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म्युचुअल फंड में लगे जोखिम तो सेबी लगाएगा मरहम

सेबी ने जोखिम के साथ रिटर्न या रिस्क एडजस्टेड रिटर्न का नया पैमाना तैयार किया है। यह बताता है कि म्युचुअल फंड से आप कितना कमा सकते हैं और कितना गंवाने को जोखिम उसमे है।

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सुनयना चड्ढा   
Last Updated- July 10, 2024 | 10:57 PM IST

म्युचुअल फंड चुनना बिल्कुल वैसा ही है, जैसे घुड़दौड़ में पक्की जीत वाला घोड़ा चुनना। आप फंड का पिछला प्रदर्शन तो देखते हैं मगर उसके जोखिम के बारे में सोचा है? बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने एक नई व्यवस्था का प्रस्ताव दिया है, जिससे आपको सही फैसला लेने में मदद मिल सकती है।

दिक्कत क्या है

फिलहाल म्युचुअल फंड अपने रिटर्न का प्रचार करते हैं और बताते हैं कि आपको अपने निवेश से कितनी कमाई हुई। मगर इससे पूरी कहानी नहीं पता चलती। दो घोड़ों के बारे में सोचिए। पहला घोड़ हर रेस जीतता है मगर कभीकभार चोटिल हो जाता है। दूसरा घोड़ा धीमे दौड़ता है मगर हर रेस को सुरक्षित तरीके से पूरा करता है। ज्यादा जोखिम वाला घोड़ा बेशकर ज्यादा रिटर्न देता है मगर उसमें पैसे डूबने का खतरा भी ज्यादा रहता है।

जोखिम के साथ रिटर्न (आरएआर)

सेबी ने जोखिम के साथ रिटर्न या रिस्क एडजस्टेड रिटर्न (आरएआर) का नया पैमाना तैयार किया है। यह बताता है कि म्युचुअल फंड से आप कितना कमा सकते हैं और कितना गंवाने को जोखिम उसमे है। इससे पता चलता है कि जोखिम के बदले कितना रिटर्न मिल सकता है। ज्यादा आरएआर का मतलब होता है कि जोखिम की तुलना में फंड से अच्छा रिटर्न मिल रहा है।

मान लीजिए कि दो म्युचुअल फंड हैं। पहला फंड 15 फीसदी रिटर्न तो देता है, लेकिन इसकी कीमत साल भर अप्रत्याशित तरीके से घटती-बढ़ती रहती है। दूसरा फंड हमेशा 10 फीसदी रिटर्न ही देता है। इनमें से पहला फंड ज्यादा मुनाफा देने वाला लगता है मगर इसमें रकम डूबने का जोखिम भी ज्यादा होता है।

आरएआर रेटिंग में फंड से मिलने वाले रिटर्न और इसके जोखिमों दोनों के बारे में बताया जाता है। मौजूदा नियामकीय व्यवस्था में म्युचुअल फंड के रिटर्न के साथ आरएआर बताना अनिवार्य नहीं है। साथ ही परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों (एएमसी) में भी योजना का आरएआर बताने का चलन नहीं है।

क्यों है जरूरी

आरएआर की जानकारी होने से आप अलग-अलग म्युचुअल फंडों की तुलना काफी आसानी से कर सकते हैं। आप अपने जोखिम उठाने की क्षमता वाले फंड चुन सकते हैं। अगर आप ज्यादा जोखिम लेना चाहते हैं तो उच्च आरएआर वाले फंड चुन सकते हैं भले ही उसमें रिटर्न थोड़ा कम मिले। मगर आपको सुरक्षित निवेश करना पसंद है तो फिर आपको कम आरएआर और अधिक स्थिर रिटर्न वाला फंड चुनना चाहिए।

सेबी ने अपने परामर्श पत्र में कहा है कि म्युचुअल फंड में इतना उतार-चढ़ाव होत है कि कारगर फंड चुनने के लिए योजना के प्रदर्शन के साथ-साथ उसके आरएआर की भी जानकारी मिलनी चाहिए। उसमें कहा गया है, ‘किसी भी योजना पोर्टफोलियो के आरएआर को जांचने के लिए सूचना अनुपात (आईआर) एक स्थापित वित्तीय अनुपात है। आमतौर पर इसका इस्तेमाल यह जानने के लिए किया जाता है कि पोर्टफोलियो मैनेजर कितना माहिर है।’

कैसे करता है काम?

सेबी ने अलग-अलग म्युचुअल फंडों के आरएआर की गणना के लिए मानक तरीका प्रस्तावित किया है। इससे सभी फंडों की रेटिंग समान स्तर पर होना सुनिश्चित होगा। नियामक ने प्रस्ताव को अंतिम रूप देने से पहले उस पर आमलोगों की प्रतिक्रिया भी मांगी है।

इससे आपको क्या मिलेगा?

नई प्रणाली स्थापित करने का उद्देश्य निवेशकों को सही जानकारी देना है। लागू हो जाने पर म्युचुअल फंडों के बारे में जानकारी लेते वक्त ही उसके प्रदर्शन के साथ आरएआर की जानकारी मिल सकती है। इससे आपको अपने वित्तीय लक्ष्यों और जोखिम लेने की क्षमता के अनुसार सही निवेश विकल्प चुनने में मदद मिलेगी।

सेबी की यह प्रस्तावित आरएआर प्रणाली अधिक पारदर्शी और निवेशकों के अनुकूल म्युचुअल फंड बाजार की दिशा में उठाया गया एक कदम है। रिटर्न और जोखिम दोनों के बारे में जानने के बाद आप निवेश के मामले में बेहतर फैसले सकते हैं और उम्मीद है कि अपने वित्तीय लक्ष्यों को भी तेजी से हासिल कर सकते हैं।

First Published : July 10, 2024 | 10:48 PM IST