प्रतीकात्मक तस्वीर
Health Insurance: बीमारियों में हो रहे लगातार बढ़ोतरी के चलते हेल्थ इंश्योरेंस आज हर परिवार की जरूरत बन चुका है। लेकिन लगातार बढ़ते प्रीमियम की कीमतें ने लोगों की चिंताएं बढ़ा दी हैं। अस्पतालों में इलाज की लागत और मेडिकल महंगाई के कारण बीमा कंपनियां प्रीमियम की कीमतें बढ़ा रही हैं। इससे पॉलिसीधारकों को अपने बजट को संतुलित करने में मुश्किल हो रही है। हालांकि, कुछ स्मार्ट तरीकों से आप अपने हेल्थ इंश्योरेंस के खर्च को कम कर सकते हैं। साथ ही एक्सपर्ट से समझेंगे कि बढ़ते प्रीमियम के दौर में कैसे बचत किया जा सकता है और सही बीमा प्लान कैसे चुन सकते हैं?
हेल्थ इंश्योरेंस के प्रीमियम में बढ़ोतरी का सबसे बड़ा कारण मेडिकल सेक्टर में बढ़ती महंगाई है। न्यूज बेबसाइट द इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले कुछ सालों में अस्पतालों के खर्च, दवाइयों की कीमतें और डायग्नोस्टिक टेस्ट की लागत में तेजी से इजाफा हुआ है। इस वजह से बीमा कंपनियों को क्लेम के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं, जिसका असर प्रीमियम की कीमतों पर पड़ता है। इसके अलावा, उम्र बढ़ने के साथ स्वास्थ्य जोखिम बढ़ता है, जिससे प्रीमियम की दरें भी प्रभावित होती हैं।
पॉलिसी बाजर के हेल्थ इंश्योरेंस के हेड सिद्धार्थ सिंघल कहते हैं, “प्रीमियम की कीमतें मुख्य रूप से मेडिकल महंगाई और अस्पताल के खर्चों में हो रहे लगातार बढ़ोतरी के कारण बढ़ रही हैं। बीमा कंपनियां इन बढ़ते खर्चों को कवर करने के लिए प्रीमियम में बदलाव कर रही हैं। हालांकि प्रीमियम बढ़े हैं, लेकिन आंकड़ों के अनुसार 53% पॉलिसीधारकों को 10% से कम महंगाई दर का सामना करना पड़ता है और वे अपनी पॉलिसी को बिना ज्यादा बदलाव के रिन्यू कर लेते हैं। केवल 5% ग्राहकों को 30% से ज्यादा महंगाई दर का सामना करना पड़ता है, जो ज्यादातर उम्र से संबंधित कारणों से होता है। बाकी लोग सस्ते और लेटेस्ट प्लान चुनकर, डिडक्टिबल्स (खुद का कुछ खर्च वहन करना) या सीमित अस्पताल नेटवर्क चुनकर लागत को मैनेज कर लेते हैं। पिछले दो सालों में रिन्यूअल दर में लगभग 10% की बढ़ोतरी हुई है, जो एक पॉजेटिव ट्रेंड को दिखाता है।”
पॉलिसीधारकों के लिए राहत की बात यह है कि कुछ आसान उपायों से प्रीमियम की लागत को काफी हद तक कम किया जा सकता है। एक्सपर्ट के मुताबिक, अगर आप लंबी अवधि की पॉलिसी चुनते हैं, तो प्रीमियम में अच्छी खासी बचत हो सकती है। उदाहरण के लिए, अगर 61 साल का कोई व्यक्ति एक साल की पॉलिसी लेता है, तो उसका प्रीमियम 40,356 रुपये हो सकता है। लेकिन अगर वह तीन साल की पॉलिसी लेता है और एकमुश्त भुगतान करता है, तो कुल खर्च 1.10 रुपये लाख होगा। अगर हर साल प्रीमियम 5% बढ़ता है, तो तीन साल में यह 1.33 रुपये लाख हो सकता था। इस तरह, एकमुश्त भुगतान से 8% की बचत होती है।
इसके अलावा, टॉप-अप प्लान भी प्रीमियम कम करने का शानदार तरीका है। अगर आप 1 करोड़ रुपये की बेस पॉलिसी लेने की सोच रहे हैं, तो इसके बजाय 10 लाख रुपये की बेस पॉलिसी और 90 लाख रुपये का टॉप-अप प्लान चुनें। यह तरीका न सिर्फ सस्ता है, बल्कि आपको बड़ा कवर भी देता है। टॉप-अप प्लान उन लोगों के लिए खास तौर पर फायदेमंद है जो कम प्रीमियम में ज्यादा कवरेज चाहते हैं।
सिद्धार्थ कहते हैं, “मेडिकल महंगाई से निपटने के लिए बीमा कंपनियां अब ऐसे प्लान दे रही हैं जो समय के साथ कवरेज के पैसे को बढ़ाते हैं और प्रति यूनिट लागत को कम करते हैं, जिससे लंबे समय तक किफायती बीमा मिलता है। इन प्लानों की खासियत है कम्युलेटिव बोनस, जो हर साल बिना क्लेम के Sum Insured को बढ़ाता है। समय के साथ यह बोनस Sum Insured को 7 गुना, 10 गुना या उससे भी ज्यादा कर सकता है। ग्राहक डिडक्टिबल्स चुनकर या सीमित अस्पताल नेटवर्क वाले प्लान लेकर प्रीमियम को 15% तक कम कर सकते हैं, बिना क्वालिटी केयर में कमी के।”
एक और महत्वपूर्ण तरीका है नो-क्लेम बोनस का फायदा उठाना। अगर आप साल भर में कोई क्लेम नहीं करते, तो बीमा कंपनियां आपको नो-क्लेम बोनस देती हैं। यह बोनस आपकी बीमा राशि को बढ़ा सकता है, जो समय के साथ 7 गुना या 10 गुना तक हो सकता है। इससे आपका कवरेज बढ़ता है, बिना प्रीमियम में ज्यादा इजाफा किए।
प्रीमियम कम करने के साथ-साथ यह भी जरूरी है कि आप ऐसी पॉलिसी चुनें जो आपकी जरूरतों को पूरा करे। एक्सपर्ट के मुताबिक, पॉलिसी खरीदने से पहले आपको अपने शहर के मेडिकल खर्चों को ध्यान में रखना चाहिए। मेट्रो शहरों में इलाज की लागत ज्यादा होती है, इसलिए कम से कम 10 लाख रुपये का कवर लेना जरूरी है। इसके अलावा, अगर आपको क्रिटिकल इलनेस या मैटरनिटी जैसे अतिरिक्त कवर चाहिए, तो रिन्यूअल के समय राइडर्स जोड़ सकते हैं।
पॉलिसी में कैशलेस क्लेम की सुविधा जरूर होनी चाहिए। इससे आपको इलाज के समय पैसे जमा करने की जरूरत नहीं पड़ती। साथ ही, पॉलिसी की शर्तों को अच्छी तरह पढ़ना भी जरूरी है। कई बार कुछ बीमारियों या इलाज के लिए वेटिंग पीरियड होता है, जिसके बारे में पहले से जानकारी होना जरूरी है। साथ ही एक्सपर्ट ने यह भी चेतावनी देते हैं कि अगर आप अपनी पॉलिसी रिन्यू नहीं करते, तो बाद में नई पॉलिसी लेने पर प्रीमियम ज्यादा हो सकता है। उम्र और स्वास्थ्य की स्थिति के आधार पर नई पॉलिसी की लागत बढ़ सकती है। इसलिए, अपनी पॉलिसी को नियमित रूप से रिन्यू करना न भूलें।
सिद्धार्थ कहते हैं, “पॉलिसी खरीदने से पहले सभी फीचर्स को ध्यान से जांचना जरूरी है ताकि प्लान आपकी जरूरतों के अनुसार हो। अगर अतिरिक्त कवरेज चाहिए, तो रिन्यूअल के समय राइडर्स जोड़े जा सकते हैं।”
हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम में बढ़ोतरी का सिलसिला अगले कुछ सालों तक जारी रह सकता है, क्योंकि मेडिकल महंगाई और अस्पतालों के खर्च कम होने की उम्मीद कम है। हालांकि, बीमा कंपनियों के बीच बढ़ती रेस और मेडिकल टेक्नोलॉजी में सुधार से प्रीमियम की बढ़ोतरी को कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।
इसके अलावा, सरकार भी हेल्थ इंश्योरेंस को सस्ता करने की दिशा में कदम उठा रही है। न्यूज वेबसाइट फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जीएसटी काउंसिल हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम पर 18% जीएसटी को घटाकर 5% करने पर विचार कर रही है। अगर यह प्रस्ताव लागू होता है, तो पॉलिसीधारकों को बड़ी राहत मिल सकती है।
सिद्धार्थ कहते हैं, “हेल्थ इंश्योरेंस के बढ़ते प्रीमियम ने पॉलिसीधारकों के सामने चुनौतियां तो खड़ी की हैं, लेकिन सही रणनीति अपनाकर आप अपने खर्च को कम कर सकते हैं। लंबी अवधि की पॉलिसी, टॉप-अप प्लान, डिडक्टिबल्स, और नो-क्लेम बोनस जैसे विकल्प आपको किफायती कवरेज दे सकते हैं। साथ ही, पॉलिसी खरीदने से पहले उसकी शर्तों को अच्छी तरह समझना जरूरी है। इसके अलावा बीमा कंपनियां और सरकार दोनों ही हेल्थ इंश्योरेंस को और सुलभ बनाने की कोशिश कर रही हैं, जिसका परिणाम आने वाले दिनों में देखने को मिल सकता है।”