देश के साथ प्रमुख आवासीय बाजारों में ग्राहकों की मकान खरीदने की क्षमता आंकने वाला जेएलएल का होम परचेज अफॉर्डेबिलिटी इंडेक्स (एचपीएआई) 2014 में ऊंचे पींग भर रहा था और 2021 के अंत में एक बार फिर चरम पर पहुंच गया था। मगर 2022 में यह लुढ़क गया और रियल एस्टेट सलाहकार फर्म जेएलएल की हाल में आई रिपोर्ट के मुताबिक 2023 में भी इसमें नरमी रहेगी। इसका मतलब है कि मकान खरीदने की इच्छा रखने वालों को ज्यादा खर्च करना पड़ सकता है। इसीलिए खरीद का फैसला लेने से पहले उन्हें अच्छी तरह देख लेना चाहिए कि उनकी जेब कितनी इजाजत दे रही है।
कीमत और ब्याज दर का झटका
हर एक शहर के लिए तैयार होने वाले एचपीएआई तीन बातों पर नजर रखता है: शहर में 1000 वर्ग फुट मकान का औसत दाम, शहर की औसत पारिवारिक आय और आवास ऋण यानी होम लोन पर ब्याज की दर। इन तीनों का हिसाब लगाते समय मान लेते हैं कि मकान की कीमत के 80 फीसदी के बराबर होम लोन लिया जा रहा है और कर्ज की ईएमआई को कुल मासिक आय का 40 फीसदी माना जाता है। इंडेक्स तैयार करते समय सबसे पहले देखा जाता है कि उस शहर में 1,000 वर्ग फुट का मकान खरीदने के लिए होम लोन कम से कम कितनी पारिवारिक आय पर मिल सकता है। उस आंकड़े से शहर की औसत पारिवारिक आय को भाग किया जाता है। यदि इंडेक्स 100 से कम रहता है तो इसका मतलब है कि औसत पारिवारिक आय 1,000 वर्ग फुट का मकान खरीदने के लिए होम लोन पाने लायक नहीं है। यदि इंडेक्स 100 से ऊपर रहता है तो औसत पारिवारिक आय होम लोन पाने के लिए पर्याप्त है। मकान खरीदने की क्षमता घटने के पीछे दो बातें सबसे अधिक जिम्मेदार हैं।
जेएलएल में मुख्य अर्थशास्त्री और हेड ऑफ रिसर्च ऐंड आरईआईएस इंडिया सामंतक दास समझाते हैं, ‘भारतीय रिजर्व बैंक के दर बढ़ाने के कारण होम लोन की ब्याज दर भी बढ़ गई हैं। साथ ही मकान भी महंगे हो गए हैं क्योंकि महंगाई बढ़ने के कारण डेवलपर बढ़े खर्च का बोझ खरीदारों पर डाल रहे हैं। 2021 तक दाम में दो या तीन फीसदी की ही औसत सालाना बढ़ोतरी होती थी। लेकिन 2022 में ज्यादातर शहरों में 5 से 7 फीसदी और हैदराबाद में 11 फीसदी इजाफा हुआ।’
शहर नहीं छोड़ना तो खरीद लें
अगर आपको एक ही शहर में लंबे अरसे तक रहना है तो मकान खरीदना सही रहता है। मनीएड्यूस्कूल के संस्थापक अर्णव पांड्या कहते हैं, ‘अगर आप युवा हैं और नौकरी बदलने के कारण आपको जल्द ही दूसरे शहर में जाना पड़ सकता है तो मकान खरीदने से परहेज कीजिए।’ मकान कहां खरीदना है और कितना बड़ा खरीदना है यह तय करने के बाद आपको मोटे तौर पर उसकी कीमत पता लग जाएगी। प्लान अहेड वेल्थ एडवाइजर्स के मुख्य वित्तीय योजनाकार विशाल धवन की सलाह है, ‘याद रखिए कि मकान की कीमत के अलावा दूसरे खर्च भी हो सकते हैं मसलन रजिस्ट्रेशन का खर्च और स्टांप ड्यूटी, ब्रोकर का खर्च और मकान में मरम्मत का खर्च।’
जेब दे रही इजाजत?
सबसे पहले खुद से यह सवाल पूछिए कि क्या आप लगातार 15-20 साल तक होम लोन की ईएमआई दे पाएंगे। धवन कहते हैं, ‘इसका जवाब भी दो बातों पर निर्भर करता है। पहली बात, आपके पास स्थिर नौकरी है या नहीं। दूसरी बात, ईएमआई चुकाने के लिए कहीं आपको दोहरी कमाई पर तो निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। मान लीजिए कि संतान होने, पढ़ाई के लिए छुट्टी लेने, बुजुर्गों की देखभाल करने आदि के लिए एक को नौकरी छोड़नी पढ़ सकती है और आगे चलकर आपके घर 2 लोगों के बजाय एक ही व्यक्ति की कमाई बाकी रह सकती है। ऐसा हुआ तो ईएमआई चुकाना आपके लिए मुश्किल तो नहीं हो जाएगा।’ यह भी देख लीजिए कि मकान खरीदने पर आप को बच्चों की शिक्षा या रिटायरमेंट जैसे दूसरे वित्तीय लक्ष्यों से तो समझौता नहीं करना पड़ेगा। धवन यह हिसाब लगाने की सलाह देते हैं कि इन लक्ष्यों के लिए बचत करने के बाद आप कितनी बड़ी ईएमआई चुका पाएंगे। यह हिसाब लगा लिया तो आप अपने बजट से बड़ा या महंगा मकान खरीदने के लालच से बच जाएंगे।
आपकी हर तरह की ईएमआई की कुल रकम आपकी शुद्ध कमाई के 40 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। पांड्या कहते हैं, ‘इस तरह की सीमा तय कर लेने से आपको दूसरे लक्ष्यों के लिए निवेश करने की छूट मिल जाती है।’ धवन की सलाह है कि कर्ज लेते या ईएमआई चुकाने की तैयारी करते समय दोहरी आय को कभी ध्यान में न रखें। इससे अचानक एक कमाई बंद होने पर भी आपके ऊपर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।
तगड़ी बचत बहुत जरूरी
आजकल नौकरियों और व्यापार में बहुत अनिश्चितता रहती है इसलिए आपातकाल को ध्यान में रखते हुए ठीक-ठाक बचत कर लेनी चाहिए। धवन समझाते हैं, ‘वेतन भोगी लोगों के पास 6 महीने के घर खर्च और ईएमआई के बराबर रकम आपात स्थितियों के लिए रहनी चाहिए। व्यापारियों और उद्यमियों के पास 12 महीने के लिए रकम होनी चाहिए।’
इसके साथ ही अपनी सेहत के लिए भी रकम बचाकर रखिए। रकम की राशि आपके स्वास्थ्य बीमा की राशि, आश्रितों की कुल संख्या, उनकी उम्र, उनकी सेहत आदि से तय होनी चाहिए।