलोड करें, ताकि आपकी आय और TDS का हिसाब सही रहे।”