पिछले कुछ वर्षों में कई म्युचुअल फंड कंपनियों ने फैक्टर-आधारित फंड लॉन्च किए हैं, जिन्हें स्मार्ट-बीटा फंड (smart-beta fund) भी कहा जाता है। यूटीआई निफ्टी 500 मोमेंटम 30 इंडेक्स फंड का हालिया नया फंड ऑफर इसी श्रेणी का है। जिन विभिन्न फैक्टर पर ये फंड उपलब्ध हैं, उनमें मूल्य (वैल्यू), अल्फा, गुणवत्ता (क्वालिटी), विकास (ग्रोथ), गति (मोमेंटम) और अस्थिरता (वोलैटिलिटी) शामिल हैं। इनमें से कई फंड एक फैक्टर पर आधारित होते हैं, जबकि अन्य दो या दो से अधिक फैक्टर पर ।
गेनिंग ग्राउंड इन्वेस्टमेंट सर्विसेज के संस्थापक रवि कुमार टीवी कहते हैं, ‘निवेश को लेकर फैक्टर के चुनाव में यह देखा जाता है कि आखिर किस प्रकृति के पोर्टफोलियो का प्रदर्शन लगातार बेहतर रहा है। प्रत्येक फैक्टर एक विशेष दौर में प्रदर्शन करता है। फैक्टर-आधारित फंड में निवेश करना फायदेमंद हो सकता है, बशर्ते आपने सही फैक्टर चुना हो।
जिन फैक्टर्स का ऊपर जिक्र हुआ है उनमें से प्रत्येक बाजार के एक विशेष चरण में अच्छा प्रदर्शन करता है। उदाहरण के लिए, गुणवत्ता-केंद्रित शेयरों ने 2018-2019 में अच्छा प्रदर्शन किया, जबकि मूल्य-केंद्रित शेयरों का प्रदर्शन 2020 के बाद अच्छा रहा है।। उच्च गति वाले शेयरों में अच्छा प्रदर्शन होता है जब बाजार में समग्र तेजी का दौर होता है।
हालांकि, निवेशक को यह ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे समय होंगे जब ये सिंगल-फैक्टर फंड मार्केट-कैप आधारित इंडेक्स फंड से कम प्रदर्शन करेंगे।
एक सिंगल-फैक्टर फंड लंबी अवधि में अच्छा प्रदर्शन दे सकता है, बशर्ते निवेशक बीच-बीच में कमजोर प्रदर्शन के लिए तैयार हो।
मल्टी-फैक्टर फंड एक से अधिक फैक्टर को ध्यान में रखकर निवेश करते हैं। इन फंडों का पोर्टफोलियो ज्यादा विविध होता है, जिससे ये बेहतर जोखिम-समायोजित रिटर्न प्रदान करते हैं और एक फैक्टर के खराब प्रदर्शन के प्रभाव को कम करते हैं।
स्क्रिपबॉक्स के डायरेक्टर भारत पाठक कहते हैं, ‘अगर कोई निवेशक ज्यादा विविध पोर्टफोलियो की तलाश में है और ज्यादा एक्सपेंस रेश्यो उठाने के लिए तैयार है तो उसके लिए मल्टी-फैक्टर फंड ज्यादा उपयुक्त हो सकता है।’
रवि कुमार कहते हैं, ‘मल्टी-फैक्टर दृष्टिकोण आपको निवेश शैलियों में विविधता लाने की अनुमति देता है और नकारात्मक जोखिम को कम करता है। यदि कोई लंबी अवधि में कम अस्थिरता चाहता है तो एक मल्टी-फैक्टर फंड पसंदीदा विकल्प होना चाहिए। दो-तीन फैक्टर वाले फंड का चयन भी आप कर सकते हैं।’
फैक्टर-आधारित फंड, विशेष रूप से जो एक फैक्टर पर आधारित होते हैं, डायवर्सिफाइड फंड की तुलना में अधिक जोखिम वाले होते हैं। पाठक कहते हैं, ‘ फैक्टर -आधारित फंड में कंसंट्रेशन रिस्क ज्यादा होता है क्योंकि वे एक खास फैक्टर पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो कुछ स्थितियों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकता है।’
मार्केट कैप-आधारित इंडेक्स फंड से ज्यादा रिटर्न चाहने वाले निवेशक एसआईपी के जरिए सिंगल-फैक्टर या मल्टी-फैक्टर आधारित फंड में निवेश करने पर विचार कर सकते हैं, बशर्ते उन्हें लंबी अवधि के लिए निवेश में परेशानी न हो। मार्केट कैप-आधारित इंडेक्स फंड को कोर पोर्टफोलियो में रखा जाना चाहिए, जबकि फैक्टर-आधारित इंडेक्स फंड को सैटेलाइट आवंटन का हिस्सा बनाया जा सकता है।
शुरुआत में इन फंडों में सीमित आवंटन करें। पाठक कहते हैं, ‘अपने पोर्टफोलियो का अधिकतम 10-15 प्रतिशत ही फैक्टर-आधारित फंडों में लगाएं। । यह आपके पोर्टफोलियो को और अधिक विविधतापूर्ण बना देगा। मतलब संभावित नकारात्मक जोखिम को सीमित करते हुए आपको किसी भी संभावित उछाल की स्थिति में लाभ उठाने का मौका देगा। इन फंडों का सटीक एक्सपोजर किसी की परिस्थितियों और निवेश लक्ष्यों के आधार पर भिन्न हो सकता है।
रवि कुमार ज्यादा एक्सपोजर का सुझाव देते हैं। वे कहते हैं, ‘निवेशक के जोखिम प्रोफाइल और निवेश की अवधि के आधार पर पोर्टफोलियो का करीब 20 फीसदी एक्सपोजर फैक्टर-आधारित फंडों में हो सकता है।’
यदि कोई फैक्टर-आधारित फंड खराब प्रदर्शन करना शुरू कर देता है, तो क्या यह आपके लिए बाहर निकलने का संकेत है? फंड्स इंडिया के उपाध्यक्ष और शोध प्रमुख अरुण कुमार कहते हैं, ‘सभी फैक्टर-आधारित फंड कभी-कभी कमजोर प्रदर्शन के दौर से गुजरते हैं। यदि किसी फंड का खराब प्रदर्शन उसी फैक्टर पर आधारित अलग-अलग तरह के फंड के अनुरूप है तो यह संभवतया कुछ अस्थायी परिस्थितियों के कारण होता है जो पूरे फैक्टर को प्रभावित करता है। ऐसी परिस्थितियों में इन फंडों में बने रहने में ही बुद्धिमानी होगी। हालांकि, यदि फंड उसी फैक्टर-आधारित अन्य फंडों की तुलना में खराब प्रदर्शन कर रहा है, तो यह चिंता का कारण है। यह संकेत दे सकता है कि फंड के फैक्टर के निष्पादन के साथ कोई समस्या है। ऐसी स्थिति में फंड से बाहर निकलने में समझदारी हो सकती है।’