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बचत नहीं हो रही? 40-30-20-10 फॉर्मूला अपनाकर बदलें अपनी फाइनेंशियल लाइफ

सैलरी को सही तरीके से मैनेज करने का आसान फॉर्मूला, जिससे खर्च भी होगा और बचत भी बनेगी

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देवव्रत बाजपेयी   
Last Updated- June 20, 2025 | 8:43 AM IST

आज के दौर में कई परिवारों को महीना खत्म होने से पहले ही पैसों की किल्लत का सामना करना पड़ता है। खासकर छोटे परिवारों के लिए, जो शादीशुदा दंपती होते हैं, पैसों का सही मैनेजमेंट न कर पाने से उन्हें काफी दिक्कत उठानी पड़ जाती है। ऐसे में जरूरी है कि इनकम के साथ-साथ खर्चे और निवेश को लेकर एक पुख्ता प्लानिंग हो। द रिचनेस अकेडमी के फाउंडर और सर्टिफाइड फाइनैंशयल प्लानर (प्रो) तारेश भाटिया ने ’40-30-20-10′ रूल के जरिए समझाया कि कैसे सैलरीड क्लास को बजट बनाना चाहिए कि पूरे महीने पैसों की किल्लत का सामना न करना पड़े।

40% हिस्सा घरेलू खर्चों के लिए जरूरी

कुल आय का लगभग 40% हिस्सा घरेलू खर्चों पर खर्च होना चाहिए। यह हिस्सा परिवार की बुनियाद होता है और इसमें किसी तरह की कटौती मुश्किल होती है। इस हिस्से में किराने का सामान, रसोई की जरूरी चीज़ें, बिजली, पानी, गैस के बिल, इंटरनेट और मोबाइल फोन के खर्चे आते हैं।

इसके साथ ही आवश्यक मेडिकल खर्च, जैसेकि कोई नियमित दवाइयां चल रही हों, और ट्रांसपोर्ट खर्च भी इसमें शामिल हैं। यह 40% हिस्सा नॉन-नेगोशिएबल होता है, मतलब इसे कम करना आसान नहीं होता। जरूरत के हिसाब से यह हिस्सा 50% या 60% तक भी बढ़ सकता है, खासकर तब जब परिवार में आय कम हो या खर्चे ज्यादा हों।

30% लाइफस्टाइल खर्च के लिए रखें

आय का 30% हिस्सा लाइफस्टाइल खर्चों के लिए रखा जाना चाहिए। यह हिस्सा व्यक्तिगत पसंद और आराम से जुड़ा होता है। इसमें बाहर खाने का खर्च, ऑनलाइन शॉपिंग, नेटफ्लिक्स या अन्य स्ट्रीमिंग सेवाओं का भुगतान, और वीकेंड पर घूमने का खर्च शामिल होता है। इसके अलावा, जिम की मेंबरशिप, हॉबीज़, सब्सक्रिप्शन, और ऑनलाइन कोर्स जैसी चीज़ें भी इस हिस्से में आती हैं।

अगर परिवार में बच्चे हैं या माता-पिता की आर्थिक मदद करनी है, तो बच्चों की फीस, चिकित्सा सहायता या अन्य आश्रितों की जिम्मेदारियां भी इसी हिस्से से पूरी की जानी चाहिए। भविष्य में इस हिस्से को 20-25% तक कम करने की कोशिश करनी चाहिए ताकि बचत को बढ़ावा मिल सके।

20% हिस्सा बचत और कर्ज चुकाने पर

आय का 20% हिस्सा बचत और कर्ज चुकाने के लिए होना चाहिए। यह हिस्सा परिवार की वित्तीय सुरक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इसमें इमरजेंसी फंड बनाना शामिल है, जिसमें छह से बारह महीने के घरेलू खर्चों के बराबर धनराशि होनी चाहिए और इसे लिक्विड फंड या फिक्स्ड डिपॉजिट में रखा जाना चाहिए, ताकि जरूरत पड़ने पर तुरंत निकाला जा सके। साथ ही रिटायरमेंट प्लानिंग के लिए नियमित निवेश जैसे कि SIP या NPS में योगदान देना जरूरी होता है।

बच्चों की शिक्षा के लिए लंबी अवधि की योजना बनाना भी इस हिस्से में आता है, जिसमें इक्विटी म्यूचुअल फंड या PPF जैसे विकल्प शामिल होते हैं। यदि परिवार घर खरीदना चाहता है, तो इस हिस्से से घर के लिए डाउन पेमेंट की योजना बनानी चाहिए। कर्ज चुकाने के लिए भी यह हिस्सा जरूरी होता है, जिसमें क्रेडिट कार्ड बकाया, पर्सनल लोन या कार लोन का भुगतान शामिल होता है। कुल EMI आपकी वार्षिक आय का 30% से ज्यादा नहीं होनी चाहिए, लेकिन बेहतर होगा कि इसे 20% तक ही रखा जाए ताकि वित्तीय संतुलन बना रहे।

10% हिस्सा दान और खुद की देखभाल पर

’40-30-20-10′ नियम के अंत में कुल आय का 10% हिस्सा दान और स्वयं की देखभाल के लिए रखने की सलाह दी है। वे इसे दो बराबर हिस्सों में बांटते हैं। पहला 5% हिस्सा चैरिटी या दान के लिए होता है, जो मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा या अन्य सामाजिक संस्थाओं को दिया जा सकता है। इसके साथ ही जरूरतमंद रिश्तेदारों या गरीब बच्चों की फीस भरने के लिए भी यह हिस्सा इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे आप सीधे किसी के जीवन में सुधार ला सकते हैं। दूसरा 5% हिस्सा स्वयं के लिए होता है, जिसमें स्पा, पर्सनल ग्रोथ, फेशियल ट्रीटमेंट, आध्यात्मिक गतिविधि या सेलिब्रेशन शामिल हैं। यह हिस्सा आपकी खुशी, मानसिक संतुलन और आत्मसम्मान के लिए जरूरी होता है। इसके जरिए आप अपनी उपलब्धियों का जश्न मना सकते हैं और खुद को रिवॉर्ड कर सकते हैं।

कम आय वालों के लिए क्या है सुझाव ?

तारेश भाटिया कहते हैं, ’40-30-20-10′ नियम हर किसी के लिए पूरी तरह लागू नहीं हो सकता। खासकर उन लोगों के लिए जिनकी मासिक सैलरी 20,000 रुपये जैसे कम होती है। उनकी आय कम होने की वजह से खर्च और बचत में संतुलन बनाए रखना मुश्किल होता है। ऐसे में वे 80-20 नियम अपनाने की सलाह देते हैं, यानी लगभग 80% खर्च और 20% बचत।

उनका कहना है, दिल्ली-एनसीआर जैसे महंगे शहरों में कम से कम 1,00,000 रुपये मासिक आय होनी चाहिए ताकि यह बजट नियम सही तरीके से काम कर सके। वहीं, टियर-2 और टियर-3 शहरों में 50,000 रुपये मासिक आय वाले लोग आंशिक रूप से इसे अपना सकते हैं। इस स्थिति में घरेलू खर्च 60% तक बढ़ सकते हैं और लाइफस्टाइल खर्च 20% तक घटाया जाना चाहिए। बचत और दान के लिए 10% हिस्से को बनाए रखना बेहद जरूरी है।

(डिस्क्लेमर: यह डीटेल एक्सपर्ट से बातचीत पर आधारित है। यह सिर्फ जानकारी के मकसद से है।)

First Published : June 14, 2025 | 9:07 AM IST