प्रमुख सूचना आयुक्त (सीआईसी) के द्वारा हाल ही में म्युचुअल फंडों को जन सूचना अधिकारी नियुक्त करने के निर्देश का कम से कम चार प्रमुख परिसंपत्ति प्रबंधन करने वाली कंपनियों पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है जिनमें सरकार की 51 फीसदी हिस्सेदारी है।
सीआईसी के मुताबिक यूटीआई एएमसी एक जन प्राधिकरण निकाय है और लिहाजा उसे एक जन सूचना अधिकारी (पीआईओ) और एक अपील प्राधिकारी (एए) नियुक्त करने का निर्देश दिया है। मालूम हो कि यूटीआई एएमसी के तहत चार सरकारी कंपनियां स्टैट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई), पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी), बैंक ऑफ बड़ौदा (बीओबी) और जीवन बीमा निगम (एलआईसी) बतौर प्रायोजक काम करती हैं।
सीआईसी के आदेश के मुताबिक सूचना का अधिकार (आरटीआई) में भले ही इस बात का कोई विशेष प्रावधान नही है कि किसी भी उस प्रकार के निकाय जो दूसरे निकायों के द्वारा नियंत्रित, संचालित एवं फंडिंग की जाती है को भी जन प्राधिकरण निकाय कहा जा सकता है।
फिर भी आरटीआई के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए यह साफ जाहिर है कि किसी भी प्रकार की संस्था जहां जनता के पैसे लगे हुए हों में पारदर्शिता जरूर होनी चाहिए। लिहाजा जब यूटीआई म्युचुअल फंड के चारों प्रायोजक बैंक जन प्राधिकरण हैं और दूसरी कंपनियों पर उनका मालिकाना हक है तो फिर यूटीआई को भी बतौर जन प्राधिकरण की तरह ही समझा जाना चाहिए।
लिहाजा मौजूदा स्थिति में यूटीआई एएमसी के पास किसी प्रकार का कोई तर्क नही है कि वो खुद को जन प्राधिकरण निकाय न कह सके। मालूम हो कि जन मामलों में दिलचस्पी रखने वाले एक कार्यकर्ता विजय गोखले ने इस बारे में सीआईसी के समक्ष यह अपील दायर की थी जब यूटीआई एएमसी ने बैंलेंस शीट, निदेशकों की नियुक्तियों के तौर तरीकों और यूटीआई के पुराने वाले लोगो को बरकरार रखने के पीछे की वजह के बारे में गोखले को जानकारी देने से इंकार कर दिया था।
गोखले ने पेंशन फंड रेग्युलेटरी एंड डेवलपमेंट ऑफ इंडिया (पीएफआरडीए) के द्वारा यूटीआई एएमसी को नई पेंशन योजना के लिए बतौर फंड हाऊस चुनने के हवाले से यह कदम उठाया था। मालूम हो कि पेंशन नियामक ने यूटीआई एएमसी के साथ साथ एसबीआई एएमसी और एलआईसी एएमसी को सरकारी कर्मचारियों की बोली प्रक्रिया के आधार पर पेंशन के जमा की गई राशियों के प्रबंधन का काम करने के लिए चुना था।