बाजार नियामक सेबी ने वित्तीय दबाव से जूझ रही सूचीबद्घ कंपनियों के लिए राह आसान कर दी है। नियामक ने मूल्य निर्धारण फॉर्मूला आसान बनाया है और दबावग्रस्त कंपनी में निवेश के लिए ओपन ऑफर शर्त को समाप्त कर दिया है। हालांकि सेबी ने प्रवर्तकों को ऐसे निवेश से दूर रखा है और रियायत के दुरुपयोग रोकने के लिए जरूरी शर्त को सख्त बना दिया है।
अक्सर 26 प्रतिशत ओपन ऑफर और मूल्य निर्धारण फॉर्मूला अनिवार्य होता है, जो पिछले 26 सप्ताह के लिए औसत कीमत है। सेबी ने अब कहा है कि दबाव वाली कंपनियों में पूंजी निवेश ताजा शेयर भाव (दो सप्ताह के औसत) पर किया जा सकता है। इसके अलावा, ऐसे निवेश को ओपन ऑफर से अलग रखा जाएगा, भले ही यह 25 प्रतिशत की सीमा से परे हो।
केएस लीगल में मैनेजिंग पार्टनर सोनम चांदवानी ने कहा, ये ‘महत्वपूर्ण बदलाव हैं – और इससे ज्यादातर कंपनियों को मदद मिलेगी।’ इंडसलॉ में पार्टनर मनन लाहोटी ने कहा, ‘सख्त शर्तों को हटाए जाने से निवेशक आकर्षित करने और दबाव वाली कंपनियों को वित्तीय मदद मुहैया कराने में मदद मिलेगी।’ हालांकि सेबी ने दबाव वाली कंपनी का पता लगाने के लिए सख्त शर्तें तय की हैं और यह भी तय किया है कि कौन उसमें निवेशक के तौर पर पात्र हो सकता है और जुटाए गए कोष का इस्तेमाल कैसे किया जाएगा।
नियामक ने कहा है कि सूचीबद्घ कंपनी को रियायत के योग्य होने के लिए निर्धारित तीन में से कोई दो शर्तें पूरी करनी होंगी। इनमें शामिल है कि कंपनी कम से कम 90 दिन तक डिफॉल्ट की स्थिति से जुड़ी रही हो, उसकी वित्तीय योजनाओं को किसी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी द्वारा डी (डिफॉल्ट) रेटिंग दी गई हो या उसने आरबीआई के 7 जून 2019 के निर्देशों के तहत अंतर-लेनदार समझौता किया हो। दूरसंचार, होटल और इन्फ्रास्टक्चर क्षेत्र में कई सूचीबद्घ कंपनियां बड़े दबाव से जूझ रही हैं, लेकिन वे पात्रता मानदंडों को पूरा नहीं करती हैं।
खेतान ऐंड कंपनी में पार्टनर मोइन लाढा ने कहा, ‘पात्रता मानक रियायत के लाभ को सीमित करते हैं। इसके अलावा, निर्धारित विभिन्न पूर्व शर्तें क्रियान्वयन और प्रवर्तन के संदर्भ में चुनौतियां पैदा करेंगी। इसके अलावा, जहां ऑडिटर सर्टिफिकेट प्राप्त करने की भी जरूरत है, वहीं एजेंसी के जरिये मौजूदा अनुपालन एवं निगरानी बड़ी चुनौती होगी।’
इसके अलावा, सेबी ने अन्य शर्तें भी रखी हैं। शेयर प्रवर्तक समूह से संबद्घ कंपनियों, या इरादतन डिफॉल्टर या आर्थिक अपराधियों को आवंटित नहीं किए जा सकेंगे। साथ ही ऐसे आवंटन के लिए बहुलांश शेयरधारकों की मंजूरी जरूरी होगी।