सरकारी राहतों और कुछ विदेशी संस्थागत निवेशकों की खरीदारी से सेंसेक्स ने भले ही दस हजार अंकों के आंकड़े को पार कर लिया हो लेकिन सेंसेक्स में शामिल 30 प्रमुख कंपनियों के शेयरों के लिए संभावनाएं ठीक नहीं लग रही हैं।
बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच के अनुमानों के उनसार इन 30 प्रमुख कंपनियों के ईबीआईटीडीए मार्जिन में दिसंबर तिमाही में पिछले दस वर्षों में सबसे बड़ी गिरावट आ सक ती है। मोटे तौर पर कहें तो बाकी बची कंपनियों का भी कमोबेश यही हाल होनेवाला है।
कुल 128 कंपनियों में मोतीलाल ओसवाल को अपने राजस्व में 11 फीसदी की बढ़ोतरी की उम्मीद तो है लेकिन इसके शुध्द मुनाफे में 8 फीसदी कमी आने की बात सामने आ रही है।
कई बड़ी कंपनियों के टॉपलाइन ग्रोथ में आनेवाले दिनों में अगर कमी देखने को मिलती है तो यह किसी के लिए आश्चर्य की बात नहीं होगी क्यो कि पिछले कुछ महीनों में अर्थव्यवस्था में जो मंदी आई है उसमें कम से कम बेहतर संभावनाओं की उम्मीद तो कम से कम नहीं की जा सकती है।
हाल में ही वाहन क्षेत्र पर मंदी का साया गहराया है और व्यावसायिक वाहनों और दोपहियों के कारोबार में आई गिरावट इसका जीता-जागता उदाहरण है। गौरतलब है कि सिर्फ घरेलू बाजार ही मंदी की मार का सामना नहीं कर रहे बल्कि निर्यात पर भी मंदी की जबरदस्त मार पडी है।
इस बात की संभावना जताई जा रही है कि दिसंबर के महीने में निर्यात में कमी की बात सामने आ सकती है। इसके अलावा लागत खर्च में भी फिलहाल पूरी तरह से कमी तो नहीं आई है।
उत्पादन खर्च में कमी का असर वर्ष 2009 की मार्च तिमाही में ही देखने को मिल सकता है।
पूंजी के अभी महंगे होने के कारण ब्याज पर खर्च कुछ अधिक ही रहेगा। बैंक ऑफ अमेरिका का अनुमान है कि सेंसेक्स की 30 कंपनियों के राजस्व में 5 फीसदी की बढ़ोतरी होगी जबकि शुध्द मुनाफे में मात्र 2 फीसदी की तेजी आने की उम्मीद की जा रही है।
हालांकि प्रति शेयर आमदनी में करीब 1 फीसदी की कमी आ सकती है। ऐसा लगता है कि बाजार तीसरी तिमाही के खस्ता कारोबारी परिणामों को लेकर पूरी तरह से तैयार दिख रहा है लेकिन 30 कंपनियों का घाटा निश्चित तौर पर चोकाने वाला होगा। इन 30 कंपनियों में से कम से कम 9 कंपनियों के शुध्द मुनाफे में कमी आने की संभावना जताई जा रही है।
प्रिज्म सीमेंट: मुनाफे पर असर
प्रिज्म सीमेंट के शुध्द मुनाफे में आधे से ज्यादा का नुकसान हुआ है और यह घटकर 31 करोड़ रुपये रह गया है। 876 करोड़ रुपये वाली कंपनी के लिए दिसंबर तिमाही का परिणाम इस लिहाज से निराशाजनक ही रहा है।
अगर वर्ष 2008 में दिसंबर की अवधि तक पहले छह महीनों का आकलन किया जाए तो कुल मिलाकर 60 फीसदी की गिरावट आई है जो कंपनी केलिए बहुत ही बुरा प्रदर्शन कहा जा सकता है। शुध्द मुनाफे में कमी की मुख्य वजह लागत खर्च का बहुत ज्यादा होना है जिसमें फ्राइट और ईंधन की कीमतें प्रमुख हैं।
इस वजह से कंपनी का परिचालन मुनाफा मार्जिन 1350 आधार अंक घटकर 26 फीसदी के स्तर पर पहुंच गया है। हालांकि कारोबार की मात्रा में 8 फीसदी की तेजी के कारण कंपनी अपने टॉपलाइन में आ रही गिरावट को कुछ हद तक रोक पाने में सफल रही और यह गिरावट मात्र 6 फीसदी ही रही जबकि शुध्द रियलाइजेशन में 10 फीसदी लुढ़क गया।
कंपनी का प्रदर्शन ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छा रहा और इन क्षेत्रों में शहरों की अपेक्षा कंपनी का कारोबार बढ़िया रहा। हालांकि इन बिक्रियों से कंपनी को बहुत ज्यादा रियलाइजेशन की प्राप्ति नहीं हुई। प्रिज्म का मुख्य कारोबार उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश के कुछ हिस्सों में ज्यादातर कारोबार होता है। मध्यप्रदेश में कंपनी का 25 लाख टन का कारोबार होता है।
हालांकि इस उद्योग पर नजर रखनेवाले विश्लेषकों का कहना है कि आनेवाले समय में कंपनी के कारोबार में बदलाव आ सकता है जिससे मार्जिन में कुछ कमी आ सकती है। दीगर बात है कि जब तक अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं हो जाता तब पूरे देश में सीमेंट की मांग के कमजोर रहने की ही संभावना है।
वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण भारत समेत कई देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। रियल एस्टेट जो देश में उत्पादित सीमेंट का लगभग आधा हिस्से का उपयोग करती है, सीमेंट की मांग में तेजी के लिए इस क्षेत्र का बेहतर हालत में पहुंचना बेहत जरूरी माना जा रहा है।
विश्लेषकों के अनुसार देश केउत्तरी और मध्य क्षेत्रों में मांग के कमजोर रहने की संभावना है। इस लिहाज से आगे मांगों में कि सी तरह के सुधार की उम्मीद भी बेईमानी लग रही है।