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अगर आप रिटायरमेंट के बाद कर्मचारी पेंशन योजना यानी Employees’ Pension Scheme (EPS) 1995 के तहत ज्यादा पेंशन चाहते हैं तो इसके लिए कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के पास आवेदन करने की आखिरी तारीख 3 मई, 2023 है। लेकिन EPFO के कई सदस्य अब भी ऊहापोह में फंसे हैं क्योंकि इस मामले में स्थिति उनके सामने स्पष्ट ही नहीं है।
आइए, इसे ठीक से समझने की कोशिश करते हैं ताकि EPFO सदस्य आसानी से फैसला कर सकें कि ज्यादा पेंशन के लिए आवेदन किया जाए या अधिकतम 15,000 रुपये पेंशन योग्य वेतन वाली व्यवस्था में ही बने रहें।
कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) 1995 के अनुसार आपके नियोक्ता (employer) द्वारा EPF में किए गए अंशदान (contribution) का एक निश्चित हिस्सा EPS में जाता है। नियमों के मुताबिक आप अपने मूल वेतन और महंगाई भत्ते (DA) का 12 फीसदी EPF में देते हैं। अगर DA नहीं मिलता तो मूल वेतन का ही 12 फीसदी जाता है। उतनी ही रकम यानी 12 फीसदी राशि नियोक्ता भी आपके EPF अकाउंट में देता है।
लेकिन नियोक्ता के योगदान का एक हिस्सा EPS में चला जाता है। यह हिस्सा मूल वेतन का 8.33 फीसदी या अधिकतम 1,250 रुपये होता है। मतलब नियोक्ता प्रति महीने अधिकतम 15,000 रुपये वेतन (पेंशन योग्य वेतन की सीमा) का 8.33 फीसदी ही आपके EPS अकाउंट में भेज सकता है, भले ही आपका वेतन कितना भी क्यों न हो।
22 अगस्त 2014 में किए गए संशोधन के बाद 1 सितंबर 2014 से पेंशन योग्य वेतन की सीमा 15,000 रुपये यानी मासिक 1,250 रुपये तय की गई। इससे पहले यानी 8 अक्टूबर 2001 से 31 अगस्त 2014 तक यह सीमा सालाना 6,500 रुपये यानी मासिक 541 रुपये और 16 नवंबर 1995 से 7 अक्टूबर 2001 के बीच सालाना 5,000 रुपये यानी मासिक 417 रुपये थी।
16 मार्च 1996 से पहले यह बात स्पष्ट थी कि EPS में योगदान और पेंशन की गणना अधिकतम पेंशन योग्य वेतन के हिसाब से होगी। लेकिन 16 मार्च 1996 से EPFO सदस्यों को पेंशन योग्य वेतन के अतिरिक्त वास्तविक वेतन (actual salary) पर EPS में योगदान और पेंशन पाने का विकल्प भी दिया गया।
इसके लिए EPS-1995 में पैराग्राफ 11(3) जोड़ा गया, जिसके तहत कर्मचारी नियोक्ता की सहमति से वास्तविक वेतन पर EPS में अंशदान कर सकते हैं, भले ही वह पेंशन योग्य वेतन की सीमा से अधिक हो।
लेकिन 1 सितंबर 2014 से लागू संशोधन में इस पैराग्राफ को हटा दिया गया। हालांकि इस संशोधन में भी उन EPFO सदस्यों को वास्तविक वेतन के हिसाब से अंशदान का विकल्प चुनने के लिए 6 महीने के भीतर आवेदन का मौका दिया गया था, जो उस समय EPS में अंशदान कर रहे थे। कुछ खास स्थितियों में इसे 6 महीने के लिए और बढ़ाया गया लेकिन जानकारी और नियमों में स्पष्टता के अभाव में ज्यादातर पात्र EPFO सदस्य इस विकल्प को नहीं ले पाए।
2014 के संशोधन में ही सरकार ने यह भी निर्देश दिया कि अगर आप वास्तविक वेतन के हिसाब से EPS में योगदान करते हैं तो 15,000 रुपये पेंशन योग्य वेतन की सीमा के ऊपर EPS में जो भी योगदान होगा उस पर EPFO सदस्य को EPS में 1.16 फीसदी की दर से अतिरिक्त योगदान करना होगा।
इसके खिलाफ देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों जैसे केरल, दिल्ली और राजस्थान में मुकदमे पहुंच गए और इन अदालतों ने कर्मचारियों के पक्ष में फैसला दिया। इसके विरुद्ध Employees Provident Fund Organisation (EPFO) उच्चतम न्यायालय पहुंच गया।
आखिरकार उच्चतम न्यायालय ने अपने 4 नवंबर 2022 के निर्णय में EPFO को निर्देश दिया कि वह अपने सदस्यों को ज्यादा पेंशन यानी वास्तविक वेतन के हिसाब से EPS में योगदान का विकल्प चुनने के लिए एक और मौका दे। साथ ही उच्चतम न्यायालय ने सितंबर 2014 के उस संशोधन को अवैध करार दिया, जिसके अनुसार EPFO सदस्यों को 15,000 रुपये के पेंशन योग्य वेतन के 8.33 फीसदी से ज्यादा अंशदान पेंशन योजना में करने पर 1.16 फीसदी का अतिरिक्त योगदान करना होगा।
लेकिन इसके लिए अदालत ने EPFO को 6 महीने की मोहलत दी है ताकि इस अवधि में EPFO वैकल्पिक व्यवस्था कर सके। उच्चतम न्यायालय के इसी दिशा-निर्देश के मुताबिक EPFO ने अपने सदस्यों को ज्यादा पेंशन का विकल्प चुनने के लिए एक और मौका दिया है। योग्य EPFO सदस्य नियोक्ता के साथ मिलकर 3 मई, 2023 तक इसके लिए आवेदन कर सकते हैं।
उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देश के मुताबिक जो कर्मचारी 1 सितंबर 2014 से पहले EPS के सदस्य थे और उसके बाद भी EPS के सदस्य रहे हैं, वे इसके लिए आवेदन कर सकते हैं। इसी तरह जो सदस्य 1 सितंबर 2014 से पहले 6,500 रुपये और 5,000 रुपये से ज्यादा के पेंशन योग्य वेतन पर EPS में योगदान कर रहे थे, वे भी इसके लिए आवेदन के योग्य हैं।
वे लोग भी अधिक पेंशन के लिए आवेदन कर सकते हैं, जो 1 सितंबर 2014 से पहले रिटायर हो गए थे, लेकिन जिन्होंने पैरा 11(3) के तहत वास्तविक वेतन के आधार पर पेंशन के चुनाव के लिए जॉइंट ऑप्शन का इस्तेमाल किया था, जिसे EPFO ने ठुकरा दिया था।
मगर जो सदस्य 1 सितंबर 2014 से पहले रिटायर हो गए और जिन्होंने वास्तविक वेतन के आधार पर पेंशन के चुनाव के लिए जॉइंट ऑप्शन का इस्तेमाल नहीं किया था, वे ज्यादा पेंशन के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं। 1 सितंबर 2014 के बाद EPS के सदस्य बनने वाले भी ज्यादा पेंशन के लिए आवेदन नहीं कर सकते।
अगर आप वास्तविक वेतन के हिसाब से योगदान के विकल्प का चयन करते हैं तो आपके मूल वेतन का 8.33 हिस्सा EPS में जाएगा न कि 15,000 रुपये के पेंशन योग्य वेतन की सीमा के मुताबिक अधिकतम 1,250 रुपये। ज्यादा पेंशन का विकल्प चुनने के बाद बाद कर्मचारी को 58 साल की उम्र के बाद मिलने वाली पेंशन की गणना भी बदल जाएगी। अब उनके अंतिम 60 महीनों के औसत मूल वेतन के आधार पर पेंशन का निर्धारण होगा, न कि अधिकतम 15,000 रुपये के पेंशन योग्य वेतन के आधार पर।
मान लीजिए किसी व्यक्ति का मूल वेतन 50,000 रुपये है। 15,000 रुपये पेंशन योग्य वेतन यानी पुरानी व्यवस्था के हिसाब से कर्मचारी के मूल वेतन का 12 फीसदी यानी 6,000 रुपये EPS में जाएंगे। नियोक्ता भी इतना ही अंशदान करेगा मगर उसमें से 1,250 रुपये EPS में और 4,750 रुपये EPF में चले जाएंगे।
यदि नए तरीके यानी वास्तविक वेतन के आधार पर अंशदान किया जाए तो 50,000 रुपये मूल वेतन पर कर्मचारी 12 फीसदी यानी 6,000 रुपये देंगे। नियोक्ता भी 6,000 रुपये ही देगा मगर अब वास्तविक मूल वेतन यानी 50,000 रुपये का 8.33 फीसदी अर्थात 4,165 रुपये पेंशन फंड में चले जाएंगे और EPF में केवल 1,835 रुपये जाएंगे। जाहिर है कि EPF में अब कम जमा होगा।
अब यह भी समझ लेते हैं कि पेंशन कितनी मिलेगी। अगर आप 10 साल तक EPS में अंशदान करते हैं तो आपको 58 साल की उम्र के बाद पेंशन मिलेगी। 50 साल की उम्र के बाद भी 4 फीसदी सालाना कटौती के साथ पेंशन लेने का प्रावधान है। यह जरूरी नहीं है कि 10 साल तक EPS में अंशदान लगातार हो।
ज्यादा पेंशन यानी वास्तविक वेतन के आधार पर पेंशन का विकल्प चुनने के बाद कर्मचारी के आखिरी 60 महीनों के औसत मूल वेतन में नौकरी के कुल साल से गुणा कर दिया जाएगा। इस तरह मिली संख्या को 70 से भाग करने पर मिला आंकड़ा ही कर्मचारी की पेंशन होगी।
उदाहरण के तौर पर अगर आपके अंतिम 60 महीने में औसत मूल वेतन 50,000 रुपये है ते 35 साल तक EPS में अंशदान करने पर आपको हर महीने 25,000 रुपये पेंशन मिलेगी।
यदि आप पुरानी व्यवस्था में ही रहते हैं तो आपको अधिकतम 7,500 रुपये महीना पेंशन मिलेगी क्योंकि मौजूदा नियमों के मुताबिक पेंशन योग्य वेतन की अधिकतम सीमा 15,000 रुपये है।
पेंशन की मौजूदा गणना के लिए अंतिम 60 महीने के औसत मूल वेतन को आधार बनाया जाता है। 15,000 रुपये पेंशन योग्य वेतन में अधिकतम अंशदान की सीमा होने के कारण 35 साल नौकरी करने वाले व्यक्ति को 7,500 रुपये महीने की पेंशन ही मिलेगी।
लेकिन अगर आप ज्यादा पेंशन का विकल्प चुनते हैं तो एक बात ध्यान रखनी होगी। जब से आपने EPS में अंशदान शुरू किया है, उस समय से पेंशन योग्य वेतन की सीमा से अधिक राशि आपको EPF खाते से EPS खाते में भेजनी होगी। अगर आपके EPF खाते में पर्याप्त रकम नहीं है तो आपको अलग से EPS को भुगतान करना होगा।
अंशदान और पेंशन की गणना से साफ हो जाता है कि अगर आप वास्तविक वेतन के हिसाब से योगदान करते हैं तो आपको नि:संदेह रिटायरमेंट के बाद ज्यादा पेंशन मिलेगी। मगर आपको यह विकल्प चुनने से पहले कई दूसरी बातों का भी ध्यान रखना होगा।
अगर आप उच्च पेंशन का विकल्प चुनते हैं तो मौजूदा फॉर्मूले के हिसाब से अंतिम 5 साल का मूल वेतन जितना ज्यादा होगा, आपकी पेंशन भी उतनी ही ज्यादा बनेगी। मगर पेंशन की राशि इस बात पर भी निर्भर करेगी कि आपने EPS में कितनी अवधि (पेंशन योग्य सेवा) के लिए अंशदान किया है। मार्के की बात यह भी है कि पेंशन की गणना में पेंशन योग्य सेवा की अवधि अधिकतम 35 वर्ष ही मानी जाएगी, भले ही आपने इससे ज्यादा अवधि के लिए EPS में योगदान किया हो।
ध्यान रहे कि आपने नौकरी के अंतिम 5 साल से पहले EPS में ज्यादा योगदान किया मगर किसी कारणवश आपके अंतिम 5 सालों में औसत मूल वेतन कम रहता है या आपकी नौकरी छूट जाती है तो आपकी पेंशन कम बनेगी।
जो EPFO सदस्य ज्यादा दिनों तक नौकरी नहीं करना चाहते हैं, उनकी भी EPS में अंशदान की अवधि कम होगी। परिणामस्वरूप उनकी पेंशन कम बनेगी। अगर आप पहले रिटायरमेंट लेते हैं तो आपको कम से कम 50 वर्ष की उम्र तक पेंशन के लिए इंतजार करना होगा। उसके बाद पेंशन मिलेगी भी तो 4 फीसदी कटौती के साथ। पूरी पेंशन तो आपको 58 साल की उम्र के बाद ही मिलेगी।
EPS में आप जो योगदान करते हैं, वह 58 साल की उम्र तक एक्युमुलेट होगा और 58 साल पूरे होने के बाद आपको एक्युमुलेटेड राशि मंथली पेंशन के रूप में मिलेगी। मतलब कुल 10 वर्ष तक योगदान के बाद आप EPS में जमा धनराशि को न तो रिटायरमेंट के बाद और न पहले निकाल सकते। जबकि EPF में जमा धनराशि को आप रिटायरमेंट से पहले भी जरूरत पड़ने पर निकाल सकते हैं।
यदि आप ईपीएस में ज्यादा अंशदान करेंगे, आपके EPF खाते में उतनी ही कम राशि जाएगी। EPF की राशि पर सरकार ब्याज भी देती है। मौजूदा वित्त वर्ष के लिए सरकार EPF पर 8.15 फीसदी ब्याज दे रही है। EPS क्योंकि एक पेंशन स्कीम है इसलिए इस पर कोई ब्याज नहीं मिलता।
रिटायर होने के बाद EPF की राशि ब्याज सहित जो आपको मिलती है उस पर आपको कोई टैक्स नहीं देना होता है लेकिन EPS से मिलने वाली पेंशन पर आपको सैलरी की तरह टैक्स चुकाना होगा।
अगर आपने कई संस्थानों में काम किया है और EPS का पैसा निकाल लिया है तो भी अंशदान की अवधि कम होगी। इस स्थिति में आपके पेंशन के कैलकुलेशन पर असर पडेगा। अगर आपने कुल 10 साल तक EPS में योगदान नहीं किया है तो आप इसमें जमा धनराशि निकाल सकते हैं।
लेकिन बहुत सारे जानकार यह भी बताते हैं कि क्योंकि EPS एक पेंशन स्कीम है इसलिए इस पर ब्याज और रिटायरमेंट से पहले विड्रॉल की बात करना बेमानी है। अगर आपकी नौकरी की अवधि लंबी है, साथ ही रिटायरमेट के अंतिम 5 सालों में आपकी सैलरी बेहतर रहती है तो आपको रिटायरमेंट के बाद EPS से जो पेंशन मिलेगी, वह मार्केट में उपलब्ध अन्य पेंशन स्कीम (जहां इक्विटी में एक्सपोजर न हो) से बेहतर हो सकती है, बशर्ते सरकार योगदान और पेंशन के कैलकुलेशन के मौजूदा फॉर्मूले में आगे कोई बदलाव न करे। इस पेंशन स्कीम के पक्ष में एक बात यह भी जाती है इस स्कीम में डिफॉल्ट का कोई खतरा नहीं है क्योंकि यह एक सरकारी स्कीम है।
ये सारी बातें तभी मायने रखेगी जब सरकार पेंशन के कैलकुलेशन के मौजूदा फॉमूले में आगे कोई बदलाव न करे। लेकिन अगर सरकार योगदान और पेंशन के फॉर्मूले में बदलाव करती है तो आप कुछ भी प्रेडिक्ट नहीं कर सकते। हालांकि इस बारे में हम अभी ठोस कुछ नहीं कह सकते हैं।